घोड़ों की जानलेवा बीमारी ग्लैंडर्स पर काबू पाने के लिए सरकार ने नई राष्ट्रीय कार्य योजना लागू की
28 अगस्त 2025, नई दिल्ली: घोड़ों की जानलेवा बीमारी ग्लैंडर्स पर काबू पाने के लिए सरकार ने नई राष्ट्रीय कार्य योजना लागू की – मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) ने घोड़ों में होने वाली गंभीर बीमारी ग्लैंडर्स के रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक संशोधित राष्ट्रीय कार्य योजना लागू की है। इस योजना का मकसद देशभर में इस बीमारी की सही निगरानी, रोकथाम, नियंत्रण और समाप्ति को बढ़ावा देना है।
ग्लैंडर्स एक खतरनाक और संक्रामक बीमारी है, जो खासतौर पर घोड़े, खच्चर और गधे जैसे जानवरों को प्रभावित करती है। यह इंसानों के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है। इसलिए सरकार इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कदम उठा रही है।
संक्रमित और निगरानी क्षेत्र में बदलाव
संशोधित योजना के तहत संक्रमित क्षेत्र की सीमा को पहले के 5 किलोमीटर से घटाकर अब 2 किलोमीटर कर दिया गया है। वहीं, निगरानी क्षेत्र, जो पहले 5 से 25 किलोमीटर तक था, अब घटाकर 2 से 10 किलोमीटर कर दिया गया है। इसके अलावा, संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लगाई जाने वाली प्रतिबंधों की सीमा भी अब 10 किलोमीटर तक सीमित कर दी गई है।
अब अश्वों (घोड़े, खच्चर आदि) का अनिवार्य परीक्षण किया जाएगा, खासकर उन इलाकों में जो पहले से संक्रमित हैं या जोखिम वाले माने जाते हैं। इसके लिए बेहतर प्रयोगशाला सुविधा, नियमित निरीक्षण, और सटीक रिपोर्टिंग प्रणाली को अपनाया जाएगा।
कठोर क्वारंटाइन एवं आवागमन नियंत्रण
ग्लैंडर्स प्रभावित इलाकों से जानवरों की आवाजाही पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाएंगे। साथ ही, क्वारंटाइन (अलग रखने) की व्यवस्था और प्रमाणन प्रणाली भी लागू की जाएगी। अब अश्व मेलों, यात्राओं और राज्य के बीच जानवरों के आवागमन के लिए खास नियम बनाए गए हैं।
अगर किसी जानवर में ग्लैंडर्स के लक्षण पाए जाते हैं, तो राज्य के पशुपालन विभाग की मदद से तुरंत कार्रवाई, अलगाव और ज़रूरत पड़ने पर मानवीय तरीके से निपटारा किया जाएगा। इसके लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOP) तैयार की गई हैं। साथ ही, पशु चिकित्सकों, अर्ध-चिकित्सकों और मैदानी कर्मचारियों को इस बीमारी की पहचान, रिपोर्टिंग और जैव सुरक्षा के नियमों पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
जागरूकता अभियान और अनुसंधान में सहयोग
घोड़े पालने वाले, प्रजनक और अन्य हितधारकों को इस योजना में शामिल किया जाएगा ताकि वे भी निगरानी और बीमारी की रिपोर्टिंग में सहयोग कर सकें। इसके लिए सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे।
इसके अलावा, सरकार आईसीएआर – राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE), हिसार के साथ मिलकर बीमारी के गहराई से अध्ययन और बेहतर परीक्षण विधियों पर काम करेगी।
यह पूरी योजना राज्य सरकारों, पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर लागू की जाएगी। पशुपालन विभाग इसके सही क्रियान्वयन, तकनीकी मार्गदर्शन और निगरानी की जिम्मेदारी संभालेगा। यह संशोधित योजना ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण, यानी इंसान, पशु और पर्यावरण की संयुक्त सुरक्षा, की दिशा में सरकार के निरंतर प्रयासों को दर्शाती है। साथ ही, यह उन लोगों की आजीविका की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है, जो अश्वों पर निर्भर हैं।
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