राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

‘‘जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रयास भारत की प्रतिबद्धता में मध्यप्रदेश का योगदान’’

08 नवंबर 2024, नई दिल्ली: ‘‘जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रयास भारत की प्रतिबद्धता में मध्यप्रदेश का योगदान’’ – जलवायु परिवर्तन को रोकने जमीनी स्तर पर व्यवहार में बदलाव लाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को बढ़ावा मिल सके। अक्षय ऊर्जा के स्रोतों, कम उत्सर्जन वाले उत्पादों और इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के साथ ही वनीकरण में वृद्धि हो सके।

प्रस्तुति एवं संकलन – सीमा राजीव
(वरिष्ठ लेखक महाविद्यालय में परामर्शदाता हैं)

इस सप्ताह (11-24 नवम्बर) अजरबैजान के बाकू में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को लेकर राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में प्रथम राज्य स्तरीय विमर्श और राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। विषय तो था ‘‘जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक प्रयास: भारत की प्रतिबद्धता में राज्यों का योगदान’’ परंतु इसी बहाने मध्यप्रदेश के योगदान पर भी मंथन कर लिया जाना न्यायोचित लगा। यह परामर्श मध्यप्रदेश के आर्थिक विकास और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी को एक साथ लाने के नवीन दृष्टिकोण को दर्शाता है। जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जो पूरे साल दुनिया को परेशान करता रहा है. लेकिन इस पर सबसे अधिक बात ऐसे समय हो रही है जब इस प्रकार की कॉफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ या सीओपी का आयोजन हो रहा है।

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कार्यक्रम में 200 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्लाइमेट लीडर्स, शासकीय अधिकारी, पर्यावरण विशेषज्ञ और प्रतिनिधि शामिल हुए। इस विमर्श के केंद्र में मध्यप्रदेश में किए जा रहे प्रयासों की विशेष चर्चा हुई, जो भारत के नेशनली डिटरमिन्ड कंट्रीब्यूशन (NDCs) और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को आगे बढ़ाने में महती भूमिका निभा रहे हैं। इसका शुभारंभ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया। प्री-कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) परामर्श-सत्र में जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कार्यरत प्रमुख लीडर्स को एक मंच पर लाने का प्रयास किया गया, जिन्होंने क्लाइमेट चेंज के क्षेत्र में राज्य द्वारा लिया गया एक महत्वपूर्ण कदम माना।

क्या है जलवायु परिवर्तन ?

ऐसी मानवीय गतिविधियां या क्रिया-कलाप जिनके कारण कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ती है और सूर्य का ताप पृथ्वी के बाहर नहीं जा पाता है जिससे धरती का तापमान इतना अधिक बढ़ जाता है कि लंबे समय में किसी स्थान का औसत मौसम या कहें औसत परिस्थितियों में बदलाव आने लगता है। जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।

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जलवायु परिवर्तन सर्वविदित है। वर्तमान में यह वैश्विक समाज के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। आँकड़े दर्शाते हैं कि पृथ्वी की सतह का औसत तापमान एक डिग्री फॉरनहाइट बढ़ गया है। यह संख्या भले ही छोटी लगती हो, परंतु मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न करती है।

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देखा जाए तो हम सभी एक ट्रिपल ग्रह संकट के बीच में जीवन व्यतीत कर रहे हैं: जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता क्षरण, प्रदूषण और अपशिष्ट। ये संकट पूरी तरह से दशकों के अथक और लगातार उपभोग और उत्पादन के कारण उत्पन्न हुए हैं। हम कैसे जीवन व्यतीत करते हैं और उपभोग करते हैं, यह बहुत मायने रखता है। इसलिए इस प्रकार की विचार संगोष्ठियों का स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक प्रदेश को ग्रह के लिए नेतृत्व प्रदान करने की आवश्यकता है। आवश्यकता और ज्ञान के कारण, मध्यप्रदेश में निवासरत प्राचीन समाजों ने प्रकृति के साथ रहने, प्रकृति के साथ पनपने और प्रकृति की देखभाल करने के उपाय खोजे हुए हैं। उस ज्ञान को अब हमारे सामूहिक ज्ञान का एक हिस्सा होना चाहिए।

ऐसे समय में जब हमारी पृथ्वी का तापमान निरंतर बढ़ता जा रहा है तब धरती के तापमान को संतुलित रखा जाना सभी का संयुक्त दायित्व है। घटते वनों, कटते वृक्षों, प्रदूषित होते जल एवं वायु मंडल के मध्य संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम ने वैश्विक तापमान को कम करने के लिए आवश्यक उत्सर्जन कटौती पर जो वार्षिक रिपोर्ट जारी की है उसमें चेतावनी दी गई है कि विश्व 3.1 डिग्री तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहा है जो आपदाजनक है। यदि सभी देश जलवायु परिवर्तन के विरूद्ध अपने मौजूदा वादों को पूरा करें तो विश्व में तापमान वृद्धि 1.8 डिग्री तक सीमित हो सकती है। ऐसा नहीं है कि यह संकट सिर्फ अन्य देशों का है भारत में भी जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दिखाई दे रहा है। बताया जा रहा है कि हिमालय पर स्नो कवर यानी बर्फ से ढंका क्षेत्र इसी साल फरवरी की तुलना में 32.2 प्रतिशत बचा है। स्पष्ट है कि हमारे देश में ठण्ड का मौसम इस बात पर ही निर्भर करता है कि स्नो कवर की स्थिति क्या है? स्नो कवर ट्रेण्ड दर्शाता है कि कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ेगी और तापमान वृद्धि का प्रभाव देखा जाएगा।

जलवाय परिवर्तन की चुनौती से निपटना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि एक ओर जहां स्विट्जरलैण्ड के वैज्ञानिक वायुमंडल में हीरे की डस्ट छिड़कने जैसे प्रयोग करने की बात कर रहे हैं, वहीं भारत जैसे देशों के पास इतनी बड़ी लागत समाधान को तत्काल भविष्य में पै्रक्टिकल नहीं बनाती। अतः हमें प्रगति और प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के प्रयास भूमि पर रहकर ही करना होंगे।

निःसंदेह देश का हृदय प्रदेश प्राकृतिक सुंदरता में किसी से कम नही,ं इसकी हेरिटेज दर्शनीय है। इसलिए मध्यप्रदेश में होने वाले जलवायु संरक्षण के कार्यों का वैश्विक महत्व होगा। मध्यप्रदेश ने गत दो दशक से प्रगति के अनेक आयाम छुए हैं। पर्यावरण के प्रति मध्यप्रदेश सरकार गंभीर है। मध्यप्रदेश नदियों का मायका है। सभी नदियों की स्वच्छता और हमारे ईको सिस्टम का संतुलन बनाए रखने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी और उसके तटों की पर्यावरणीय संरक्षण के लिए आवश्यक निर्णय लिए हैं। हमारी सोन नदी, पुण्य सलिला गंगा को बलिष्ठ बनाती है। गंगा बेसिन के लिए यमुना के माध्यम से चंबल और क्षिप्रा भी यही भूमिका निभाती हैं। बेतवा भी यमुना जी में जाकर मिलती है। देश के साथ ही मध्यप्रदेश के लोगों का विश्वास ‘‘जियो और जीने दो’’ में है। भोपाल के पास रातापानी टाइगर अभ्यारण्य है। भोपाल के पास सड़कों पर दिन में मनुष्य और रात्रि में टाइगर दिखाई देते हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ ऊर्जा उद्योग-ऑटोमोटिव में, कम उत्सर्जन वाले उत्पादों जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों और सुपर-कुशल उपकरणों का निर्माण व हरित हाइड्रोजन जैसी नवीन तकनीकों आदि जैसी ग्रीन जॉब्स में समग्र वृद्धि करने के लिए सरकार ने अनुकूलन और शमन दोनों कार्यों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं व कार्यक्रम शुरू किए हैं। जल, कृषि, वन, ऊर्जा और उद्यम, निरंतर गतिशीलता और आवास, कचरा प्रबंधन, चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन दक्षता आदि सहित कई क्षेत्रों में इन योजनाओं व कार्यक्रमों के अन्तर्गत उचित उपाय किए जा रहे हैं।

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पर्यावरण आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। वसुधा को बचाने का कर्तव्य हम सभी को निभाना है। भारत की पहचान दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के संदर्भ में भी बनी है। प्रकृति और प्रगति में समन्वय आवश्यक है। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सारे विश्व में अपने सक्षम नेतृत्व से भारत की प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं। पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता इस बात से सिद्ध होती है कि वे वर्ष 2030 तक भारत द्वारा 500 गीगावाट नवकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं। निश्चित ही हम कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी लाने में सफल होंगे। पर्यावरण की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण संकल्प है। इसकी पूर्ति के लिए राष्ट्रवासी भी सहयोग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश नवकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निरंतर कार्य कर रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प के अनुसार सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रदेश अधिक से अधिक योगदान देगा।……… – डॉ. मोहन यादव  माननीय मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश, पर्यावरण के लिए कई अच्छे काम करने में सक्षम हुआ हैं। राज्य के वन क्षेत्र के साथ ही शेरों, बाघों, तेंदुओं, हाथियों की संख्या बढ़ाने के प्रयास सफल हो रहे हैं। गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से स्थापित विद्युत क्षमता एक बड़ी उपलब्धि है सरकार का नवीकरणीय ऊर्जा पर बहुत ज्यादा ध्यान रहा है। आगे का रास्ता नवाचार और खुलेपन का है। जब तकनीक और परंपरा का मेल होगा तो वह जीवन के दृष्टिकोण को और आगे लेकर जाएगा।

देश-प्रदेश में चिंतन क्यों?

मध्यप्रदेश जैसे विकासशील राज्य में ऊर्जा ज़रूरतें बढ़ रही हैं, इसे सिर्फ स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. वाणिज्यिक व निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई थम नहीं पा रही हैं जो चिंतनीय है, क्योंकि पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो देंगे। बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। प्रदेश की सड़कों पर वाहनों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। फलस्वरूप अपने देश-प्रदेश में पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। वनस्पति पैटर्न में बदलाव से कुछ पक्षी प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। हीट वेव्स से मरने वालों की संख्या भी कम नहीं हो पा रही है। हल होने की बजाय खाद्यान्न समस्या भी गहराती जा रही है।

बताया जा रहा है कि सदी के अन्त तक तापमान 2.5 डिग्री तक बढ़ने की संभावना है। भारत में कार्बन उत्सर्जन 1.8 टन पर केपिटा है, जो कि विश्व की एवरेज केपिटा पर 4.5 टन से कम है। अस्तु जलवायु परिवर्तन की विभीषिका को रोकने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित सभी कार्यक्रम सेल्फ ड्रिबेन हो। क्लाइमेट जस्टिस जरूरी है। जहाँ रूस और यूक्रेन के युद्ध की परिस्थितियां सभी के सामने हैं, वहीं इजराइल जैसे राष्ट्र जो तकनीक के उपयोग और अस्मिता के संघर्ष के लिए जाने जाते हैं, भारत के लिए इन सभी राष्ट्रों का सम्मानजनक रूख है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि 21वीं सदी भारत की होगी और यह तभी हो सकेगा जब हम सभी मिलकर पर्यावरण से प्रेम करना सीख जाएंगे।

भारत की पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के सम्बंध में, राज्यों की भागीदारी बढ़ाए जाने का व्यापक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इससे सरकार के साथ समाज की भागीदारी बढ़ेगी और पर्यावरण के लिए प्रहरी के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति और संस्थाएं आगे आएंगी, जिससे मध्यप्रदेश का योगदान बढ़ सकेगा। वर्तमान समय में दुनिया जिस दौर से गुजर रही है, उसमें हमारी भारतीय जीवन पद्धति, हमारी मान्यताओं और परमात्मा एवं प्रकृति से जुड़ने के हमारे मूल दृष्टिकोण का अपना महत्व सामने आता है। एक श्रेष्ठ जीवनशैली के लिए भारतीय जाने जाते हैं। खान-पान और जल की शुद्धता के लिए हम गंभीर हैं। मध्यप्रदेश पर परमात्मा की विशेष कृपा है। जहाँ हमारा देश-प्रदेश मानवता प्रेमी है, वहीं पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के लिए भी भारत सक्रिय है। विश्व के कल्याण के लिए भारत के उदात्त भाव से सभी परिचित हैं।

मध्यप्रदेश की भूमिका

कार्बन उत्सर्जन कम करने में मध्यप्रदेश की भूमिका और नेतृत्व बहुत ही महत्वपूर्ण है जिससे हम अपने जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकें। इसके लिए “पर्यावरण के अनुरूप स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा दिया जा रहा है। संसाधनों का कुशलता से उपयोग और उसका पुनः उपयोग करने के लिए दृढ़ता से काम किया जा रहा है। सार्वजनिक प्रयास निजी प्रयास को प्रोत्साहित करें इसके लिए समाज को जागरूक किया जा रहा है। साइकिल चलाने और पैदल चलने जैसी स्थायी जीवन शैली के लाभ गिनाए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश जैसे राज्य जलवायु प्रयास के लिए ऊर्जा के रूप में कार्य कर रहे हैं। इसमें अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा लचीलापन बुनियादी संरचना के लिए गठबंधन और एक सूर्य एक विश्व एक ग्रिड के माध्यम से इसके कार्यों को शामिल किया गया है, जिसका उद्देश्य दुनिया में सौर ऊर्जा को आपस में जोड़ना है। हमारे प्राचीन ग्रंथों के शब्द पर्यावरण के महत्व के बारे में बताते हैं। विश्व बैंक का मूल काम सतत विकास के लिए समुदायों को संगठित करना है। समुदायों को संगठित करने के लिए फ्रंटलाइन प्रेरणादायकों की आवश्यकता होती है।

देश-प्रदेश के लोगों के लिए नदी केवल एक बहता पानी नहीं है बल्कि यह एक सजीव है। शहरों में पर्यावरण-संरक्षण के उद्देश्य से अमृत 2.0 मिशन अन्तर्गत उद्यानों और हरित क्षेत्र के विकास के लिये 390 योजनाओं को स्वीकृति दी गई है। इन योजनाओं पर 118 करोड़ 8 लाख रूपये व्यय किए जाना हैं।इन योजनाओं का उद्देश्य शहरी इलाकों में हरित स्थानों का विकास करना, स्थानीय समुदायों को स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण उपलब्ध कराना है। इन योजनाओं के माध्यम से नागरिकों के शहरी जीवन की गुणवत्ता में सुधार आयेगा। साथ ही पार्कों में बच्चों के खेलने के स्थान, बुजुर्गों के लिए विश्राम स्थल, वॉकिंग ट्रैक, और योग के लिये क्षेत्र विकसित किये जा रहे हैं। इन क्षेत्रों के विकास में पार्कों में लाइटिंग, जल-संरक्षण, और पौध-रोपण के प्रावधान भी किए जा रहे हैं। इन पार्कों को ऊर्जा-सक्षम और पर्यावरण अनुकूल भी बनाया जा रहा है। स्वीकृत योजनाओं में से 41 योजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। गर्मी के मौसम में बढ़ते तापमान को दृष्टिगत रखते हुए हरित क्षेत्र के विकास में स्थानीय पौधों एवं छायादार पौध-रोपण पर जोर दिया जा रहा है। चयनित स्थलों पर सामुहिक जन-भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये लोक चित्रकला से पार्कों की दीवारों में चित्र बनाकर सौंदर्यीकरण किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पंचामृत की जो बात कही गई है, उसका पालन सभी कर सकें इसके लिए समाज को जागरूक किया जा रहा है।

क्या है पंचामृत फार्मूला:

यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) के पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी26) के 26वें सत्र में भारत ने दुनिया के समक्ष पांच अमृततत्व (पंचामृत) पेश किए तथा जलवायु कार्रवाई को तेज करने का आग्रह किया। जो इस प्रकार हैंः-

  1. भारत, 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा।
  2. भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकताओं, नवीकरणीय ऊर्जा से पूरी करेगा।
  3. भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।
  4. वर्ष 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा
  5. वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा।

नेट ज़ीरो क्या?

ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य के बिलकुल क़रीब ले जाना. कोई भी देश नेट ज़ीरो उत्सर्जन तब हासिल कर लेता है जब वो पर्यावरण में सिर्फ़ उतना ही उत्सर्जन करता है जितना वो सोख लेता है.यह काम अतिरिक्त पेड़ और जंगल लगाकर किया जा सकता है। इस तरह वातावरण में जाने वाली कार्बन की मात्रा शून्य होगी. जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरे से निपटा जा सकेगा।

लाइफ आंदोलन में मध्यप्रदेश

भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने कॉप 26 में वैश्विक समुदाय के समक्ष एक ‘एक शब्द वाले आंदोलन’ का प्रस्ताव रखा। वो एक शब्द है लाइफ: एल.आई.एफ.ई. यानी पर्यावरण के लिए जीवनशैली। लाइफ का दृष्टिकोण एक ऐसी जीवनशैली अपनाना है जो हमारे धरती के अनुरूप हो और इसे नुकसान न पहुंचाए। इसमें ‘‘लाईफ ग्लोबल कॉल फॉर आइडियाज एंड पेपर्स’’ भी शुरू किया गया, जिसमें व्यक्तियों, विश्वविद्यालयों, थिंक टैंक, गैर-लाभकारी और अन्य लोगों को वैश्विक रूप से मापने योग्य और मापनीय व्यवहार परिवर्तन समाधान प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया जो व्यक्तियों, समुदायों और संगठनों के बीच जलवायु-अनुकूल व्यवहार स्थापित कर सकते हैं। मिशन लाइफ अतीत से प्रेरित होता है, वर्तमान में संचालित होता है और भविष्य पर केंद्रित होता है। रिड्यूस, रियुज और रीसायकल, जीवन की अवधारणाएं हैं। इस पर मध्यप्रदेश में गंभीरता से कार्य किया जा रहा है।

ईस्ट फ्रेमवर्क को ऐसे समझें: ई का अर्थ ‘ईजी । पर्यावरणीय रूप से जीवन जीने को सरल बनाना। ए का मतलब अट्रैक्टिव है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से बेहतर विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए आकर्षण का उपयोग एक संकेत के रूप में किया है। एस का मतलब सोशल है। पर्यावरण अनुकूल व्यवहार करने और जीवन शैली में सुधार लाने के लिए सामाजिक मानदंड होना जरूरी है।। यहां पर टी का मतलब टाइमली है। अगर लोगों को सही समय पर जानकारी या चेतावनी या संकेत दिया जाता है, जब वे निर्णय ले रहे हैं, या शायद कुछ घंटे पहले, तो इसका प्रभावी होने की ज्यादा संभावना है। यह ईस्ट फ्रेमवर्क है। यह मिशन लोगों के लिए एक वैश्विक नेटवर्क का निर्माण करने और उसे पोषित करने की योजना बना रहा है, अर्थात् ‘‘प्रो-प्लैनेट पीपल’’ (पी-3), जिनके पास पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली अपनाने और बढ़ावा देने के लिए एक साझा प्रतिबद्धता होगी। यह मिशन पी-3 समुदाय के माध्यम से एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना चाहता है, जो पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को चिरस्थायी बनाने के लिए सुदृढ़ और सक्षम होगा। यह मिशन प्रचलित यूज-एंड-डिस्पोज अर्थव्यवस्था को प्रतिस्थापित करने सोच रखता है।

प्रतिबद्धता क्या ?

वर्ष 2015 में भारत सहित दुनिया के 200 से अधिक देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और दुनिया के तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक ना बढ़ने देने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी. मुख्यतः 8 मिशन: राष्ट्रीय सौर मिशन, विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन।

क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिये जो प्रयास किए जा रहे हैं उनमें स्वाइल हेल्थ कार्ड बनाने, वनीकरण और हाइड्रोजन फ्यूल के उपयोग को बढ़ावा देना जैसे महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं। इससे भी बढ़कर ऐसा वातावरण निर्मित करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि सभी मिलकर समग्र प्रयास करें। इसके लिए जलवायु परिवर्तन और प्राचीन पर्यावरणीय संरचनाओं पर गहराई से अध्ययन करने की योजना बनाई गई है। इसमें बारिश को प्रभावित करने वाले वायुकणों का अध्ययन, जलवाष्प का विश्लेषण जैसे विषयों को शामिल किया गया है।

मध्यप्रदेश ऐसा राज्य जो हमेशा प्रॉब्लम सॉल्ंवर के रूप में सामने आया है जो कार्बन बाजारों में प्रवेश के लिये ठोस फ्रेमवर्क बनाने की जरूरत पर जोर देता आया है। इससे प्राकृतिक खेती और सतत् वन विकास एवं पर्यावरणीय प्रयासों को बल मिला है। यह कदम न केवल पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है, बल्कि भारत को वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका में भी स्थापित करता है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव गरीबों पर पड़ता है, अतः क्लाइमेट जस्टिस की आवश्यकता को बल दिया जा रहा है। यहां जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिये नेचर वॉलेंटियर्स बनाने की बात की जा रही है। पानी का सदुपयोग करने साथ ही क्लाइमेट चेंज को रोकने के व्यवहार में परिवर्तन को आवश्यक बताया जा रहा है।

मध्यप्रदेश में इस अंतर्राष्ट्रीय विषय पर जो सार्थक चर्चाएं और काम हो रहे हैं, वह दूर तक जाएं, तो विश्व ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने में सफल हो सकता हैं। दुनिया के लोग मध्यप्रदेश आएं और देखें कि यहां “मैं से हम और हम से सब” के सूत्र पर कैसे काम किया जा रहा है!!!

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