MSP में कितना बदलाव? पांच साल में फसलों की लागत और समर्थन मूल्य का पूरा हिसाब
20 मार्च 2025, नई दिल्ली: MSP में कितना बदलाव? पांच साल में फसलों की लागत और समर्थन मूल्य का पूरा हिसाब – कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर विस्तृत जानकारी साझा की है। 18 मार्च 2025 को प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा जारी एक बयान में बताया गया कि सरकार 22 अनिवार्य फसलों के लिए एमएसपी तय करती है। यह फैसला कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों, राज्य सरकारों और संबंधित मंत्रालयों के सुझावों के आधार पर लिया जाता है। पिछले पांच सालों में फसलों की उत्पादन लागत और एमएसपी में हुए बदलाव का ब्योरा भी सामने आया है।
कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा, “सरकार भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य एजेंसियों के जरिए अनाज और मोटे अनाज की खरीद करती है ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके।” गेहूं और धान की खरीद का अनुमान हर विपणन मौसम से पहले उत्पादन, बाजार में उपलब्ध अधिशेष और फसल पैटर्न के आधार पर तय किया जाता है।
पीएम-आशा योजना और खरीद की सीमा
दाल, तिलहन और खोपरे की खरीद प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) के तहत होती है। यह खरीद तब शुरू होती है जब बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे चला जाता है। नेफेड और एनसीसीएफ जैसी एजेंसियां इस प्रक्रिया को संभालती हैं। हालांकि, खरीद की मात्रा को उस साल के कुल उत्पादन के 25% तक सीमित रखा गया है। वहीं, कपास और जूट की खरीद क्रमशः कपास निगम भारत (सीसीआई) और जूट निगम भारत (जेसीआई) के जरिए होती है, जिसमें कोई मात्रा सीमा नहीं है।
पांच साल में कितना अंतर?
परिशिष्ट-I में दी गई जानकारी के मुताबिक, खरीफ, रबी, खोपरा और जूट की उत्पादन लागत और एमएसपी में पिछले पांच सालों में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है। उदाहरण के लिए, धान (सामान्य) की लागत 2020-21 में 1245 रुपये प्रति क्विंटल थी जो 2024-25 में बढ़कर 1533 रुपये हो गई, जबकि इसका एमएसपी 1868 रुपये से बढ़कर 2300 रुपये हो गया। इसी तरह, गेहूं की लागत 2021-22 में 960 रुपये थी जो 2025-26 में 1182 रुपये हो गई, और एमएसपी 1975 रुपये से 2425 रुपये तक पहुंचा।
नीचे दी गई तालिका में विभिन्न फसलों की लागत और एमएसपी का तुलनात्मक विवरण देखा जा सकता है:
खरीफ फसलें (2020-21 और 2024-25)
क्रम संख्या | फसल | लागत (2020-21) | लागत (2024-25) | अंतर | एमएसपी (2020-21) | एमएसपी (2024-25) | अंतर |
1 | धान सामान्य | 1245 | 1533 | 288 | 1868 | 2300 | 432 |
2 | ज्वार | 1746 | 2247 | 501 | 2620 | 3371 | 751 |
3 | बाजरा | 1175 | 1485 | 310 | 2150 | 2625 | 475 |
4 | रागी | 2194 | 2860 | 666 | 3295 | 4290 | 995 |
5 | मक्का | 1213 | 1447 | 234 | 1850 | 2225 | 375 |
6 | तूर (अरहर) | 3796 | 4761 | 965 | 6000 | 7550 | 1550 |
7 | मूंग | 4797 | 5788 | 991 | 7196 | 8682 | 1486 |
8 | उड़द | 3660 | 4883 | 1223 | 6000 | 7400 | 1400 |
9 | मूंगफली | 3515 | 4522 | 1007 | 5275 | 6783 | 1508 |
10 | सूरजमुखी | 3921 | 4853 | 932 | 5885 | 7280 | 1395 |
11 | सोयाबीन (पीला) | 2587 | 3261 | 674 | 3880 | 4892 | 1012 |
12 | तिल | 4570 | 6178 | 1608 | 6855 | 9267 | 2412 |
13 | काला तिल | 4462 | 5811 | 1349 | 6695 | 8717 | 2022 |
14 | कपास (मध्यम) | 3676 | 4747 | 1071 | 5515 | 7121 | 1606 |
रबी फसलें (2021-22 और 2025-26)
क्रम संख्या | फसल | लागत (2021-22) | लागत (2025-26) | अंतर | एमएसपी (2021-22) | एमएसपी (2025-26) | अंतर |
1 | गेहूं | 960 | 1182 | 222 | 1975 | 2425 | 450 |
2 | जौ | 971 | 1239 | 268 | 1600 | 1980 | 380 |
3 | चना | 2866 | 3527 | 661 | 5100 | 5650 | 550 |
4 | मसूर (दाल) | 2864 | 3537 | 673 | 5100 | 6700 | 1600 |
5 | रैपसीड/सरसों | 2415 | 3011 | 596 | 4650 | 5950 | 1300 |
6 | कुसुम | 3551 | 3960 | 409 | 5327 | 5940 | 613 |
खोपरा और जूट
क्रम संख्या | फसल | लागत (2021) | लागत (2025) | अंतर | एमएसपी (2021) | एमएसपी (2025) | अंतर |
1 | खोपरा (मिलिंग) | 6805 | 7721 | 916 | 10335 | 11582 | 1247 |
2 | जूट | 2832 | 3387 | 555 | 4500 | 5650 | 1150 |
(सभी आंकड़े रुपये प्रति क्विंटल में)
क्या कहते हैं आंकड़े?
आंकड़ों से साफ है कि उत्पादन लागत और एमएसपी दोनों में पिछले पांच सालों में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, लागत के मुकाबले एमएसपी में बढ़ोतरी का अनुपात हर फसल के लिए अलग-अलग है। मसलन, तिल की लागत में 1608 रुपये की बढ़ोतरी के मुकाबले एमएसपी 2412 रुपये बढ़ा, जबकि गेहूं की लागत 222 रुपये बढ़ने पर एमएसपी में 450 रुपये की वृद्धि हुई।
यह जानकारी किसानों और नीति निर्माताओं के लिए अहम हो सकती है, क्योंकि यह लागत और समर्थन मूल्य के बीच संतुलन को दर्शाती है। हालांकि, बाजार में वास्तविक कीमतें और खरीद की प्रक्रिया अभी भी कई सवाल खड़े करती हैं, जिनका जवाब आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है।
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