हिमाचल में भांग की खेती को मिली मंजूरी, राज्य को हर साल मिलेगा 1,000–2,000 करोड़ तक का फायदा
29 दिसंबर 2025, भोपाल: हिमाचल में भांग की खेती को मिली मंजूरी, राज्य को हर साल मिलेगा 1,000–2,000 करोड़ तक का फायदा – हिमाचल प्रदेश सरकार ने भांग की नियंत्रित खेती को मंजूरी देकर राज्य की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने की पहल की है। दशकों से जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली रूप में उगने वाली भांग अब औद्योगिक हेम्प (Industrial Hemp) के रूप में कानूनी और वैज्ञानिक ढांचे में लाई जा रही है। सरकार के इस फैसले से राज्य को हर साल 1,000 से 2,000 करोड़ रुपये तक अतिरिक्त राजस्व मिलने का अनुमान है।
अवैध पहचान से निकलेगी भांग, बनेगी औद्योगिक फसल
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि भांग केवल नशे से जुड़ी फसल नहीं है, बल्कि इसके औद्योगिक और औषधीय उपयोग की अपार संभावनाएं हैं। सरकार का उद्देश्य भांग को अवैध कारोबार से निकालकर एक कानूनी, सुरक्षित और लाभकारी उद्योग के रूप में स्थापित करना है। इसी सोच के तहत राज्य में “ग्रीन टू गोल्ड” पहल की शुरुआत की गई है।
इन जिलों से होगी शुरुआत
सरकार की योजना के तहत कुल्लू, मंडी और चंबा की घाटियों में औद्योगिक हेम्प की नियंत्रित खेती शुरू की जाएगी। इन क्षेत्रों में भांग पहले से प्राकृतिक रूप से उगती रही है, जिससे यहां इसकी खेती की संभावनाएं अधिक मानी जा रही हैं। खेती पूरी तरह निगरानी में होगी और तय मानकों के अनुसार ही उत्पादन किया जाएगा।
THC की मात्रा रहेगी सीमित
सरकार ने स्पष्ट किया है कि उगाई जाने वाली औद्योगिक भांग में THC (टेट्राहाइड्रो कैनाबिनोल) की मात्रा 0.3 प्रतिशत से कम रखी जाएगी। यह वैज्ञानिक रूप से तय सीमा है, ताकि फसल नशीली न बने और उसका दुरुपयोग न हो सके। कम THC के बावजूद इसमें फाइबर और बीज की गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है, जो उद्योगों के लिए उपयोगी होगी।
कई उद्योगों में होगा उपयोग
औद्योगिक हेम्प का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा सकता है, जिनमें- औषधीय उत्पाद और पेन रिलीफ दवाइयां, कपड़ा और परिधान उद्योग, कागज और पैकेजिंग सामग्री, कॉस्मेटिक और पर्सनल केयर उत्पाद, बायोफ्यूल और ऊर्जा क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ने से राज्य में नए उद्योग स्थापित होंगे और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
किसानों के लिए नया विकल्प
सरकार का मानना है कि औद्योगिक हेम्प उन किसानों के लिए बेहतर विकल्प बन सकती है, जो जंगली जानवरों, खासकर बंदरों के कारण पारंपरिक खेती छोड़ने को मजबूर हैं। यह ऐसी फसल है, जिसे जानवर कम नुकसान पहुंचाते हैं। साथ ही, कपास जैसी फसलों की तुलना में इसे करीब 50 प्रतिशत कम पानी की आवश्यकता होती है और यह कम उपजाऊ जमीन पर भी अच्छी पैदावार देती है। इसे जलवायु-सहनीय फसल माना जा रहा है।
शोध और बीज विकास पर जोर
किसानों को तकनीकी सहयोग देने के लिए पालमपुर स्थित सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय और नौणी स्थित डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय को इस योजना से जोड़ा गया है। ये संस्थान ऐसे बीज विकसित कर रहे हैं, जिनमें THC कम हो, उत्पादन अधिक मिले और जो हिमालयी परिस्थितियों के अनुकूल हों।
अन्य राज्यों के अनुभवों से ली गई सीख
इस नीति को लागू करने से पहले राज्य सरकार ने अन्य राज्यों के अनुभवों का अध्ययन किया। राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में बनी राज्य स्तरीय समिति ने उत्तराखंड के डोईवाला और मध्य प्रदेश का दौरा कर वहां नियंत्रित भांग की खेती से जुड़े कानूनी और व्यावहारिक पहलुओं का अध्ययन किया। समिति की रिपोर्ट को विधानसभा में प्रस्तुत कर मंजूरी दी गई।
हेम्प हब बनाने की तैयारी
सरकार का लक्ष्य केवल खेती तक सीमित नहीं है। प्रस्तावित “हेम्प हब” के जरिए हिमाचल को हेम्प आधारित उत्पादों के निर्माण का केंद्र बनाया जाएगा। इसमें हेम्पक्रिट जैसी पर्यावरण-हितैषी निर्माण सामग्री, विशेष कपड़े और आयुर्वेदिक उत्पाद शामिल होंगे। इससे स्टार्टअप्स को बढ़ावा मिलेगा और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर खुलेंगे।
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