आधुनिक कृषि में उत्कृष्ठ पौध पोषण प्रबंधन एवं मृदा स्वास्थ्य संरक्षण हेतु वरदान: इफको नैनो उर्वरक
लेखक: डॉ. दिनेश कुमार सोलंकी 1 , संतोष रघुवंशी 2
21 मई 2025, भोपाल: आधुनिक कृषि में उत्कृष्ठ पौध पोषण प्रबंधन एवं मृदा स्वास्थ्य संरक्षण हेतु वरदान: इफको नैनो उर्वरक – पौधे को अपने जीवनकाल में समग्र विकास हेतु 17 पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें से नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम प्राथमिक पोषक तत्व हैं, जिनका योगदान पौधे के विकास में सर्वाधिक होता है। इन पोषक तत्वों की पूर्ति कृत्रिम रूप से जैविक एवं रासायनिक स्रोतों के माध्यम से की जा सकती है, परंतु जैविक स्रोतों में इनकी मात्रा अत्यंत अल्प होने के कारण विभिन्न रासायनिक उर्वरक ही एकमात्र विकल्प रह जाते हैं, जैसे कि नाइट्रोजन के लिए यूरिया, फास्फोरस के लिए सुपर फास्फेट , डीएपी, एनपीके और पोटेशियम के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रचलित उर्वरक हैं । भारत में प्रति वर्ष लगभग 475 लाख टन यूरिया, डीएपी, एनपीके एवं पोटाश उर्वरकों की आवश्यकता होती है। जिस पर 2.60 लाख करोड़ का अनुदान शासन द्वारा दिया जाता है। ये समस्त उर्वरक मुख्यत: नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम तत्त्व ही प्रदान कराते हैं । साथ ही इन पोषक तत्त्वों की उपयोग दक्षता अत्यंत कम है, जैसे कि नाइट्रोजन 30-25%, फास्फोरस 10-20% एवं पोटेशियम 25-30% ही पौधों को उपलब्ध हो पाते हैं, शेष मात्रा या तो किसी अन्य रूप में वातावरण में चली जाती है या फिर स्थिरीकरण के द्वारा भूमि में ही अनुपलब्ध अवस्था में पड़ी रहती है। फसल को दी जाने वाली नाइट्रोजन की कुल मात्रा में से लगभग 60-70 % या तो नाइट्रस ऑक्साइड से रूप में परिवर्तित होकर जलवायु परिवर्तन एवं वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी होती है या फिर जल स्रोतों को प्रदूषित करती है।
नाइट्रोजन के दुष्प्रभावों से बचने के लिए विभिन्न संस्थाओं एवं अनुसंधान संस्थानों द्वारा सतत अनुसंधान किया जा रहा है। इसी क्रम में वर्ष 2021 में इंडियन फारमर्स फर्टिलायज़र कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने विश्व का पहला नैनो यूरिया (तरल) प्रस्तुत किया है जिसे उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ, 1985), भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया है। जिसे 2024 में नैनो यूरिया प्लस (तरल) के रूप संशोधित किया गया जिसमें 20.0% नाइट्रोजन (w/v) है।
नैनो नाइट्रोजन कण आकार 20-50 nm होता है, जो कि कैप्सुलेटेड नाइट्रोजन एनालॉग्स या एक कार्बनिक मैट्रिक्स पर गुथे होते हैं। सामान्य यूरिया के एक कण से नैनो यूरिया के 55000 कण बनाए जाते हैं जिससे सामान्य यूरिया की अपेक्षा नैनो यूरिया का सतही क्षेत्रफल 10000 गुना अधिक हो जाता है। ये कण पानी में समान रूप से बिखरे हुए हैं। नैनो यूरिया अपने छोटे आकार (20-50 nm), प्रति इकाई क्षेत्र कणों की संख्या, अधिक सतही क्षेत्रफल और उच्च उपयोग दक्षता (80 %) के कारण पादप तंत्र में नाइट्रोजन की उपलब्धता को बढ़ाता है। जब पौधे की पत्तियों पर महत्वपूर्ण वृद्धि चरणों में छिड़काव किया जाता है, तो यह रंध्र और अन्य छिद्रों के माध्यम से प्रवेश करता है और पौधे की कोशिकाओं द्वारा आत्मसात कर लिया जाता है। जहां जितनी भी इसकी आवश्यकता होती है, यह फ्लोएम तंत्र के माध्यम से परिवहित होकर पादप तंत्र के अंदर तक वितरित हो जाता है।
नैनो यूरिया समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन का एक संभावित घटक है क्योंकि यह सटीक और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देता है। यह स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकी में भी योगदान है क्योंकि इसके औद्योगिक उत्पादन में न तो गहन ऊर्जा और न ही अधिक संसाधन की खपत है। इसके अलावा, नैनो यूरिया लीचिंग और गैसीय उत्सर्जन के रूप में कृषि क्षेत्रों से पोषक तत्वों के नुकसान को कम करके कार्बन पदचिह्न, जो पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का कारण बनता था, को कम करने में मदद करता है।
इफको नैनो यूरिया जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा OICD परीक्षण दिशानिर्देशों (TG) और नैनो कृषि-इनपुट (NAIP) और खाद्य उत्पादों के परीक्षण के लिए दिशानिर्देशों के अनुरूप है।
नैनो यूरिया के लाभ:
- जैव सुरक्षित एवं पर्यावरण हितैषी
- फसल उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि
- पारंपरिक यूरिया से सस्ता
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार
- भंडारण एवं परिवहन में सुविधा
- कीट एवं बीमारियों का प्रकोप कम
- बारानी खेती हेतु सर्वथा उपयुक्त
नैनो यूरिया प्लस (तरल) के उपयोग की विधि
नैनो यूरिया प्लस (तरल)की 4 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पत्तियों पर छिड़काव किया जाता है । इस प्रकार एक एकड़ क्षेत्र के लिए 500 मिली नैनो यूरिया प्लस (तरल) को 125 ली पानी के साथ उपयोग करना अनुशंसित है। संकरी पत्ती वाली फसलों जैसे कि गेंहू, धान आदि में नैनो यूरिया प्लस का छिड़काव 35-40 एवं 50-60 दिन की अवस्था पर दो बार करना चाहिए। चौड़ी पत्ती वाली फसलों यथा कपास, सूरजमुखी आदि में पहला छिड़काव 20 -25 दिन बाद और दूसरा छिड़काव 50-55 दिन की अवस्था पर करना चाहिए ।
पहले छिड़काव के समय विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि खेत पत्तियों से भलीभांति आच्छादित हो जाए अन्यथा नैनो यूरिया जमीन पर गिरकर नष्ट हो जाएगा। लंबी अवधि की फसलों जैसे गन्ना एवं सब्जी वाली फसलों में अधिक छिड़काव भी किया जा सकता है। नैनो यूरिया प्लस को नैनो डीएपी, जल विलेय उर्वरकों एवं सागरिका के साथ मिलाकर छिड़का जा सकता है। अन्य कृषि रसायनों के साथ मिलाने के पहले जार परीक्षण करना अनिवार्य है।
वर्ष 2021 से 2024 के दौरान मध्य प्रदेश में प्रमुख फसलों पर नैनो यूरिया के 1694 प्रदर्शन लगाए गए जिसमें आनुपातिक रूप से उत्पादन में 3.15 % की वृद्धि
फसल | प्रदर्शनों की संख्या | उपज में वृद्धि (%) |
उड़द | 23 | 5.75 |
बैगन | 10 | 3.89 |
चना | 55 | 2.05 |
मिर्च | 12 | 1.05 |
कपास | 5 | 7.27 |
लहसुन | 36 | 1.76 |
मसूर | 17 | 2.59 |
मक्का | 160 | 3.74 |
सरसों | 67 | 4.46 |
प्याज | 49 | 1.48 |
धान | 132 | 2.39 |
मटर | 22 | 6.04 |
आलू | 78 | 1.71 |
सोयाबीन | 49 | 2.55 |
टमाटर | 28 | 1.26 |
गेहूं | 951 | 2.45 |
योग । औसत | 1694 | 3.15 |
फास्फोरस का उत्तम स्रोत : इफको नैनो डीएपी (तरल)
इफको नैनो डीएपी (तरल) सभी फसलों के लिए उपलब्ध नाइट्रोजन (N) और फास्फोरस (P2O5) का एक उत्तम स्रोत है और खड़ी फसलों में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को दूर करने में मदद करता है। नैनो डीएपी (तरल) के संयोजन में नाइट्रोजन (8.0% N w/v) और फॉस्फोरस (16.0% P2O5 w/v) शामिल हैं।
नैनो डीएपी (तरल) के कण का आकार 100 नैनोमीटर (nm) से कम होता है, जिसके कारण आयतन के अनुपात में सतह का क्षेत्रफल अधिक है। इसकी यह अनूठी प्रकृति, इसे बीज की सतह के अंदर या रंध्र और अन्य छिद्रों के माध्यम से आसानी से प्रवेश करने में सक्षम बनाती है। नैनो डीएपी (तरल) में नाइट्रोजन और फास्फोरस के नैनो क्लस्टर बायो-पॉलिमर और अन्य एक्सीपिएंट्स के साथ कार्यशील हैं। नैनो डीएपी के प्रभाव से बीज की ओज शक्ति में वृद्धि, अधिक क्लोरोफिल, उत्तम प्रकाश संश्लेषण दक्षता, बेहतर गुणवत्ता और भरपूर उत्पादन होता है। सटीक और लक्षित अनुप्रयोग के माध्यम से नैनो डीएपी (तरल) पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना फसलों की पोषण संबंधी आवश्यकता को पूरा करता है।
इफको नैनो डीएपी (तरल) सभी फसलों के लिए उपलब्ध नाइट्रोजन (N) और फास्फोरस (P2O5) का एक सक्षम स्रोत है और खड़ी फसलों में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को ठीक करने में मदद करता है। आदर्श क्षेत्र स्थितियों के में नैनो डीएपी द्वारा उपलब्ध पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता 90 प्रतिशत से अधिक है। जब बीज उपचार / जड़ उपचार के माध्यम से नैनो डीएपी बीज के अंदर प्रवेश करता है, तो बायोपॉलिमर और surfactant सक्रिय होते हैं और बीज/जड़ के अंदर नाइट्रोजन और फॉस्फेट अवयवों को उपलब्ध कराते हैं। इससे अंकुरण शीघ्र एवं एक समान होता है। जब पत्तियों पर छिड़काव किया जाता है, तो फॉस्फोरस आसानी से अवशोषित हो जाता है और फ्लोएम के माध्यम से पौधे के चारों ओर पुनर्वितरित हो जाता है। जबकि रंध्र क्षेत्र में पहुंचने के बाद नाइट्रोजन का एमाइड रूप यूरिया एंजाइम द्वारा सक्रिय होता है और अमोनिया व नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप प्रोटीन संश्लेषण और अन्य वृद्धिकारक प्रक्रियाओं में गति आती है।
इफको नैनो डीएपी (तरल) जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा OECD परीक्षण दिशानिर्देशों (TG) और नैनो कृषि-इनपुट (NAIP) और खाद्य उत्पादों के परीक्षण के लिए दिशानिर्देशों के अनुरूप है। NABL-मान्यता प्राप्त और GLP प्रमाणित प्रयोगशालाओं द्वारा स्वतंत्र रूप से, नैनो डीएपी का परीक्षण किया गया है और जैव-प्रभावकारिता, जैव सुरक्षा-विषाक्तता और पर्यावरण उपयुक्तता के साथ प्रमाणित किया गया है।
नैनो डीएपी के लाभ:
- जैव सुरक्षित एवं पर्यावरण हितैषी
- फसल उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि
- पारंपरिक डीएपी से सस्ता
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार
- भंडारण एवं परिवहन में सुविधा
- बीजों के एक समान अंकुरण में सहायक
नैनो डीएपी (तरल) के उपयोग की विधि
- बीज उपचार: नैनो डीएपी की 5 मिली मात्रा का प्रयोग प्रति किलो बीज की दर से करना चाहिए। बीज पर एक समान रूप से घोल की परत बनाने के लिए उसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलाया जा सकता है। 20-30 मिनट तक उपचारित बीजों को छांव में सुखाने के उपरांत बुवाई करना चाहिए।
2.जड़ उपचार/ कंद उपचार: नैनो डीएपी की 50 मिली मात्रा का 10 लीटर पानी में घोल बनाएं एवं पौध की जड़ों कंद को 15-20 मिनट तक डुबाकर रखें । उसके पश्चात रोपाई करें।
3. पर्णीय छिड़काव: 30-35 दिन की अवस्था पर 4 मिली नैनो डीएपी प्रति लीटर पानी से हिसाब से छिड़काव किया जा सकता है। एक एकड़ क्षेत्र हेतु 125 लीटर पानी आवश्यक है। बेहतर परिणाम हेतु पौधों पर पत्तियां अच्छी मात्रा में आने पर ही पहला छिड़काव करें एवं फास्फोरस की अधिक आवश्यकता वाली फसलों में फूल निकलने के पहले या अधिकतम कल्ले/ शाखा बनाने की अवस्था पर दूसरा छिड़काव करें।
नैनो डीएपी (तरल) को नैनो यूरिया प्लस (तरल), जल विलेय उर्वरकों एवं सागरिका के साथ मिलाकर छिड़का जा सकता है। अन्य कृषि रसायनों के साथ मिलाने के पहले जार परीक्षण करना अनिवार्य है।
वर्ष 2022 से 2024 के दौरान मध्य प्रदेश में प्रमुख फसलों पर नैनो डीएपी के 3157 दर्शन लगाए गए जिसमें आनुपातिक रूप से उत्पादन में 2.65% की वृद्धि दर्ज की गई ।
फसल | प्रदर्शनों की संख्या | उपज में वृद्धि (%) | फसल | प्रदर्शनों की संख्या | उपज में वृद्धि (%) |
मूंग | 245 | 4.71 | धनिया | 15 | 2.32 |
बाजरा | 6 | 4.4 | धान | 372 | 2.28 |
उड़द | 24 | 4.31 | गेंहू | 995 | 2.13 |
सरसों | 92 | 3.79 | प्याज | 60 | 2.08 |
फूल गोभी | 11 | 3.62 | मूंगफली | 24 | 2.06 |
सोयाबीन | 475 | 3.29 | आलू | 157 | 1.97 |
मटर | 73 | 3.19 | टमाटर | 40 | 1.87 |
मक्का | 187 | 2.77 | लहसुन | 49 | 1.83 |
कपास | 28 | 2.68 | बैगन | 17 | 1.42 |
मसूर | 58 | 2.64 | हरी मिर्च | 27 | 1.39 |
अरहर | 24 | 1.18 | योग । औसत | 3157 | 2.65 |
चना | 178 | 2.37 |
कृषकों को नैनो उर्वरकों के उपयोग की तकनीक के विषय में जागरूक करने हेतु, ग्राम स्तर पर किसान सभा, प्रक्षेत्र प्रदर्शन, किसान दिवस, फसल संगोष्ठी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। साथ ही राज्य शासन, कृषि विभाग, विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के साथ कृषक स्तर पर समन्वित प्रयास किए जा रहे हैं जिसके फलस्वरूप धीरे – धीरे नैनो उर्वरक किसानों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं ।
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