State News (राज्य कृषि समाचार)

हरी खाद से लायें हरियाली

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30 मई 2023, भोपाल । हरी खाद से लायें हरियाली – कृषि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदंड भी है क्योंकि आज भी 70 प्रतिशत लोग इसी से परोक्ष – अपरोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। कृषि में हरी खाद के महत्व को दर्शाने की जरूरत ही नहीं है। जितनी पुरानी कृषि, हरी खाद का उपयोग भी उतना ही पुराना है। हरी खाद अर्थात् हरे पौधों को, कोमल पौधों को, तना पत्तियों सहित भूमि में मिलाकर उसकी भौतिक तथा रसायनिक दशा में सुधार लाना होता है। हमारी खाद्यान्नों की मांग की पूर्ति के उद्देश्य से कुछ दशकों से हमने अंधाधुंध उर्वरकों का उपयोग किया आज हमारे अन्न भंडार में क्षमता से अधिक अन्न भरा है। हम खाद्यान्नों के बारे में ना केवल आत्मनिर्भर हुए हैं। बल्कि अतिरिक्त उत्पादन के निर्यात के लिये भी हमारी क्षमता बढ़ती जा रही है इस दौड़ में हम, एक उद्देश्य में तो सफल हो गये कि अन्न बहुत पैदाकर सकें परंतु हमारी भूमि पर इसका क्या कितना विपरीत असर पड़ रहा है। आज यह चुनौती भी सामने आ रही है। इसी के निदान के लिये हमारी जैविक खेती का सबसे सस्ता सुलभ और आसान तरीका है हरी खाद का उपयोग जो कम प्रयास खर्च में अधिक लाभ देने में सक्षम है। क्योंकि इसका सीधा असर मिट्टी में जीवन संचार पैदा करना होता है। हरी खाद के उपयोग से चालू खेती तो क्या बंजर भूमि भी धीरे-धीरे उपजाऊ बनाई जा सकती है। मिट्टी में छिपे सूक्ष्म जीवाणु का भोजन कार्बनिक पदार्थ होता है और हरी खाद के उपयोग से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ उपलब्ध हो जाते हैं। इस कारण से जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। इसके अलावा एक हेक्टर की हरी खाद चाहे वो सनई या ढेंचा 18 से 20 टन तक हरा पदार्थ देने की क्षमता रखती है जिससे भूमि को 50 किलो नत्रजन, 18 किलो स्फुर तथा 70 किलो पोटाश आसानी से उपलब्ध हो जाता है। हरी खाद के उपयोग में दो-तीन सावधानियां जरूरी हैं। एक सही फसल का चयन, समय से बोनी तथा कोमल अवस्था में उसका भूमि में मिलाना जितना मुलायम अवस्था में बखरी जायेगी उतना ही अधिक पोषक तत्व प्राप्त हो सकेगा तथा उसका विघटन भी जल्द से जल्द होगा। हरी खाद के लिये ढेंचा की किस्म सिसबेनिया रोस्ट्रेटा बहुत अच्छी मानी गई है। इसके तनों पर भी ग्रंथियां होती हैं जो जल्दी विघटन में सहायक होती है। हरी खाद के रूप में सबसे अच्छे परिणाम खरीफ फसल के पहले ग्रीष्मकाल में लिये जा सकते हंै ताकि उसका असर खरीफ-रबी तथा जायद तक की फसलों पर देखा जा सके। सिंचाई व्यवस्था होने पर अप्रैल-मई में हरी खाद की फसल लगाकर एक माह पश्चात उसे खेत में मोड़ दिया जाये तो आने वाली सभी फसलों को उसका लाभ मिल सकेगा। रबी प्याज तथा गन्ना वाले खाली खेतों में यदि हरी खाद का उपयोग किया गया हो तो महंगे उर्वरकों की लागत उनकी मात्रा घटाकर हरी खाद से उसकी पूर्ति करना लाभकारी खेती का एक विशिष्ट अंग होगा इसी तरह केला तथा कपास जिनकी उर्वरक मांग ज्यादा है को लगाने के पहले यदि हरी खाद का उपयोग किया जाये तो लागत घटाकर शुद्ध लाभ ज्यादा पाया जा सकता है। हरी खाद के उपयोग के अनगिनत लाभ हैं। कृषकों को चाहिये कि यदि उसकी खेती में रसायनिक उर्वरक के खर्च पैर पसारने लगे हों और खेत की भूमि के स्वास्थ्य में खराबी आने लगी है तो यथासम्भव इसी मौसम से अपने खेत में हरी खाद लगाकर उसका लाभ प्राप्त करें।

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