खाद्यान्न उत्पादन में बिहार की छलांग, दो दशक में 192% वृद्धि; मक्का, चावल और गेहूं में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोतरी
01 अक्टूबर 2025, भोपाल: खाद्यान्न उत्पादन में बिहार की छलांग, दो दशक में 192% वृद्धि; मक्का, चावल और गेहूं में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोतरी – बिहार ने पिछले दो दशकों में कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। वर्ष 2004-05 से लेकर 2023-24 तक खाद्यान्न उत्पादन में 192 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। इस अवधि में कुल उत्पादन 79.06 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 231.15 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, जो राज्य की कृषि प्रगति का शानदार उदाहरण है।
यह सफलता केवल उत्पादन में ही नहीं, बल्कि प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी देखने को मिली है। 2004-05 में जहां प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 12.11 क्विंटल थी, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़कर 33.86 क्विंटल हो गया है, जो 179 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्शाता है। इस वृद्धि ने बिहार को देश के कृषि मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान दिलाया है।
मक्का उत्पादन में जबरदस्त उछाल
मक्का उत्पादन में बिहार ने पिछले 19 वर्षों में अद्भुत वृद्धि दर्ज की है। वर्ष 2004-05 में मक्का का उत्पादन 14.91 लाख मीट्रिक टन था, जो अब 58.65 लाख मीट्रिक टन से भी ऊपर पहुंच गया है, यानि लगभग 293% की वृद्धि हुई है।
मक्का की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी दोगुनी से अधिक बढ़कर 23.79 क्विंटल से 61.38 क्विंटल हो गई है। इसके पीछे राज्य में स्थापित 17 इथेनॉल प्लांट्स का अहम योगदान माना जाता है, जिसने मक्का की मांग को बढ़ाने के साथ-साथ खेती के लिए भूमि के विस्तार को भी प्रेरित किया है। अब मक्का की खेती लगभग 9.55 लाख हेक्टेयर में हो रही है।
चावल और गेहूं उत्पादन में चार गुना वृद्धि
चावल उत्पादन भी बिहार में अभूतपूर्व वृद्धि का हिस्सा है। 2004-05 में जहां चावल का उत्पादन 26.25 लाख मीट्रिक टन था, वहीं यह अब बढ़कर 95.23 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच चुका है, जो लगभग 263% की वृद्धि है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी 14.15 क्विंटल से बढ़कर 30.62 क्विंटल हो गई है।
गेहूं उत्पादन में भी तेजी देखी गई है। वर्ष 2004-05 में 32.79 लाख मीट्रिक टन उत्पादन से यह बढ़कर 73.07 लाख मीट्रिक टन हो गया है, जो 122.84% की वृद्धि को दर्शाता है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी लगभग दोगुनी बढ़ोतरी हुई है।
हालांकि, इन बड़ी उपलब्धियों के बावजूद किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हो पाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि उत्पादन बढ़ने के बावजूद किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, जिससे लाभ का वितरण असमान बना हुआ है।
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