मक्के के दाम सितंबर 2025 में गिरे: बढ़ी हुई बोआई और मंडी की आवक से दबाव
04 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: मक्के के दाम सितंबर 2025 में गिरे: बढ़ी हुई बोआई और मंडी की आवक से दबाव – सितंबर 2025 में देशभर की मंडियों में मक्के के औसत थोक भाव ₹2,115 प्रति क्विंटल रहे, जो अगस्त 2025 के मुकाबले लगभग 9 प्रतिशत और पिछले साल सितंबर 2024 के मुकाबले 10 प्रतिशत कम हैं। इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्के की मांग बढ़ रही है, लेकिन इस बार बोआई क्षेत्र बढ़ने और भारी आवक होने से किसानों को कमजोर दाम का सामना करना पड़ा।
राज्यवार स्थिति और प्रमुख गिरावट
भारत की अधिकांश मंडियों में सितंबर 2025 में मक्के के भाव गिरे। मध्यप्रदेश में भाव अगस्त के ₹2,157 से गिरकर सितंबर में केवल ₹1,704 प्रति क्विंटल रह गए, यानी एक महीने में लगभग 21 प्रतिशत की गिरावट। तेलंगाना और महाराष्ट्र में भी कीमतें क्रमशः 19 प्रतिशत और 18.7 प्रतिशतघटीं।
इसके विपरीत हरियाणा में दाम में 18.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और भाव ₹2,608 प्रति क्विंटल तक पहुंचे। कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पिछले साल की तुलना में भाव थोड़े बढ़े भी, लेकिन कुल मिलाकर देशभर का औसत भाव कमजोर रहा।
पंजाब, गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में पिछले साल के मुकाबले 12 से 17 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिली।
बोआई क्षेत्र और आपूर्ति का दबाव
इस साल खरीफ 2025 में मक्के की बोआई 94.95 लाख हेक्टेयर में हुई, जबकि पिछले साल यह क्षेत्र 84.30 लाख हेक्टेयर था। यानी करीब 12.63 प्रतिशत ज्यादा क्षेत्र में बोआई हुई। अच्छी मानसूनी बारिश के कारण उत्पादन भी बेहतर होने की संभावना है। इसका सीधा असर मंडी में भारी आवक पर पड़ा और किसानों को भाव नीचे मिलने लगे।
इथेनॉल की मांग और DDGS का असर
भारत सरकार ने पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण (E20) का लक्ष्य रखा है। इसके लिए बड़ी मात्रा में मक्के का उपयोग किया जा रहा है। किसान उम्मीद कर रहे थे कि इससे दाम बढ़ेंगे और स्थिर रहेंगे। लेकिन स्थिति इसके विपरीत रही।
इथेनॉल संयंत्र मक्का तो खरीद रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्युबल्स (DDGS) नामक सह-उत्पाद भी बन रहा है। यह पशु आहार में मक्के का विकल्प बन गया है, जिससे चारे के लिए मक्के की पारंपरिक मांग कम हो रही है। यही कारण है कि मंडियों में मक्के के दाम कमजोर बने हुए हैं और इथेनॉल की बढ़ी हुई मांग भी कीमतों को पूरी तरह सहारा नहीं दे पा रही।
किसानों के लिए संदेश
मंडी में एक ही समय पर अधिक आवक होने से दाम तेजी से गिर जाते हैं। मध्यप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के किसानों ने इस साल इसका असर सबसे ज्यादा महसूस किया। इस स्थिति से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि वे फसल बेचने का सही समय चुनें, यदि संभव हो तो भंडारण सुविधाओं का उपयोग करें और मंडियों के बजाय सीधे प्रोसेसर या इथेनॉल संयंत्रों से अनुबंध खेती पर विचार करें।
वैश्विक असर और निर्यात के मौके
सितंबर 2025 में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अनाज के दाम नरम रहे। एफएओ ने रिपोर्ट दी कि इस साल अनाज का वैश्विक उत्पादन पर्याप्त है। ऐसे में भारत के लिए मक्के का निर्यात फिलहाल लाभकारी नहीं रहा, जिससे घरेलू मंडियों पर दबाव और बढ़ गया।
आगे की स्थिति
किसानों और मंडी व्यापारियों के लिए आने वाले महीनों में कुछ पहलू निर्णायक होंगे:
- इथेनॉल संयंत्र कितनी तेजी से मक्के की खरीद बढ़ाते हैं।
- खरीफ की आवक कितनी लंबी चलेगी और कितनी मात्रा भंडारण में जाएगी।
- पशुपालन क्षेत्र DDGS को किस हद तक अपनाता है।
- वैश्विक बाजार में अनाज की कीमतें कैसी रहती हैं।
सितंबर 2025 का मक्का बाजार यह साफ दिखाता है कि जब बोआई क्षेत्र और उत्पादन अचानक बढ़ जाते हैं तो मंडियों में दाम नीचे आ जाते हैं। इथेनॉल की बढ़ती मांग लंबे समय में मक्के को सहारा दे सकती है, लेकिन अल्पावधि में किसानों को गिरते भाव से नुकसान उठाना पड़ रहा है।
किसानों के लिए सबसे अहम है कि वे बाजार रुझानों पर नजर रखें, भंडारण और अनुबंध खेती जैसे विकल्प अपनाएं और फसल बेचने का सही समय चुनकर आय को सुरक्षित करें।
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