MP के 20 देसी ब्रांड अब दुनिया के नक्शे पर, GI टैग से मिलेगी नई पहचान
13 जून 2025, भोपाल: MP के 20 देसी ब्रांड अब दुनिया के नक्शे पर, GI टैग से मिलेगी नई पहचान – मध्यप्रदेश के करीब 20 पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्पादों को जल्द ही भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication – GI) टैग मिल सकता है। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मंगलवार को भोपाल में एक अहम कार्यशाला आयोजित की गई, जहां मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन, वाराणसी के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए।
यह एमओयू विश्व बैंक समर्थित ‘रेजिंग एंड एक्सेलरेटिंग एमएसएमई परफॉर्मेंस’ (RAMP) योजना के अंतर्गत किया गया है। इस पहल का मकसद राज्य के विशिष्ट उत्पादों को कानूनी संरक्षण देना और उनकी पहचान को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाना है।
क्या है GI टैगिंग और क्यों है ज़रूरी?
कार्यशाला में जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बनारसी साड़ी, चंदेरी वस्त्र और मधुबनी पेंटिंग जैसे उदाहरणों से यह समझाया कि जीआई टैग न सिर्फ किसी उत्पाद की पारंपरिक पहचान को सुरक्षित करता है, बल्कि इससे जुड़े कारीगरों और किसानों की आजीविका पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
उन्होंने कहा, “जीआई टैगिंग किसी भी उत्पाद को ‘कॉपी प्रूफ’ बनाती है। इससे ब्रांडिंग, मूल्य और बाज़ार की मांग—तीनों में इज़ाफा होता है।”
किन उत्पादों पर हो रही है चर्चा?
इस कार्यशाला में हस्तशिल्प, वनोपज, वस्त्र, मत्स्य, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण जैसे विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादों की पहचान पर चर्चा हुई। विभागों से यह कहा गया कि वे ऐसे पारंपरिक और स्थानीय उत्पादों की सूची तैयार करें, जो GI टैग के योग्य हों।
सूत्रों के मुताबिक, अगले एक साल में 20 ऐसे उत्पादों की GI फाइलिंग की योजना है। ये उत्पाद ‘एक जिला-एक उत्पाद’ (ODOP) नीति के तहत भी चिन्हित किए गए हैं, जिससे उनकी ब्रांडिंग और बाज़ार तक पहुंच को बल मिल सके।
एमएसएमई विभाग के आयुक्त दिलीप कुमार ने कार्यशाला में कहा, “यह समय है कि हमारे पारंपरिक उत्पाद वैश्विक मानचित्र पर अपनी जगह बनाएं। जीआई टैगिंग के ज़रिए हम इस दिशा में ठोस कदम बढ़ा सकते हैं।”
रैंप योजना के राज्य नोडल अधिकारी अनिल थागले ने सभी विभागों से अपील की कि वे अपने क्षेत्र के ऐसे उत्पादों के नाम साझा करें, जिन्हें जीआई टैगिंग प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता हो।
किन-किन विभागों ने लिया हिस्सा?
कार्यशाला में वन विभाग, सिडबी, मत्स्य विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हस्तशिल्प संचालनालय, पशुपालन विभाग, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जबलपुर), अनुसूचित जाति विकास और रेशम संचालनालय समेत कई विभागों के अधिकारी शामिल हुए।
इन अधिकारियों ने अपने-अपने क्षेत्र के विशिष्ट उत्पादों की जानकारी दी और उनके दस्तावेज़ीकरण, प्रशिक्षण और आवेदन प्रक्रिया में सहयोग का आश्वासन दिया।
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