जैविक उत्पादों की बिक्री पर रोक : सीजन के बीच में कार्यवाही क्या न्यायसंगत है ?
लेखक: सुनील गंगराड़े
05 अगस्त 2025, भोपाल: जैविक उत्पादों की बिक्री पर रोक : सीजन के बीच में कार्यवाही क्या न्यायसंगत है ? – नकली और अप्रमाणित कृषि आदानों पर अंकुश लगाने की दिशा में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देशों के बाद राज्यों की कृषि मशीनरी हरकत में आ गई है। सीहोर से शुरू हुई कार्यवाही अब अन्य जिलों में भी तेज़ी पकड़ रही है, जिससे किसानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास तो हुआ है, लेकिन इसके तत्काल प्रभाव से व्यापारी वर्ग और किसानों दोनों में असंतोष की स्थिति बन गई है। मध्य प्रदेश में सीहोर, रतलाम एवं अन्य जिले के कृषि आदान डीलर लामबंद हो, विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रशासन द्वारा इस प्रकार के कदम जरूरी है तो क्या इसे और प्रभावी एवं समावेशी तरीके से लागू नहीं किया जा सकता था?
नकली खाद- बीज की बिक्री पर लगाम लगाने केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह के स्पष्ट निर्देशों के पालन में राज्यों की कृषि मशीनरी सक्रिय हो गयी है। इसी परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय मंत्री के संसदीय क्षेत्र सीहोर जिले के उप संचालक कृषि ने लीड लेते हुए बिना अनुमति जैविक उत्पादों और बायो स्टिमुलेंट की बिक्री पर रोक लगा दी है और 7 दिन में स्टॉक हटाने के आदेश भी दिए हैं, जिसके विरोध में जिले के एग्रो इनपुट व्यापारी और उनके संगठन सड़क पर उतर आये हैं। इसी तर्ज पर देश और प्रदेश के अन्य जिलों में कृषि आदान व्यपारी वर्ग के खिलाफ कार्यवाही हो रही है। जब खरीफ सीजन में उर्वरक, कीटनाशक का बाज़ार तेजी पर है इस प्रकार की रोक की कार्यवाही से व्यापारी वर्ग में असंतोष है।
केंद्रीय स्तर के दिशा-निर्देश
कृषि मंत्रालय से हाल ही में मिले निर्देश से राज्यों को तत्काल कार्रवाई करनी पड़ रही है। और फील्ड रिपोर्ट के अनुसार अगर कई जिलों से नकली, अनुपयोगी या अप्रमाणित उत्पादों की बढती शिकायतें आ रही थीं, तो प्रशासन ने आपातकालीन सख्ती बरती। ये भी स्थापित तथ्य है कि खेती में बायो स्टिमुलेंट और जैव उत्पादों का अनियंत्रित प्रसार हो रहा था। ये उत्पाद बड़ी संख्या में बाज़ार में बिना रजिस्ट्रेशन घुस चुके थे-जिससे किसानों का विश्वास और फसल दोनों प्रभावित हो रहे थे।
व्यापक दृष्टि से किसानों के हित में ये एक सार्थक लेकिन संतुलन की माँग करने वाला कदम है। कृषि विभाग की इस कार्यवाही से प्रमाणित उत्पादों की उपलब्धता बढ़ेगी, वहीं नकली, मिलावटी या अप्रमाणित उत्पादों से फसल को होने वाले नुकसान से बचाव होगा। इसी के साथ किसान भ्रम में नहीं रहेंगे। किसान अक्सर वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में प्रचारित उत्पादों पर भरोसा कर लेते हैं। जबकि प्रमाणित उत्पादों के प्रभाव अधिक सटीक और भरोसेमंद होते हैं। इस तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि जिन उत्पादों से किसान पहले लाभ ले रहे थे, वे यदि अस्थायी रूप से बाजार से हटते हैं तो उन्हें विकल्प की तलाश में परेशानी होगी। वहीं शार्ट सप्लाई के कारण कुछ प्रमाणित उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं। और छोटे दुकानदारों को बेचने की अनुमति नहीं मिलने से किसान को प्रमाणित स्रोत तक पहुँचना कठिन हो सकता है। ऐसी स्थिति में कृषि विभाग की मैदानी फौज को किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता है। विस्तार अधिकारी किसानों को सरल भाषा में बताएं कि कौन से उत्पाद प्रतिबंधित हैं और क्यों। साथ ही प्रमाणित उत्पादों की सूची सार्वजनिक करें।
जैविक उत्पादों की बिक्री पर रोक…
यह सख्ती सीजन की शुरुआत में क्यों नहीं लागू की गई?
आदर्श स्थिति में कृषि विभाग द्वारा खरीफ या रबी सीजन शुरू होने से पहले (मार्च-अप्रैल या सितंबर-अक्टूबर में) सभी नियम, निर्देश और उत्पादों की मान्यता स्पष्ट की जाती। व्यापारियों को तैयारी का वक्त मिलता और लाइसेंस बनवाने, स्टॉक खरीदने और माल बेचने से पहले वे नियमन में आ जाते। वास्तव में, जिन व्यापारियों ने पहले से जैविक उत्पादों या बायो-स्टिमुलेंट्स का स्टॉक खरीद कर रखा है- वे सबसे अधिक आर्थिक जोखिम में हैं। वे अब बिना अनुमति वाले उत्पादों को वे अब बेच नहीं सकते। ये उत्पाद समय के साथ खराब या एक्सपायर भी हो सकते हैं। अचानक प्रतिबंध से ग्राहक के सामने उनकी साख पर भी असर पड़ सकता है। वहीं किसान भी भ्रम में नहीं पड़ते, और उन्हें गलत उत्पाद लेने से रोका जा सकता था। ‘इज़ ऑफ डूइंग बिजऩेसÓ के दौर में इस प्रकार की कार्यवाही बड़े पैमाने पर व्यापार और उद्योग जगत को हतोत्साहित करती है।
समाधान के उपाय
कृषि विभाग को चाहिए कि विक्रेताओं को लाइसेंस प्रक्रिया में सहयोग दें। ऑनलाइन व सरल लाइसेंसिंग प्रणाली तैयार करें ताकि इच्छुक विक्रेता वैध रूप से उत्पाद बेच सकें। 7 दिन की बजाय व्यावहारिक समय सीमा (जैसे 15-20 दिन) दें ताकि स्टॉक हटाने और आवेदन की प्रक्रिया पूरी हो सके। निरोधात्मक कार्यवाही के साथ-साथ मार्गदर्शन भी दें। दंड के साथ शिक्षात्मक कार्यशालाएँ भी संचालित करें। जिला स्तर पर ‘प्रशिक्षित उर्वरक सलाहकार’ की नियुक्ति करें।
सख्ती बनाम सहयोग – क्या प्रशासन संतुलन साध पा रहा है?
यह निर्णय किसानों की लंबी अवधि की सुरक्षा और फसल गुणवत्ता को देखते हुए जरूरी है, लेकिन इसे लचीले और मार्गदर्शक तरीके से लागू करना होगा, जिससे न तो किसान और न ही छोटे विक्रेता अनावश्यक रूप से प्रभावित हों। कृषि विभाग को सख्ती और सहयोग के बीच संतुलन साधना होगा। वर्ष या सीजन की शुरुआत में नियम लागू करना न केवल उचित प्रशासनिक प्रबंधन का प्रतीक है, बल्कि यह व्यापारियों और किसानों-दोनों के हितों की रक्षा करता है। अभी जो सख्ती की गई है, वह यदि पूर्व नियोजन से होती, तो आक्रोश, भ्रम और नुकसान-तीनों टाले जा सकते थे।
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