राज्य कृषि समाचार (State News)

खेती में महिलाओं का योगदान

  • आशालता पाठक,
    कृषि संचालनालय, भोपाल
    मो.: 9425440089

7 मार्च 2023, खेती में महिलाओं का योगदान – आरंभ से ही कृषि कार्यों में महिलाओं की भागीदारी है। संविधान में भी महिलाओं को समानता को हक दिया गया है, इस समस्या को जमीनी स्तर पर लाने हेतु प्रयासों में गति 80 के दशक से आई है। संविधान लागू होने के 30 साल बाद भी आधी आबादी को, किसान की योजनाओं में समुचित भागीदारी नहीं मिलने से किसानों के लक्ष्यों में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हुई है।

महिलायें विकसित समाज की रीढ़ की हड्डी होती हंै। किसी भी समाज में महिलाओं की केन्द्रीय भूमिका एक राष्ट्र की प्रगति और दीर्घकालीन विकास सुनिश्चित करती है।  विकासशील देशों में कृषि श्रम में महिलाओं की भागीदारी लगभग 38 और 53 प्रतिशत कृषि श्रम महिलायें करती हैं। कृषक महिलायें कृषि विस्तार कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर विकास के पहियों को गति, खाद्यान्न उत्पादन में लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक हो सकती हंै।

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प्रावधनिक तौर पर विस्तार कार्यक्रम पुरूषों को लक्ष्य करके बनाये जाते हैं और यह मान लिया जाता है कि, पुरूष किसान ही खेती में मुख्य भूमिका निभाते हैं इस कारण कृषि विकास में योग्यता, स्थायित्व तथा क्षमता के लक्ष्य पूर्ण नहीं हो पाते हैं। परिणाम स्वरूप महिलायें कृषि क्षेत्र में नियोजित परिवर्तनों में एक भागीदार के रूप में होने वाले लाभों से वंचित रह जाती हंै। महिला कृषकों का कृषि में योगदान होने के पश्चात भी वे विस्तार सेवायें, निर्णय में भागीदारी, प्रशिक्षण, भ्रमण, ऋण एवं अनुदान के 2 से 10 प्रतिशत लाभ ही प्राप्त कर पाती है। साधारण महिला कृषकों का भूमि, उपकरण एवं तकनीकी जैसे संसाधनों पर नियंत्रण नहीं रहता। 

वर्ष 2011 की जनगणना केअनुसार लगभग 33.7 प्रतिशत ग्रामीण पुरूष रोजगार हेतु अन्य शहरों में पलायन करते हैं और कृषि के क्रिया-कलापों की जिम्मेदारी स्त्रियों पर आ जाती है और संसाधनों तक पहुँच नहीं होने के कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण परिवेश में कृषि के अतिरिक्त आय का कोई स्त्रोत नहीं है।

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महिला किसानों को समाज में समुचित प्रतिनिधित्व ना तो किसान संगठनों में एवं समय-समय पर होने वाले आंदोलन आदि में उनका कहीं स्पष्ट प्रतिनिधित्व नहीं है। वे ऐसी अदृश्य श्रमिक है जिसके बिना कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि करना मुश्किल है। सरकार के लगातार प्रयासों के पश्चात भी कई तरह की समस्यायें हंै।

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भू स्वामित्व

पितृ सत्तात्मक व्यवस्था एक महत्वपूर्ण कारण है, कि जिस भूमि पर महिला किसान खेती कर रही है उस पर उनका स्वामित्व नहीं है कृषि जनगणना 2015 के अनुसार लगभग 86 प्रतिशत महिला किसान इस सम्पत्ति से वंचित हैं।

अनुकूल मशीनरी

कृषि अभियांत्रिकीय क्षेत्र में लगातार अनुसंधान व नवाचारों से एक सीमा तक “ङ्खशद्वड्डठ्ठ द्घह्म्द्बद्गठ्ठस्रद्य4 ह्लशशद्यह्य”  उपलब्ध है पर इसमें अभी और कार्य करने की आवश्यकता है।

संसाधनों तक पहुँच

कृषि के समम्त संसाधनों तक महिला कृषक की पहुँच की संख्या अत्यंत अल्प है। उनकी भूमिका पारिवारिक कृषि भूमि में भी एक श्रमिक के समान है इस कारण उनमें प्रबंधन और कौशल क्षमता की कमी है।

विस्तार अधिकारियों और कार्यकर्ताओं में जेंडर संवेदनशीलता

जेंडर बजट आयोजना में स्त्री-पुरूष असमानताओं के प्रभावों का पता लगाने तथा महिलाओं के प्रति प्रतिबद्धताओं को बजटीय प्रतिबद्धताओं में परिणिति करने हेतु सरकारी बजट का आवंटन किया जाता है। इस प्रक्रिया में अलग से बजट नहीं बनाया जाता, बल्कि महिलाओं की विशेष जरूरतों को पूरा करने के लिए सकारात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाता है।

भारत में मानव विकास संबंधी उपलब्धियां

भारत की 586 मिलियन महिलाओं और लड़कियों के विकास और सशक्तिकरण पर बहुत आत्मनिर्भर करती है और इसमें एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में कार्य कर रही महिलाओं का है। सरकार के स्तर से, महिला सशक्तिकरण के उपाय के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में जेंडर बजटिंग (महिलोन्मुखी) बजट का प्रावधान किया गया है। जेंडर बजटिंग एक सतत प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाना है विकास के लाभ महिला पुरूषों को बराबर प्राप्त हों। विभिन्न मंचों, सम्मेलनों में पूरे विश्व में महिलाओं के जीवन में परिवर्तन लाने के प्रयास संबंधी चर्चा हुई। वियना, बीजिंग, काहिरा, संयुक्त राष्ट्र महासंघ में भी प्रस्ताव पारित हुआ।

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भारत वर्ष में 1974 में महिलाओं की स्थिति ‘समानता की ओर’ विषय पर एक प्रतिवेदन प्रकाशित किये जाने के बाद महिलाओं की वास्तविक स्थिति का आकलन हुआ और तब से महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक स्थिति में सुधार लाने हेतु अनेक प्रयास निरंतर किये जा रहे हंै। 9वीं पंचवर्षीय के वर्ष 1997 से 1998 में ‘महिला घटक योजना’ लागू करने से लेकर अंत तक 11वीं और 12वीं पंचवर्षीय योजना में लगातार महिला पुरूष समानता के लिए सभी मंत्रालयों विभाग में काम किया गया और जेंडर बजटिंग प्रणाली लागू की गई ।

कृषि विस्तार में भागीदारी

कृषि विस्तार की योजना में महिला कृषक रूचि समूह बनाने का प्रावधान किया गया है। 15 अक्टूबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ग्रामीण महिलाओं के अंतराष्ट्रीय दिवस और भारत में राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2016 से, भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा कृषि के प्रत्येक स्तर के कार्यों में महिलाओं द्वारा निभाई जा रही अग्रणी भूमिका को रेखांकित करने के लिये  इस दिन को राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

चुनौतियां अनेक

महिलाओं का एक तय प्रतिशत विकास कार्यों में उनकी भागीदारी हेतु चिन्हित करने के साथ-साथ उसे जमीन तौर पर लागू करने में चुनौतियां हंै क्योंकि नीति निर्धारण कानून बनाने के पश्चात भी 30 प्रतिशत का लक्ष्य पूर्ण नहीं हो पा रहा है।  कानून, नियम, प्रावधानों और दिशा-निर्देशों के पालन में और लचीलापन महत्वपूर्ण है। ग्रामीण महिलाओं द्वारा किये गये श्रम, आवश्यकताओं का महत्व तथा उनके ऊपर काम के बोझ के संबंध में उत्पादक पुर्न उत्पादक सामुदायिक व भूमियों को परिलक्षित करते हुए कानून नियम व प्रावधानों व दिशा निर्देशों के पालन में लचीलापन व  संवदेनशीलता आवश्यक है। 

भागीदारी के लक्ष्यों को पूरा करने में कई कठिनाईयां हैं क्योंंकि लक्ष्य के रूप में संख्याबल व आंकड़ों की नहीं, महिला कृषकों का कौशल व क्षमता विकास करना आवश्यक है। जब तक नये रणनीति के अंतर्गत लक्ष्यों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जायेगा तब हमें उनके परिणाम, महिला कृषक रूचि समूह एफपीओ व कृषि स्र्टाटअप के रूप में परिलक्षित होंगे।

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