मक्का उपजाने वाले खेत बनेंगे पेट्रोल पैदा करने वाले कुएं
12 अगस्त 2024, भोपाल: मक्का उपजाने वाले खेत बनेंगे पेट्रोल पैदा करने वाले कुएं – दुनिया के पास लगभग 47 साल का जीवाश्म तेल भंडार बचा है वर्ष 2070 तक धरती से पेट्रोल डीजल के भंडार खत्म होने की संभावना तथा बढ़ती वैश्विक आबादी की आजीविका बनाए रखने की चिंता में नए ईंधन विकल्पों की तलाश शुरू हुई। भारत जैसा देश अपनी ईंधन आवश्यकता का 85 प्रतिशत हिस्सा खाड़ी व अन्य देशों से आयात करता है। वर्ष 2023-24 की बात करें तो भारत ने कुल 23 करोड़ टन क्रूड ऑयल (कच्चा तेल) आयात किया है जिसका मूल्य 132.4 अरब डॉलर होता है जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.4 प्रतिशत हिस्सा है भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और रुपए का अवमूल्यन चालू खाता घाटा व सकल घरेलू उत्पाद को प्रभावित करते रहता है। ऐसी स्थिति में भारत जैसे देशों को वैकल्पिक स्थाई ऊर्जा के विकल्प को तलाशना अति आवश्यक हो गया है। वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहन के रूप में एक विकल्प उपलब्ध है परंतु उसकी व्यवहार्यता सीमित है। ब्राजील जैसा देश अपनी सकल ईंधन जरूरत का 45 प्रतिशत जैव ईंधन के माध्यम से पूर्ण करता है इसे देखते हुए भारत में भी जैव ईंधन के विकल्प जैसे की बायोडीजल, इथेनॉल, बायोमास और मिश्रित ईंधन पर विचार किया गया है।
भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ अनाज उत्पादन में विश्व की अग्रणी पंक्ति पर आसीन है भारत का गेहूं के उत्पादन में (106.84 मिलियन टन) दूसरे स्थान पर हैं वही धान उत्पादन में भी (130.29 मिलियन टन) विश्व में दूसरे स्थान पर है गन्ना उत्पादन में भी (431.81 मिलियन टन) विश्व में दूसरा स्थान है वहीं मक्का उत्पादन में (33.62 मिलियन टन) विश्व में पांचवे स्थान पर है। उक्त जिंसों के अधिक उत्पादन व कम निर्यात की संभावना के मद्देनजर पोषण के अलावा इनके अन्य उपयोग से आय अर्जित करना या देश की जरूरत को पूर्ण करना समय की मांग बन गई है। इसी कड़ी में गन्ने की मंडी (मोलासेस) व अतिरिक्त अनाज जैसे धान, गेहूं,मक्का के किण्वन एवं आसवन से इथेनॉल उत्पादन व उसके उपयोग की संभावना तलाशी गई। जिसमें इथेनॉल (इथाईल अल्कोहल 99 प्रतिशत) को अक्षय ईंधन के रूप में स्थापित कर वैकल्पिक ईंधन के रूप में परिभाषित किया गया। ऑक्टेन बूस्टर के रूप में इथेनॉल का पहला प्रयोग विश्व में 1920 और 1930 के दशक में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसकी बहुत मांग थी भारत में कृषि उत्पादन के आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि टिकाऊ जैव ईंधन नीति में भारत के लिए वैश्विक नेता बनने का पूरा अवसर है।
देश में क्या है वर्तमान स्थिति
अमेरिका जैसा देश ई 85 ईंधन नीति पर चल रहा है वहीं भारत में वर्ष 2001 से पायलट आधार पर पेट्रोल में इथेनॉल को ब्लेड करना प्रारंभ हुआ यह मुख्य रूप से गन्ना से शक्कर कारखाने के उप उत्पाद के रूप में उत्पादित हो रहा है। रेणुका शुगर्स भारत में सबसे बड़े इथेनॉल उत्पादक है। वर्तमान में ई 20 नीति के तहत भारत में पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल का मिश्रण किया जा रहा है। 11 राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों के चुनिंदा पेट्रोल पंपों पर यह उपलब्ध है। आगामी वर्षों में आवश्यकता अनुसार इस 40 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
कैसे बढ़ेगी किसानों की आय
अर्थशास्त्रियों के अनुसार भविष्य में इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का/ज्वार पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा अन्य फसलों जैसे चावल, गेहूं, गन्ना सिंचाई वाली फसलें होने से आर्थिक रूप से इथेनॉल उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं रहेगी वर्ष 2025 तक भारत को 1400 करोड़ लीटर इथेनॉल ईंधन की आवश्यकता होगी। वर्ष 2023-24 में कुल 550 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन में से 450 करोड़ लीटर चीनी उद्योगों से प्राप्त हुआ है। शेष 850 करोड़ लीटर की आवश्यकता की पूर्ति हेतु मक्का ही एकमात्र विकल्प है।
मक्का से प्राप्त होने वाले इथेनॉल की ऑक्टेन वैल्यू के आधार पर भारत में वर्तमान दर 62.36 रूपये प्रति लीटर निश्चित है। एक टन गन्ने से तकरीबन 235 लीटर इथेनॉल प्राप्त होता है,वहीं एक टन मक्के से तकरीबन 387 लीटर इथेनॉल प्राप्त होता है। जैसे-जैसे जीवाश्म ईंधन के भंडार कम होते जाएंगे वैसे-वैसे मक्का से इथेनॉल उत्पादन से मक्का की मांग बढ़ेगी इससे किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी इसके अलावा किण्वित उपोत्पाद (डिस्टीलर ग्रेन) भी अलग से बिकेगा जिसकी मांग पोल्ट्री फीड और कैटल फीड इंडस्ट्री में बनी हुई है। इस तरह मक्का के उत्पादन से किसानों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है जिसकी शुरुआत भारत में हो चुकी है।
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