State News (राज्य कृषि समाचार)

सावधान हो जाइए-अंतरिक्ष से हो रही नरवाई जलाने की निगरानी

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प्रशासन को तुरन्त मिलेगा ‘अलर्ट’

  • (राजेश दुबे)

30 नवंबर 2021, भोपाल । सावधान हो जाइए- अंतरिक्ष से हो रही नरवाई जलाने की निगरानी – हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण लगे लॉक डाउन ने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया। हर स्तर पर शासन और प्रशासन सतर्क और सक्रिय हो गया। इन दिनों बढ़ते वायु प्रदूषण के लिये नरवाई या पराली जलाने की घटनाओं को भी एक प्रमुख कारण माना जाता है। भारत शासन ने इन घटनाओं की निगरानी करने और रोकथाम के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान को निर्देशित किया है। भा.कृ.अनु.सं. अंतरिक्ष से कृषि परिस्थितिकी तंत्र की निगरानी और मॉडलिंग के लिये बनाए गए संगठन – क्रिम्स के उपग्रह के माध्यम से पूरे देश में नरवाई/पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी कर रहा है। क्रिम्स के आंकड़ों के अनुसार देश में नरवाई जलाने के सर्वाधिक मामले नवम्बर माह में सामने आ रहे हैं। नवम्बर में अब तक कुल 83 हजार मामले सामने आ चुके हैं। इस महीने खरीफ की प्रमुख फसल धान की हार्वेस्टर से कटाई के बाद बचे डंठलों को जला दिया जाता है।

पंजाब की राह पर मध्य प्रदेश

हमारे लिए अफसोसनाक खबर यह है कि इनमें पंजाब और हरियाणा के बाद सर्वाधिक 4910 घटनाएँ म.प्र. में हुई हैं। पंजाब में अभी तक 68 हजार 896 घटनाएँ, हरियाणा में 5 हजार 548 और छत्तीसगढ़ में मात्र 131 एवं राजस्थान में 903 नरवाई जलाने के मामले उपग्रह से निगरानी के दौरान सामने आए हंै।
शासन-प्रशासन हुआ सतर्क

म.प्र. में नरवाई जलाने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए शासन और प्रशासन सतर्क हो गया है। म.प्र. के अतिरिक्त मुख्य सचिव कृषि श्री अजीत केसरी ने प्रदेश में इस तरह की घटनाओं की निगरानी एवं रोकथाम के लिये सभी आयुक्त एवं जिलाध्यक्षों को नियमित निगरानी एवं सख्त कार्यवाही के लिये निर्देशित किया है।

अतिरिक्त मुख्य सचिव कृषि ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि वर्ष 2020 में पंजाब के बाद नरवाई जलाने की सर्वाधिक 49 हजार 482 घटनाएं म.प्र. में हुई हैं। प्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाएं मुख्यत: गेहूं की फसल कटाई के बाद होती है। परन्तु अब खरीफ की धान फसल की कटाई के बाद भी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। प्रदेश में वर्ष 2020 में खरीफ फसलों के बाद नरवाई जलाने की 12 हजार 501 घटनाएं सेटेलाइट के माध्यम से चिन्हित की गई हंै। प्रदेश में कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय, क्रिम्स के सहयोग से प्रदेश में नरवाई जलाने की घटनाओं के आसमानी निगरानी की दैनिक रिपोर्ट कलेक्टर्स को भेज रहा है। रिपोर्ट में जिले, ब्लॉक, तहसील एवं ग्रामवार नरवाई जलाने की घटना की जानकारी होती है। जिसके आधार पर प्रशासन घटना स्थल पर तुरंत कार्यवाही कर रहे हैं।

नरवाई जलाने के कारण क्या हैं?

गेहूं या धान की फसल कटने के पश्चात जो अवशेष बचे रहते हैं उन्हें नरवाई या पराली कहते हैं। आजकल इन फसलों की कटाई हार्वेस्टर द्वारा की जाती है, जिसके बाद फसल के अवशेष नरवाई के रूप में शेष रह जाते हैं। जिसे निकालने के लिये खेत में स्ट्रा रीपर या रोटावेटर का उपयोग करना पड़ता है। इससे कटाई की लागत में वृद्धि की संभावना को देखते हुए किसान सस्ता और सरल उपाय नरवाई में आग लगाने का चुनते हैं। लेकिन यह पर्यावरण, भूमि की उर्वरा शक्ति और सामाजिक स्तर पर नुकसानदायक है। हालांकि कृषि विभाग द्वारा नरवाई से निपटने के उपायों की जानकारी देते हुए किसानों को जागरूक करने के प्रयास निरंतर किये जा रहे हैं।

10 जिले जहां लगती ज्यादा आग

1. सिवनी
2. होशंगाबाद
3. श्योपुर
4. दतिया
5. सतना
6. जबलपुर
7. सीहोर
8. ग्वालियर
9. रायसेन
10 अशोकनगर

(स्रोत: क्रिम्स)

उल्लेखनीय है कि खरीफ में धान की कटाई के बाद तथा रबी में गेहूं की कटाई के बाद नरवाई जलाने की घटनाओं में बढ़ौत्री होती है। इससे वायु प्रदूषण भी बढ़ता है और भूमि उपजाऊ क्षमता भी प्रभावित होती हैं। विशेष रूप से धान की कटाई के समय तक शीत ऋतु प्रारंभ हो जाने के कारण वायु प्रदूषण अधिक होता है। यदि प्रदेश में नरवाई जलाने की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश नहीं लगा तो वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच सकता है। इसके लिये शासन की सख्त कार्रवाई के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक होना होगा।

पंजाब में पराली जलने  से हुई धूप कम

ठंड के मौसम में राहत देने वाली धूप पंजाब वासियों को अब कम राहत दे रही है, क्योंकि धूप की तेजी व अवधि दोनों में कमी आई है। वायुमंडल में नमी व प्रदूषण बढऩे के कारण जो परत जम रही है, उसके कारण यह स्थिति निर्मित हो रही है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अध्ययन से निष्कर्ष निकला है कि धान की कटाई के बाद वातावरण में नमी की अधिकता से धान की पराली जलाने पर निकलने वाला धुआं स्मॉग के रूप में परिवर्तित हो जाता है जो सूर्य की किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने में बाधित करता है। खरीफ के सीजन में पहले औसतन साढ़े नौ घंटे धूप खिलती थी जिसकी अवधि अब लगभग 8 घंटे 24 मिनट हो गई है।

कोरोना संक्रमण के कारण भारत मैं लॉक डाउन किसानों पर भारी

क्रिम्स क्या है?

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द कंसार्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एण्ड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (क्रिम्स), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) नई दिल्ली की एक अंत: विषय अनुसंधान पहल है, जो संस्थान के कृषि भौतिकी विभाग द्वारा समन्वित की जाती है। यह कंसार्टियम भारत में दूरस्थ स्तर तक फसल पर्यावरण के मूल्यांकन के लिये स्वयं के उपग्रह से रिमोट सेन्सिंग द्वारा अनुसंधान करता है।

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