राज्य कृषि समाचार (State News)

बीजोपचार के फायदे: किसानों की जुबानी

16 जून 2025, इंदौर: बीजोपचार के फायदे: किसानों की जुबानी –  बुवाई से पहले बीजों का उपचार किया जाना आवश्यक है। किसानों द्वारा बीजोपचार प्रायः कीटनाशक या फफूंदनाशक से किया जाता है।  बीजोपचार से होने वाले लाभों को लेकर कुछ किसानों ने अपने अनुभव साझा किए।

खरगोन जिले के  ग्राम बिठेर  के श्री गजेंद्र पाटीदार ने  इस वर्ष खरीफ में कॉटन और पपीता लगाया है। वहीं श्री राजेश पाटीदार ( खामखेड़ा ) ने भी 10  एकड़ में कपास लगाया है। इन दोनों का कहना था कि चूँकि कपास का बीज कम्पनी से ही उपचारित होकर आता है ,  इसलिए इसका बीजोपचार नहीं करना पड़ता है। लेकिन सोयाबीन आदि फसल में बीजोपचार करने से अच्छा अंकुरण होता है। श्री राधेश्याम पाटीदार ( इटावदी ) ने कहा कि 17  बीघे में सोयाबीन लगाएंगे। बीजोपचार के लिए  यूपीएल  का  साफ नामक फफूंदनाशक इस्तेमाल करते हैं। इससे बीज का अंकुरण अच्छा होता है । फसल रोग और कीट से मुक्त रहती है। गत वर्ष भी इसके अच्छे नतीजे मिले थे। वहीं  ग्राम धरगांव  के श्री विष्णु आर्य पाटीदार ने कहा कि 12  बीघा में  सोयाबीन  लगाने की तैयारी कर ली है। वर्षा का इंतज़ार है। बीजोपचार के लिए बॉयर का एवरगोल एक्सटेंड  इस्तेमाल करते हैं। इससे बीज का अंकुरण अच्छा होता है और फसल भी स्वस्थ रहती है। जबकि श्री दीपक पाटीदार (गुलावड ) ने कहा कि सोयाबीन में बीजोपचार के लिए बीएएसएफ के फफूंदनाशक उत्पाद झेलोरा उपयोग करते हैं। इससे अंकुरण अच्छा होता है। नीचे ज़मीन में फंगस नहीं लगता है। पौधों की बढ़वार भी अच्छी होती है। यदि बीजोपचार के समय साथ में ह्यूमिक एसिड का भी प्रयोग कर लिया जाए तो बहुत बढ़िया परिणाम मिलते हैं। वहीं नरसिंहपुर जिले  गाडरवारा के किसान श्री रामशरण ने बीजोपचार को कृषि की पहली कड़ी बताते हुए कहा कि अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई से पूर्व बीजोपचार अवश्य करना चाहिए।  बीजोपचार के लिए इंडोफिल के उत्पाद स्प्रिंट का इस्तेमाल करते हैं।  यह बीज को स्पर्शी और अंतर्प्रवाही प्रणाली से दोहरी सुरक्षा प्रदन करता है।  इससे अच्छे अंकुरण के साथ ही स्वस्थ पौधों का विकास होता है। जबकि सागर जिले के रहली के श्री किशनलाल ने बीजोपचार के लिए जीएसपी क्रॉप साइंस के उत्पाद पीसीटी -410  पर भरोसा जताते हुए कहा कि सोयाबीन की फसल के लिए बीजोपचार  में पीसीटी -410  कारगर साबित हुआ है। यह पौधों को जड़ / तना सड़न से तो बचाता ही है ,अन्य कीटों से भी सुरक्षा प्रदान करता है। जबलपुर जिले के  सिहोरा के किसान श्री रमेशचंद्र ने कहा कि बीजोपचार के लिए धानुका का  विटावैक्स पावर का इस्तेमाल करते हैं। इस  फफूंदनाशक में कार्बोक्सिन और थायरम होता है , जो यह प्रतिकूल मौसम में भी बीज का अंकुरण करने के साथ ही पौधे को दोहरी सुरक्षा देता है। इससे पौधे स्वस्थ रहते हैं।

जैविक खेती में बीजोपचार –   जैविक खेती में रासायनिक दवाइयों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है ,ऐसे में बुवाई से पहले जैविक खेती में बीजोपचार कैसे किया जाता है ,इसे लेकर कुछ जैविक कृषकों से चर्चा की जिसमें उन्होंने अपने अनुभव साझा किए।

ग्राम छोटी कसरावद जिला खरगोन के जैविक कृषक श्री महेंद्र सिंह मंडलोई ने कृषक जगत को बताया कि बीजोपचार के लिए गोमूत्र , गोबर , चूना मिट्टी और पानी से निर्मित प्राकृतिक घोल का इस्तेमाल करते हैं। इस साल इन्होंने 4 एकड़ में नॉन  बीटी कपास लगाया है। आपने जैविक घोल बनाने की विधि भी बताई, जो  इस प्रकार है –

जैविक घोल  बनाने की विधि – देसी गाय का गोबर 5  किलो ,देसी गाय का गोमूत्र 5 लीटर ,चूना  250  ग्राम, पानी 20 लीटर , जैविक खेत की मिट्टी मुट्ठी भर।  इन सब पदार्थों को घोलकर 24  घंटे के लिए रखें। इस दौरान घोल को दिन में दो बार लकड़ी से हिलावें।इसके बाद इस घोल से बीजों का उपचार करें और बीजों को छाया में सुखाने के बाद  बुवाई करें।

ग्राम कसरावद बुजुर्ग के श्री पीयूष पाटीदार ने कपास और पपीता लगाया है। बीजोपचार के लिए बीजामृत का इस्तेमाल करते हैं। फसल में ट्राइकोडर्मा और माइकोराजा का भी इस्तेमाल करते हैं, ताकि मिट्टी  में जीवाणु बढ़ जाएं । इसके अलावा  1 हज़ार लीटर पानी में 10  किलो गुड़ घोलकर ड्रिप में छोड़ देते हैं। इससे भी कीटों का बचाव हो जाता है। जबकि दोगांवा के जैविक कृषक श्री कमल नामदेव का कहना था कि कपास लगा दिया है। सोयाबीन की बुवाई बाकी है। सोयाबीन में भी बीजोपचार इसलिए नहीं करते , क्योंकि घर का बीज शुद्ध रहता है, इसलिए अंकुरण की समस्या नहीं आती है।  दूसरा यह कि लगातार जैविक खेती से  मिट्टी का स्वास्थ्य भी सुधरने लगता है , जिससे कीटों की समस्या भी कम आती है। वहीं ग्राम चिचली  के जैविक कृषक श्री संजय शर्मा ने कहा कि नॉन बीटी कपास लगाया है।  इसके  अलावा मक्का और देसी ज्वार भी लगाएंगे । बीजोपचार के लिए बीजामृत का उपयोग करते हैं। साथ में नीला थोथा, चूना और ब्लू कॉपर के संतुलित घोल का भी प्रयोग करते हैं।  इससे कीट एवं रोगों की समस्या कम आती है। श्री शर्मा ने कहा कि जैविक उत्पाद पूर्णतः शुद्ध और  स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होते हैं, लेकिन खेद है कि सरकार द्वारा इनके लिए मंडी में बिक्री के लिए कोई अलग व्यवस्था नहीं की जाती है, इससे जैविक कृषकों को अपनी उपज का उचित और वास्तविक दाम नहीं मिल पाता है। जैविक उपज की बिक्री के लिए पृथक व्यवस्था की जानी चाहिए।

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