गेहूं -चने की फसल को चट कर रही इल्लियां
देपालपुर। पहले खरीफ में बारिश कहर बनकर टूटी तो किसानों के सपने चकनाचूर हो गए,फिर भी किसान ने हिम्मत करके जैसे – तैसे रबी के लिए खाद -बीज की व्यवस्था कर गेहूं -चने की बुआई कर ली। लेकिन अब किसानों के समक्ष इल्लियों (जड़ माहू) का नया संकट आ गया है,जो गेहूं -चने की फसल को चट कर रही है। इससे किसानों को रबी में भी नुकसान होने की चिंता सताने लगी है।
इस बारे में पीडि़त किसानों श्री गौरव पटेल पिपलोदा,श्री जितेंद्र तंवर बड़ोलीहोज , श्री जितेंद्र ठाकुर देपालपुर और श्री भारत परिहार जलोदियापंथ ने कृषक जगत को बताया कि क्षेत्र के जिन किसानों ने बगैर पानी छोड़े गेहूं की फसल बोई थी उन पर इल्लियों का हमला ज्यादा हुआ है और खड़ी फसलों के खेत सूखा दिए, वहीं जिन किसानों ने खेतों में पहले पानी देकर बुआई की थी वहां काले मुंह की हरी इल्लियां (सूंडी) फसलों की जड़ों को काट रही है। इससे पौधे सूख रहे हैं। इस मुसीबत से मुक्ति पाने के लिए किसान कई तरह के जतन कर रहे हैं ,फिर भी सफलता नहीं मिल रही है। जड़ माहू नामक यह कीट गेहूं, जौ आदि फ़सलों के भूमिगत तने और जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाता है। यह कीट जड़ों का रस चूसते हैं जिससे पौधों की पत्तियां सूखने लगती है।
कृषि वैज्ञानिकों की सलाह
इस बारे में आत्मा परियोजना इंदौर की उप संचालक श्रीमती शर्ली थॉमस ने बताया कि इस समस्या के समाधान के लिए क्षेत्रीय गेहूं अनुसन्धान केंद्र इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि बुआई से पहले बीज का उपचार इमिडाक्लोप्रिड 17।8 एस.एल. डेढ़ ग्राम बीज की दर से करना प्रभावी पाया गया है।सिंचाई से पहले उर्वरक /रेत/मिट्टी में थायमेथोक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी 100 ग्राम प्रति एकड़ मिलाएं। खड़ी फसल में संक्रमण होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 60 -70 मिली लीटर प्रति हेक्टर का छिड़काव करें। इस उपचार के बारे में फील्ड में जाकर किसानों को व्यक्तिगत रूप से भी सलाह दी जा रही है।