जल संकट का कहर: कृषि पर मंडराता खतरा
02 अगस्त 2024, नई दिल्ली: जल संकट का कहर: कृषि पर मंडराता खतरा – भारत में जल संकट की गंभीरता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। कृषि, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इस समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हो रही है। पीने के पानी की कमी के साथ-साथ सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता में कमी किसानों को मुश्किलों में डाल रही है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के ‘पूसा समाचार’ में इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया है। कार्यक्रम में बताया गया है कि किस प्रकार जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध जल दोहन ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। इसके परिणामस्वरूप, कृषि उत्पादन में गिरावट आ रही है और किसानों की आय प्रभावित हो रही है।
हालांकि, समाधान भी हैं। कार्यक्रम में वर्षा जल संचयन (वाटर हार्वेस्टिंग) के महत्व पर जोर दिया गया है। यह न केवल जल संकट से निपटने में मदद करता है बल्कि भूजल स्तर को भी बढ़ाता है और सिंचाई के लिए पानी का एक स्थिर स्रोत प्रदान करता है बल्कि बाढ़ के जोखिम को भी कम करता है। भारत में इस्तेमाल होने वाले ताजे पानी का 85% से ज़्यादा हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हर साल लगभग 200 बिलियन क्यूबिक मीटर भूमिगत जल का दोहन करते हैं, जिसका 90% हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल होता है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, भारत में औसतन 1180 मिमी बारिश होती है और हम इस कुल वर्षा जल का केवल 8% ही इकट्ठा कर पाते हैं, जिसे वर्षा जल संचयन कहा जाता है।
भारत सरकार ने 24 अप्रैल 2022 को अमृत सरोवर योजना शुरू की, जिसके तहत हर जिले में 75 झीलें बनाई जानी थीं, जिसमें पुराने तालाबों का पानी उपयोग किया जाना था। पूसा संस्थान ने इस पहल का स्वागत करते हुए ‘पूसा अमृत सरोवर’ का निर्माण कराया। यह तालाब ढाई एकड़ क्षेत्र में फैला है और 18 फीट गहरा है, जिसमें वर्षा जल को संग्रहीत किया जाता है। सौर पैनलों से उत्पन्न बिजली का उपयोग करके इस पानी को पंप किया जाता है और 250 एकड़ क्षेत्र की सिंचाई की जाती है। इस पहल से वर्षा जल का समुचित उपयोग, और भूमिगत जल का न्यूनतम दोहन सुनिश्चित हुआ है, जिससे ट्यूबवेल की जरूरत नगण्य हो गई है। अगर आपके गांव में कोई सूखा तालाब है, तो उसे भरवाएं और जल संरक्षण करें। कार्यक्रम में बताया कि किस प्रकार यह पहल ग्रामीण भारत में जल संरक्षण को बढ़ावा दे रही है, लेकिन इसे और अधिक व्यापक पैमाने पर लागू करने की आवश्यकता है।
कृषि पद्धतियों में भी बदलाव आवश्यक है। जल-कुशल तकनीकों को अपनाना, फसल चक्र में विविधता लाना, और सूक्ष्म सिंचाई जैसी तकनीकों को बढ़ावा देना जरूरी है। आईएआरआई द्वारा विकसित जल-बचत वाली फसल किस्में किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं।
यह एक सकारात्मक संकेत है कि सरकार और अन्य संगठन इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। हालांकि, इन उपायों के साथ-साथ जागरूकता भी महत्वपूर्ण है। हमें जल संरक्षण को एक जन आंदोलन बनाना होगा। हर व्यक्ति को पानी बचाने के उपायों को अपनाना चाहिए। इसके अलावा, सिंचाई की कुशल प्रणालियों को बढ़ावा देना और जल-बचत वाली फसलों को अपनाना आवश्यक है। किसानों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
जल संकट से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ किसानों, गैर-सरकारी संगठनों और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। यह एक लंबी प्रक्रिया है, लेकिन दृढ़ संकल्प और सामूहिक प्रयासों से इस चुनौती को अवश्य ही पार किया जा सकता है।
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