मध्यप्रदेश में 792 वन ग्राम बने राजस्व ग्राम, 3 लाख से अधिक वन अधिकार दावे मान्य
12 नवंबर 2024, भोपाल: मध्यप्रदेश में 792 वन ग्राम बने राजस्व ग्राम, 3 लाख से अधिक वन अधिकार दावे मान्य – मध्यप्रदेश में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत जनजातीय और पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया लगातार चल रही है। प्रदेश में अब तक 2,75,352 से अधिक व्यक्तिगत और 29,996 सामुदायिक वन अधिकार दावों को स्वीकृति दी जा चुकी है। इन दावों का निराकरण पात्रता अनुसार विधिक प्रक्रिया के अनुसार किया गया है।
792 वन ग्राम बने राजस्व ग्राम
वन अधिकार अधिनियम के तहत अब तक प्रदेश के 792 वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जा चुका है। इसके लिए जिला कलेक्टर्स द्वारा आवश्यक अधिसूचनाएं जारी की गई हैं, जिससे वनवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेना और भी सुगम हुआ है।
केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के निर्देश पर प्रदेश में सभी जिलों का एफआरए एटलस भी तैयार कर लिया गया है। इस एटलस की सहायता से सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के कार्यों को सुचारू बनाया जा रहा है।
वन अधिकार पत्र धारकों को मिल रही सरकारी योजनाओं का लाभ
मध्यप्रदेश में अब तक 55,357 वन अधिकार पत्र धारकों को कपिलधारा कूप, 58,796 को भूमि सुधार, 61,054 को प्रधानमंत्री आवास, और 1,86,131 को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ दिया जा चुका है। इसके अलावा, 21,514 वन अधिकार पत्र धारकों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना से भी जोड़ा गया है।
वन अधिकार अधिनियम की अहमियत
वन अधिकार अधिनियम 2006 का उद्देश्य जनजातीय समुदायों और पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को संरक्षित करना है। यह अधिनियम वनवासियों को उनके पुश्तैनी निवास, कृषि भूमि, और जंगल के संसाधनों जैसे लकड़ी, फल, और जड़ी-बूटी पर मालिकाना हक प्रदान करता है। इसके तहत, ग्राम सभा दावों की पुष्टि करती है और उन्हें मंजूरी देती है। वन अधिकार अधिनियम से वनवासियों को अपने पारंपरिक जीवन और संस्कृति को सुरक्षित रखने में मदद मिली है।
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