राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष और भारत के किसान

06 मई 2025, नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष और भारत के किसान – संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2024 में वर्ष 2025 को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। प्रस्ताव में सहकारिता वर्ष मनाने के लिए अनुशंसाएं दी गई हैं और सभी सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र संबंधित हितधारकों को इस आयोजन का उपयोग सामाजिक और आर्थिक विकास में सहकारी समितियां के योगदान को उजागर करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन दुनिया भर में सहकारी समितियां को एकजुट करने के साथ उनका प्रतिनिधित्व और उनकी सेवा भी करता है। वर्ष 1895 में स्थापित यह सबसे पुराने गैर सरकारी संगठनों और प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़े संगठनों में से एक है जिसके विश्व भर में एक बिलियन सहकारी सदस्य हैं।

सहकारिता के बारे में जब भारत के संदर्भ में बात करते हैं तो हजारों साल पहले लिखा गया ऋग्वेद का यह शक्तिशाली मंत्र ‘सं गच्छध्वं सं बद्ध्वं सं वो मनांसि जानताम। देवा भागं यथा पूर्वे संजाना उपासते।’ शक्तिशाली मंत्र एकता, सहयोग और साझा उद्देश्य की भावना को दर्शाता है। यह दुनिया भर में सहकारी आंदोलन को संचालित करता है। भारतीय उपनिषद विशेष रूप से अपनी आध्यात्मिक और दार्शनिक शिक्षाओं के लिए जाने जाते हैं और सभी लोगों के सामूहिक कल्याण के महत्व पर जोर देते हैं।

संस्कृत का प्रसिद्ध वाक्यांश ‘वसुदेव कुटुंबकम्’ जिसका अर्थ है विश्व एक परिवार है, भी आपसी सम्मान, साझा जिम्मेदारी और सार्वभौमिक एकजुट के विचार को दर्शाता है। भारत में सन् 1904 में सहकारी ऋण समिति अधिनियम की शुरुआत के साथ सहकारी समितियां एक कानूनी इकाई बन गई जिसमें सहकारी समितियों के गठन, सदस्यता पंजीकरण, सदस्यों की देनदारी, मुनाफा के निपटान नियम बनाने की शक्ति और विघटन के मान दण्डों को रेखांकित किया गया था। वर्ष 1912 के सहकारी समिति अधिनियम ने 1904 के अधिनियम की कमियों का निराकरण किया जिसमें सहकारी समितियों, हथकरघा बुनकरों और अन्य कारीगर समितियों को शामिल करने के लिए दायरे का विस्तार किया गया। इसके बाद 1914 में मैक्सलेगन समिति ने केंद्र, प्रांत और जिला स्तरों पर तीन स्तरीय सहकारी बैंकिंग प्रणाली का प्रस्ताव करते हुए ऋण समितियों के लिए सुधारों की सिफारिश की। वर्ष 1919 के अधिनियम ने प्रांतों को सहकारी समितियों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया, जिसके परिणाम स्वरुप 1925 का मुंबई सहकारी समिति अधिनियम पारित हुआ, जो किसी प्रांतीय सरकार द्वारा पारित पहला सहकारी कानून था। वर्ष 1942 में भारत सरकार ने कई प्रांतों की सदस्यता वाली सहकारी समितियों को भी नियमित करने के लिए बहु इकाई सहकारी समिति अधिनियम लागू किया।

स्वतंत्रता के बाद नई सरकारी प्रणाली का उद्देश्य आर्थिक शक्ति का विकेंद्रीकरण करना और सामाजिक न्याय पर ध्यान केंद्रित करते हुए आर्थिक विकास कार्यक्रमों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना था। सहकारी समितियां भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का एक अभिन्न अंग बन गई जिसकी शुरुआत पहली योजना से हुई जिसमें ग्राम पंचायत के साथ उनके समन्वय पर जोर दिया गया। वर्ष 1963 में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम और वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना ग्रामीण ऋण और सहकारी विकास का समर्थन करने में महत्वपूर्ण मील के पत्थर साबित हुए। वर्ष 1984 में भारतीय संसद में राज्यों में सहकारी समितियों को नियंत्रित करने वाले कानून को कारगर बनाने के लिए बहु राज्य सहकारी संगठन अधिनियम पारित किया। वर्ष 2002 में राष्ट्रीय सहकारी नीति की शुरुआत हुई।

स्वतंत्रता के बाद भारत में सहकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ और भारत सरकार ने इसके महत्व को स्वीकार करते हुए पहली बार 6 जुलाई 2021 को एक पृथक सहकारिता मंत्रालय का गठन किया और केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह देश के पहले सहकारिता मंत्री बने। यह मंत्रालय देश में सहकारिता आंदोलन को सशक्त करने के लिए प्रशासनिक कानूनी और नीतिगत संरचना प्रदान करता है। स्वतंत्रता के पश्चात सहकारी समितियां ग्रामीण भारत में 98त्न हिस्से को कवर कर रही है। खाद्यान्न खरीद के मामले में 13त्न गेहूं और 20त्न धान सहकारी समितियों के माध्यम से खरीदा जाता है। भारत में कुल उर्वरक उत्पादन का 25त्न और वितरण 35त्न सहकारी समितियों के माध्यम से हो रहा है। इसी तरह 30त्न चीनी उत्पादन और 20त्न खुदरा उचित मूल्य की दुकान सहकारी समितियों के माध्यम से संचालित हो रही हैं। 29 करोड़ के संयुक्त सदस्य आधार के साथ भारत की आबादी का लगभग पांचवा हिस्सा है। सहकारी क्षेत्र भारत में 13त्न प्रत्यक्ष रोजगार सृजन में योगदान देता है। भारत दूध उत्पादन में विश्व स्तर पर अग्रणी है और कुल उत्पादन का 10त्न से अधिक डेयरी सहकारी समितियों से आता है। देश में सहकारिता बैंकिंग क्षेत्र में भी प्रमुख है। शहरी सहकारी बैंकों में लगभग 5.5 लाख करोड़ रुपए और ग्रामीण सहकारी बैंकों में 6.53 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। मत्स्य पालन के क्षेत्र में भी सहकारी समितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वर्तमान में लगभग 26000 मत्स्य सहकारी समितियां कार्यरत हैं जिनके सदस्यों की संख्या लगभग 47 लाख हैं। सहकारी समितियों की चीनी क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका है जो भारत के कुल चीनी उत्पादन में 31त्न का योगदान देती हैं। भारत में गुजरात की अमूल, कर्नाटक का कर्नाटक मिल्क फेडरेशन, केरल की ऊरालुंगलरालुंगल श्रम अनुबंध सहकारी समिति और इंडियन कॉफी हाउस, भारतीय किसान उर्वरक सहकारी (इफको) सहकारी क्षेत्र में प्रमुख हैं, स्वतंत्र भारत में सफलतापूर्वक संचालित हो रही हैं।

सहकारिता के क्षेत्र में बड़े स्तर पर सफलतापूर्वक कार्य हो रहे हैं लेकिन ग्रामीण स्तर भी इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों का लाभ किसानों को सामान्यत: रासायनिक खादों की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। एफ.पी.ओ. की तर्ज पर सहकारी समितियों को फल और सब्जी प्रसंस्करण, भंडारण, विपणन आदि के लिए काम करने होंगे ताकि लघु और सीमांत किसानों को भी इसका लाभ मिल सके।

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