टेप से चिपका केला करोड़ों का, किसान की टोकरी कौड़ियों की!
02 दिसंबर 2024, नई दिल्ली: टेप से चिपका केला करोड़ों का, किसान की टोकरी कौड़ियों की! – सोचिए, गांव के किसान रघु को जब ये खबर मिली कि एक केले को दीवार पर टेप लगाकर 50 करोड़ में बेचा गया, तो उसके चेहरे पर कैसा भाव आया होगा। शायद उसने अपनी पूरी जिंदगी के केले गिनने शुरू कर दिए होंगे। “अगर मैं हर केले को दीवार पर टेप करता, तो शायद मैं भी करोड़पति बन जाता,” उसने ठंडी आह भरते हुए कहा।
केला और कला
यह विचित्र “आर्टवर्क,” जिसे “कॉमेडियन” नाम दिया गया, इटली के प्रसिद्ध कलाकार मॉरिज़ियो कैटेलन द्वारा डिज़ाइन किया गया था। यह 2019 में अमेरिका के मियामी में आयोजित आर्ट बेसल मेले में प्रदर्शित हुआ। इसका मुख्य आकर्षण था दीवार पर टेप से चिपका हुआ एक साधारण केला। इसे पहली बार 1.2 लाख डॉलर (लगभग 1 करोड़ रुपये) में खरीदा गया, और इसके बाद इसी कृति का एक और संस्करण 6.2 मिलियन डॉलर (लगभग 50 करोड़ रुपये) में नीलाम हुआ। इस असामान्य कला ने दुनियाभर में चर्चा का विषय बनते हुए कला के प्रति हमारी परिभाषा और मूल्यांकन पर सवाल खड़ा कर दिया।
जब रघु ने सुना कि इस आर्टवर्क को बनाने में सिर्फ एक केला और टेप का इस्तेमाल हुआ, तो उसे अपने खेत में उग रहे 200 केले अचानक अनमोल लगने लगे। लेकिन फिर वो याद करता है कि मंडी में उसे हर केले के सिर्फ ₹3 ही मिलते हैं।
कला का तजुर्बा या तजुर्बे की कला?
“शहरों में लोग कितना अजीब सोचते हैं!” रघु कहता है। “हम तो केले बेचते हैं, लेकिन लगता है असली पैसा इन्हें दीवार पर चिपकाने में है।” उसने गांव वालों से कहा, “कल से सब अपने खेत के केले दीवार पर टेप करना शुरू करो। अगले हफ्ते हमारी मंडी को ‘आर्ट गैलरी’ बना देंगे।”
किसानों की मेहनत और आर्ट गैलरी का तमाशा
यह घटना न केवल आधुनिक कला की सच्चाई दिखाती है, बल्कि किसानों की दुर्दशा पर भी एक गहरी चोट करती है। जहां एक ओर कला गैलरी में केला करोड़ों का बिकता है, वहीं किसानों के खेतों में केला अक्सर खराब हो जाता है या न्यूनतम कीमतों पर बेचा जाता है।
आखिरी सवाल:
क्या कला के नाम पर दीवार पर टेप लगा हुआ केला ही असली “क्रिएटिविटी” है, या रघु जैसे किसान जो अपनी मिट्टी, पसीने, और मेहनत से असल केले उगाते हैं? जब तक समाज किसानों के योगदान को नहीं समझेगा, तब तक शायद हर दीवार पर चिपका केला हमें असली मजाक ही लगेगा।
हमारे किसानों को सीखना चाहिए कि उनकी मेहनत का असली मोल लगाने का तरीका बदलना होगा। और शहर के “कलाकारों” को भी याद रखना चाहिए कि उनके 50 करोड़ के केले का असली स्रोत वही खेत हैं, जहां रघु और उसके साथी हर दिन संघर्ष करते हैं।
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