जीरो बजट प्राकृतिक खेती – जानिए क्या हैं खास बातें
- ( निमिष गंगराड़े )
28 फरवरी 2022, नई दिल्ली । जीरो बजट प्राकृतिक खेती- जानिए क्या हैं खास बातें – जीरो-बजट प्राकृतिक खेती रासायनिक मुक्त कृषि की एक विधि है जो पारंपरिक भारतीय प्रथाओं से ली गई है। 1990 के दशक के मध्य से पद्मश्री सुभाष पालेकर द्वारा इस खेती की प्रथा को बढ़ावा दिया गया है। शून्य बजट प्राकृतिक खेती रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और गहन सिंचाई द्वारा संचालित कृषि पद्धति का एक वैकल्पिक तरीका है। उनके अनुसार रासायनिक आदानों का गहन उपयोग लंबे समय में मिट्टी की उर्वरता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
जीरो-बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) को किसी रसायन की आवश्यकता नहीं होती है और ऐसी खेती करने में कुल खर्च शून्य होता है इसलिए इसे जीरो-बजट प्राकृतिक खेती कहा जाता है
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2021 में वाराणसी में हुए कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र वाराणसी में जीरो-बजट प्राकृतिक खेती को एक जन आंदोलन बनाने की घोषणा की थी।
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) की एक योजना है, जिसे 2022-21 से जीरो-बजट प्राकृतिक खेती सहित पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं के लिए बढ़ावा दिया जाता है।
भारत में जीरो-बजट प्राकृतिक खेती
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) के तहत देश में 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है और जीरो-बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देश भर के 8 राज्यों में कुल 4980.99 लाख रुपये का फंड जारी किया गया है।
भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम के माध्यम से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने “विभिन्न कृषि-पारिस्थितिकी में प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का मूल्यांकन और सत्यापन” पर एक अध्ययन शुरू किया है। यह अध्ययन 16 राज्यों में 20 स्थानों पर किया जा रहा है।
वहीँ केंद्र ने जीरो-बजट प्राकृतिक खेती के उपयोग के लिए 8 राज्यों में 4 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त फसल भूमि शामिल की है।
उत्तर प्रदेश के 35 जिले शामिल
उत्तर प्रदेश सरकार ने 19,722 लाख रुपये के बजट से 35 जिलों में प्राकृतिक खेती के लिए 98,670 हेक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित किया है। इससे 56,000 किसानों को फायदा होगा। इसमें 913 किसानों के साथ 1000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाला प्रयागराज जिला भी शामिल है।
आंध्र प्रदेश में 2024 तक 100% प्राकृतिक खेती
आंध्र प्रदेश ने 2024 तक 100% प्राकृतिक खेती का अभ्यास करने वाला भारत का पहला राज्य बनने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की। इसका उद्देश्य राज्य के 60 लाख किसानों को जीरो-बजट प्राकृतिक खेती विधियों में परिवर्तित करते हुए 80 लाख हेक्टेयर भूमि पर रासायनिक खेती को समाप्त करना है।
राजस्थान
राजस्थान सरकार एक पायलट परियोजना के रूप में 2019-20 से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान राज्य के 15 जिलों (अजमेर, बांसवाड़ा, बारां, बाड़मेर, भीलवाड़ा, चुरू, हनुमानगढ़, जैसलमेर, झालवाड़, नागौर, टोंक, सीकर, सिरोही और उदयपुर) में योजना को क्रियान्वित किया गया। योजना के तहत 2019-20 से जीरो बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) के विभिन्न घटकों पर ग्राम पंचायत स्तर के प्रशिक्षण कार्यक्रम में लगभग 7 हज़ार किसानों को प्रशिक्षित किया गया और राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले में इनपुट-यूनिट पर सब्सिडी के माध्यम से 2 हजार किसानों को लाभ मिला ।
हिमाचल प्रदेश के डेढ़ लाख किसान
हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एसपीएनएफ) जिसे शून्य बजट प्राकृतिक खेती तकनीक भी कहा जाता है को अपनाकर ‘प्राकृतिक खेती कुशल किसान योजना’ नाम से एक योजना शुरू की है। 31 अक्टूबर, 2021 तक हिमाचल प्रदेश के डेढ़ लाख किसान राज्य योजना प्राकृतिक खेती कुशल किसान योजना के तहत शून्य बजट प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
वर्ष 2015 से अभी तक परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) योजना में पूरे देश में लगभग 31000क्लस्टर बन चुके है जिससे 12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया जा चूका है और 15 लाख से अधिक किसान इस आन्दोलन से जुड़ चुके हैं
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के घटक
- जीवामृत (ताजा देसी गोबर + देसी गोमूत्र + गुड़ + दाल का आटा + पानी + मिट्टी का मिश्रण): मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ने वाली और सूक्ष्मजीवों और केंचुओं को बढ़ावा देने वाला उत्प्रेरक ।
- बीजामृत (जीवमृत के समान घटक): बीजों के उपचार के लिए।
- कीट प्रबंधन:कीट प्रबंधनके लिए नीम के पत्ते, गूदा, तंबाकू और हरी मिर्च का मिश्रण।
- आच्छादन: मल्चिंग
- वापासा: यह एक ऐसी स्थिति है जहां मिट्टी में हवा के अणुओं और पानी के अणुओं दोनों की उपस्थिति होती है। वापासा सिंचाई आवश्यकताओं को कम करने में मदद करता है।
सरकार द्वारा मिलने वाली सहायता
जैविक खेती भूमि की उर्वरता और फसल उत्पादकता को बढ़ाती है। जैविक खेती पर आईसीएआर- अखिल भारतीय जैविक कृषि नेटवर्क कार्यक्रम के तहत किए गए शोध अध्ययनों से संकेत मिलता है कि पारंपरिक प्रबंधन के मुकाबले तुलनीय उपज या थोड़ी अधिक उपज खरीफ और ग्रीष्म फसलों में 2 से 3 वर्ष में प्राप्त की जा सकती है, जबकि रबी फसलों में उपज 5 वर्ष बाद स्थिर हो जाती है।
ऑन फार्म जैविक आदानों का उपयोग और समेकित जैविक खेती प्रणाली (IOFS) मॉडल को अपनाने से बाहरी आदानों के उपयोग में काफी हद तक कमी होती है।
पीकेवीवाई योजना के तहत किसानों को जैविक आदानों जैसे की बीज, जैव-उर्वरक, जैव-कीटनाशक, जैविक खाद, कम्पोस्ट/वर्मी-कम्पोस्ट, वानस्पतिक अर्क आदि के लिए क्रमश: 31000 रुपये प्राप्त हेक्टेयर प्रति 3 वर्ष और 32500 रुपये प्रति हेक्टेयर प्रति 3 वर्ष की वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके अलावा (एफपीओ) के गठन, प्रशिक्षण, प्रमाणीकरण, मूल्यवर्धन और जैविक उत्पादों के विपणन के लिए भी सहायता प्रदान की जाती है। बीपीकेपी के तहत, क्लस्टर निर्माण, प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा क्षमता निर्माण और निरंतर सहायता, प्रमाणन और अवशेष विश्लेषण के लिए 3 वर्ष हेतु 12200 रुपये/हेक्टेयर की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) प्रमाणीकरण के माध्यम से भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस) प्रमाणीकरण के लिए 3 वर्ष के लिए 2700 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से 8.0 हेक्टेयर या उससे अधिक भूमि वाले किसानों को वित्तीय सहायता भी दी जाती है।
वर्ष 2015-16 से परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत राज्यवार क्लस्टर, क्षेत्र और किसान
कुल क्लस्टर | कवर किया गया क्षेत्र | कुल किसान संख्या | |
मध्यप्रदेश | 3828 | 175560 | 191400 |
राजस्थान | 6150 | 123000 | 307500 |
छत्तीसगढ़ | 1200 | 109000 | 60000 |
उत्तर प्रदेश | 1120 | 78580 | 56000 |
उत्तराखंड | 4485 | 140540 | 224250 |
आंध्र प्रदेश | 5300 | 206000 | 265000 |
महाराष्ट्र | 1258 | 25160 | 62900 |
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