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अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजना की बैठक, बकरी पालन में तकनीकी सुधार की योजनाएं

15 अक्टूबर 2024, पालमपुर: अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजना की बैठक, बकरी पालन में तकनीकी सुधार की योजनाएं – हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित डीजीसीएन कॉलेज ऑफ वेटरिनरी एंड एनिमल साइंसेज में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) के तहत बकरी सुधार की वार्षिक समीक्षा बैठक का आयोजन हुआ। इस बैठक में देशभर के 30 केंद्रों से 35 वैज्ञानिक और प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसका उद्देश्य बकरी पालन में सुधार और ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिए किए गए कार्यों की समीक्षा और भविष्य की रणनीतियों पर चर्चा करना है।

उन्नत बकरी नस्लों के विकास पर फोकस

ICAR-सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन गोट्स (CIRG) के निदेशक डॉ. एम.के. चैटली ने परियोजना के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य बकरियों की आनुवंशिक क्षमता बढ़ाना है। बैठक में उन्नत प्रजनन तकनीकों, जैसे कृत्रिम गर्भाधान (AI) को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। बेहतर नस्लों के लिए जर्मप्लाज्म और वाणिज्यिक झुंडों की स्थापना की जरूरत भी रेखांकित की गई।

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ICAR के उपमहानिदेशक डॉ. राघवेंद्र भट ने बताया कि देश में 15 करोड़ बकरियां हैं और आगामी पशुधन जनगणना में बकरी की आबादी में और वृद्धि की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि बकरियों का जलवायु सहनशीलता के कारण पशुधन में महत्व बढ़ रहा है और बकरी के उत्पादों के औषधीय गुणों पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है। मेट्रो शहरों में कम वसा वाले बकरी मांस की बढ़ती मांग और बकरी के दूध के स्वास्थ्यवर्धक गुणों पर भी चर्चा की गई।

ग्रामीण आजीविका और आय बढ़ाने के प्रयास

बैठक की अध्यक्षता कर रहे पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नवीन कुमार ने कहा कि बकरी पालन राज्य के कृषि-जलवायु क्षेत्रों में आय का महत्वपूर्ण स्रोत है। उन्होंने बकरी और भेड़ पालन के एकीकरण तथा प्राकृतिक खेती के साथ इनका संयोजन करने की जरूरत बताई। दामिनी जैसे मौसम-आधारित मोबाइल ऐप्स का उपयोग कर जोखिम प्रबंधन पर भी जोर दिया गया।

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डॉ. भट ने कहा कि राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) के माध्यम से बकरी नस्लों के बौद्धिक संपदा (IP) प्रबंधन को सुरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने जमनापारी नस्ल का उल्लेख करते हुए बताया कि यह नस्ल रोजाना 4 लीटर दूध देने में सक्षम है और उचित आहार से इसका उत्पादन और वजन और बेहतर हो सकता है।

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बैठक के दौरान सभी वैज्ञानिकों ने बकरी उत्पादक संगठनों (FPOs) को बढ़ावा देने और जलवायु-अनुकूल नस्लों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।

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