राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

सिंधु जल संधि: पाकिस्तान के लिए संकट, भारतीय किसानों के लिए अवसर

16 मई 2025, नई दिल्ली: सिंधु जल संधि: पाकिस्तान के लिए संकट, भारतीय किसानों के लिए अवसर – भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) विश्व की सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय जल बंटवारे की संधियों में से एक मानी जाती रही है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों और भारत द्वारा इसके क्रियान्वयन को निलंबित करने के निर्णय के बाद, खासकर पाकिस्तान के लिए कृषि, अर्थव्यवस्था और जल सुरक्षा का भविष्य संकट में दिखने लगा है।

यह संधि विभाजन के बाद उत्पन्न आवश्यकताओं के चलते अस्तित्व में आई थी। 1947 में भारत के विभाजन के समय सिंधु नदी प्रणाली — जिसमें सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज नदियाँ शामिल हैं — का प्रवाह भारत से पाकिस्तान की ओर है, जिससे भारत को एक ऊपरी प्रवाह क्षेत्र (Upper Riparian) का लाभ मिलता है। प्रारंभ में 1948 के Inter-Dominion Accord के अंतर्गत एक अस्थायी समझौता हुआ था, लेकिन पाकिस्तान की आशंका थी कि भारत जल प्रवाह रोक सकता है, जो उसकी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए जीवनरेखा है।

विश्व बैंक की मध्यस्थता में एक दशक से अधिक समय तक चली बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत, भारत को पूर्वी नदियों — रावी, ब्यास और सतलुज — का विशेषाधिकार मिला जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों — सिंधु, झेलम और चिनाब — पर विशेष अधिकार दिया गया। भारत को इन पश्चिमी नदियों पर गैर-खपत उपयोग (जैसे कि जलविद्युत उत्पादन, नौवहन, मछली पालन) की अनुमति दी गई थी।

हाल ही में पाकिस्तान की ओर से आतंकवादी हमले के बाद संधि को स्थगित करने और जल प्रवाह को रोकने से पाकिस्तान पर इसका स्पष्ट प्रभाव पड़ेगा और भारत के लिए एक बड़ा अवसर पैदा होगा।

जल का उपयोग: भारत और पाकिस्तान की स्थिति

सिंधु बेसिन सिंचाई प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी सतत सिंचाई प्रणालियों में से एक है। पाकिस्तान में, यह प्रणाली देश की 80% से अधिक सिंचित कृषि भूमि को जल उपलब्ध कराती है, जो कि लगभग 2.1 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र है (स्रोत: पाकिस्तान काउंसिल ऑफ रिसर्च इन वॉटर रिसोर्सेज, 2021)। गेहूं, चावल, कपास और गन्ना जैसी फसलें इस जल पर निर्भर हैं। अकेले गेहूं 87 लाख हेक्टेयर में उगाया जाता है, और यह पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ है।

पाकिस्तान आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, देश की GDP में कृषि का योगदान लगभग 23% है और 38% कार्यबल इस क्षेत्र में कार्यरत है। कुल कृषि उत्पादन का 90% हिस्सा सिंधु जल प्रणाली पर निर्भर करता है।

भारत में, पूर्वी नदियाँ — रावी, ब्यास और सतलुज — पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के हिस्सों को सिंचित करती हैं। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इन नदियों से हर वर्ष लगभग 1 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होती है। गेहूं, धान, गन्ना और कपास जैसी फसलें यहां प्रमुख हैं। हालांकि भारत की सिंधु जल प्रणाली पर निर्भरता पाकिस्तान की तुलना में कम है (क्योंकि भारत में गंगा और गोदावरी जैसे अन्य जल संसाधन हैं), लेकिन पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में यह प्रणाली रबी मौसम में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

भारत इन पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत उत्पादन हेतु भी जल का उपयोग करता है। बगलिहार डैम (चिनाब पर) और किशनगंगा परियोजना (झेलम पर) जैसे प्रोजेक्ट पाकिस्तान के आपत्ति के कारण विवादित रहे हैं, बावजूद इसके कि ये संधि के तहत अनुमत हैं।

किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्व

पाकिस्तान के किसानों ने दशकों से सिंधु जल पर अपनी बुवाई और कटाई की समय-सीमा निर्धारित की है। सिंधु सिंचाई प्रणाली — जिसमें टर्बेला और मंगला जैसे बाँधों, नहरों और बैराजों की श्रृंखला शामिल है — ने शुष्क भूमि को उपजाऊ खेतों में बदला। इससे पाकिस्तान कई बार खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बना और बासमती चावल व कपास जैसे उत्पादों के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सिंधु जल से जुड़ी कई उद्योगों की निर्भरता है — जैसे कि वस्त्र उद्योग, चीनी कारखाने, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ — जो सभी जल की स्थायी आपूर्ति पर निर्भर करते हैं। पाकिस्तान टेक्सटाइल काउंसिल (2023) की रिपोर्ट के अनुसार, वस्त्र उद्योग पाकिस्तान के 60% निर्यात का प्रतिनिधित्व करता है और यह जल का बड़ा उपभोक्ता है।

भारत में भी इसी जल पर हरित क्रांति (Green Revolution) की नींव रखी गई थी। पंजाब और हरियाणा में सुनिश्चित जल आपूर्ति ने उच्च फसल उत्पादन को संभव बनाया, जिससे ग्रामीण आय में वृद्धि हुई और कृषि आधारित उद्योगों को मजबूती मिली। कृषि यंत्रीकरण, रासायनिक खादों का उपयोग और नई फसल प्रणालियाँ इसी जल प्रणाली पर आधारित हैं।

संधि निलंबन के संभावित परिणाम

इस संधि का निलंबन विशेष रूप से पाकिस्तान के लिए गहरे संकट का संकेत है।

पहला, यदि पश्चिमी नदियों के प्रवाह में कमी आती है तो पाकिस्तान की विशाल कृषि भूमि जलविहीन हो जाएगी। PCRWR के अनुसार, यदि सिंधु जल उपलब्ध नहीं हुआ, तो कम से कम 70% सिंचित भूमि बंजर हो सकती है। इसका सीधा असर गेहूं और चावल उत्पादन पर पड़ेगा, जिससे खाद्य संकट, महंगाई और सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है।

दूसरा, जल-निर्भर उद्योगों पर गंभीर असर पड़ेगा। वस्त्र उद्योग, चीनी मिलें और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ उत्पादन में कटौती करने को मजबूर हो सकती हैं। जलविद्युत उत्पादन में गिरावट से बिजली संकट भी बढ़ेगा।

पाकिस्तान बिजनेस काउंसिल के अनुसार, यदि कृषि उत्पादन में 10% की गिरावट आती है, तो इससे पाकिस्तान की GDP वृद्धि दर में 1.5% तक की कमी आ सकती है — जो पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे देश के लिए घातक है।

तीसरा, प्रांतीय टकराव की आशंका भी बढ़ेगी। सिंध और बलूचिस्तान जैसे निचले क्षेत्रों में जल की कमी से पंजाब जैसे ऊपरी राज्यों से टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

भारत के लिए जल संसाधन का दोहन: अवसर और चुनौतियाँ

भारत के लिए, संधि का निलंबन पश्चिमी नदियों के जल पर अधिक नियंत्रण का अवसर प्रदान करता है। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, पश्चिमी नदियों से हर वर्ष लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) जल बहता है, जिसमें से भारत अभी तक केवल 3-4 MAF का उपयोग कर रहा है। अर्थात भारत के पास अभी भी एक विशाल संभावनाशील जल संसाधन मौजूद है।

यदि भारत इसे पूर्णतः उपयोग करने का निर्णय लेता है, तो वह:

  1. सिंचाई क्षेत्र का विस्तार कर सकता है — जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में अतिरिक्त 5 से 10 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकता है (स्रोत: केंद्रीय जल आयोग, 2022)।
  2. जलविद्युत उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है — चिनाब पर सावलकोट परियोजना और रतले परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स से 3,300 मेगावाटकी अतिरिक्त विद्युत उत्पादन क्षमता उत्पन्न की जा सकती है।
  3. जल भंडारण और प्रबंधन को सुदृढ़ कर सकता है — बांध और जलाशयों के माध्यम से जल संचयन बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा मिल सकती है।

हालांकि, इन परियोजनाओं के लिए बड़े निवेश, पर्यावरणीय मूल्यांकन और क्षेत्रीय राजनीतिक संतुलन की आवश्यकता होगी। पाकिस्तान इसे उकसावे के रूप में देख सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की रणनीति की आलोचना हो सकती है।

टूटी संधि या नई संभावना?

सिंधु जल संधि, भारत-पाक रिश्तों में एक स्थिरता का स्तंभ रही है। इसका निलंबन पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक अस्थिर भविष्य की शुरुआत हो सकता है।

पाकिस्तान के लिए यह एक जल संकट है, जो कृषि ढांचे और अर्थव्यवस्था दोनों को झकझोर सकता है। खाद्य उत्पादन में गिरावट, निर्यात घटने और ग्रामीण बेरोजगारी से सामाजिक-आर्थिक असंतुलन बढ़ सकता है।

भारत के लिए यह जल संसाधनों के बेहतर उपयोग का अवसर है। यदि योजनाबद्ध तरीके से जल संग्रह, सिंचाई और विद्युत उत्पादन में निवेश किया जाए, तो यह देश की खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास और ऊर्जा जरूरतों को सशक्त कर सकता है।

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