गाजर घास जागरूकता सप्ताह 16 से 22 अगस्त तक मनाया जाएगा
16 अगस्त 2024, जबलपुर: गाजर घास जागरूकता सप्ताह 16 से 22 अगस्त तक मनाया जाएगा – खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर द्वारा 16 से 22 अगस्त तक गाजर घास जागरूकता सप्ताह राष्ट्रीय स्तर पर अपने 24 केंद्रों, भाकृअप के समस्त संस्थानों, विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, स्कूल, कॉलेज एवं समाजसेवी संस्थाओं के माध्यम से मनाया जाएगा।
खरपतवार अनुसन्धान निदेशालय के निदेशक डॉ जे एस मिश्र ने पत्रकार वार्ता में गाजरघास को सभी के लिए गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि यह पूरे वर्ष भर खाली स्थानों एवं अनुपयोगी भूमि पर उगता और फलता फूलता रहता है। अब इसका प्रकोप धान, ज्वार, मक्का , मूंग, उड़द ,अरहर , सोयाबीन ,अरंडी , गन्ना,बाजरा , मूंगफली ,सब्जियों एवं उद्यानिकी फसलों में भी बढ़ रहा है। गाजरघास की जड़ों से एक विषैला रसायन निकलता है ,जिससे फसलों की वृद्धि बुरी तरह प्रभावित होती है।
पत्रकार वार्ता में विशेषज्ञों ने बताया कि इस खरपतवार के सम्पर्क में आने से मनुष्य को डर्मेटाइटिस , एग्जिमा ,एलर्जी , बुखार, दमा जैसी बीमारियां होती हैं। इसको अन्य चारे के साथ खा लेने से पशुओं में भी विभिन्न प्रकार के रोग पैदा होते हैं। दुधारू पशुओं के दूध में अजीब प्रकार की गंध एवं कड़वाहट आने लगती है। बाल झड़ने लगते हैं। इसका उन्मूलन जन भागीदारी से हाथ से दस्ताने पहनकर उखाड़ने और यांत्रिक विधियों से किया जा सकता है। लेकिन इसमें काफी श्रम, समय और खर्च लगता है। अनुसंधान कार्यों से पता चला है कि शाकनाशी रसायनों के प्रयोग से गाजर घास को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। शाकनाशी रसायनों में एट्राजिन, मेट्रिब्यूजिन, 2 -4 डी , ग्लाइफोसेट , पैराक्वाट आदि प्रमुख हैं। जैविक विधि से खरपतवारों का नियंत्रण उनके प्राकृतिक शत्रुओं मुख्यतः कीटों एवं वनस्पतियों द्वारा किया जाता है।जैविक विधि से गाजर घास के नियंत्रण के लिए कारगर ‘ जाइगोग्रामा बाइको लोराटा ‘ पर सघन शोध इस निदेशालय में किया गया और पाया गया कि यह पूर्ण रूप से सुरक्षित एवं कारगर उपाय है। यह कीट, गाजर घास की पत्तियों को पूरी तरह से खाकर पौधे को पत्ती रहित कर देता है और अंत में पौधे सूख जाते हैं। इससे नए बीज नहीं बन पाते हैं। पत्रकार वार्ता के दौरान निदेशालय के प्रधान वैज्ञानिक एवं गाजर घास जागरूकता कार्यक्रम के संयोजक डॉ पी के सिंह, डॉ दीपक पंवार ,डॉ जितेंद्र सोनी, डॉ अर्चना अनोखे एवं डॉ दीक्षा एमजी वैज्ञानिक प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
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