राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

अच्छे मानसून से बढ़ीं दालों की अच्छी पैदावार की उम्मीद

लेखक: शशिकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार

सभी किस्म की दालें प्रोटीन का एक बहुत अच्छा स्त्रोत होती हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में इनकी कीमतों में बहुत बढ़ोतरी हुई है

07 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: अच्छे मानसून से बढ़ीं दालों की अच्छी पैदावार की उम्मीद – इस साल अच्छे मानसून के चलते खरीफ की बेहतरीन फसल होने की संभावना है.साथ ही केंद्र सरकार आने वाले कुछ दिनों में अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से दालों के बढ़ते आयात के कारण, आगामी त्योहारी महीनों में दालों की कीमतों पर कुछ अंकुश लगाने की योजना बना रही है. इस साल लगभग सभी दाल उत्पादक क्षेत्रों में मानसूनी बारिश ने घरेलू खरीफ फसल की संभावनाओं को बढ़ा दिया है. उम्मीद यह की जा रही है कि लगभग सभी दालों की कीमतों में आने वाले कुछ महीनों में कमी आएगी।

इस साल 1 जून से सितंबर के आखिरी हफ्ते तक औसत या ‘सामान्य से ऊपर’ सीमा से 6.4 फ़ीसदी अधिक बारिश हुई है। भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि देश के 729 जिलों में 77 फ़ीसदी से अधिक से लेकर सामान्य सीमा तक वर्षा हुई है।

इस अच्छी बरसात के कारण हाल ही में कृषि मंत्रालय ने कहा है कि तुअर और मूंग उत्पादन के लिए पैदावार की संभावनाएं बहुत अच्छी हैं. लगभग 128 लाख हेक्टेयर पर, दलहन – तुअर, उड़द और मूंग बोए गए हैं जो पिछले साल की तुलना में 7.8 फ़ीसदी अधिक हैं। हालांकि व्यापारियों का कहना है कि दालों में तुअर उत्पादन पिछले साल की तुलना में अधिक होने की संभावना है, लेकिन प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अतिरिक्त बारिश के कारण उड़द उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

फिर भी उम्मीद है कि दालों की कीमतों में कमी आ सकती है। चने की कीमतों में जुलाई में सालाना आधार पर 20.55 फ़ीसदी की वबढ़ोतरी हुई है, वर्ष के अंत तक ऑस्ट्रेलिया से आयात शुरू होने के बाद चने की कीमतों में भी नरमी आने की उम्मीद है।

अगर कृषि मंत्रालय के सूत्रों पर विश्वास किया जाए तो इस साल दिसंबर तक ऑस्ट्रेलिया से लगभग 10 से 15 लाख टन ‘देसी चना’ या बंगाल चना के आयात हो सकता है. यह आयात चालू फसल वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) में चने के घरेलू उत्पादन में कमी को पूरा करेगा। मई में, सरकार इस साल के अंत (मार्च 25) तक ‘देसी चना’ पर 66 फीसदी आयात शुल्क समाप्त कर दिया था। देसी चने की पैदावार इस साल (2023-24)पिछले साल के मुकाबले 5.62 फीसदी घटकर 11.57 मीट्रिक टन रह गया। कई उत्पादों में चने की जगह पीली मटर का इस्तेमाल होता है तो चने की कमी को काफी हद तक पूरा करता है. सरकार ने 30 सितंबर तक अरहर और चना पर स्टॉक होल्डिंग सीमा लगा दी थी। पिछले साल दिसंबर में सरकार ने पीली मटर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दी थी, जबकि घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए 2017 में दालों की किस्म पर 50 फीसदी का आयात शुल्क लगाया गया था.

इस सीजन में सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश से रबी की फसलों के लिए मिट्टी में नमी बढ़ने की उम्मीद है और घरेलू चना उत्पादन में भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। अन्य दलों में भारत म्यांमार से लगभग चार लाख टन उड़द और तीन लाख मीट्रिक टन तुअर का आयात किया गया है, जबकि मोजाम्बिक सहित अफ्रीकी देशों से आयात शुरू हो गया है। सूत्रों ने बताया कि मोजाम्बिक से 30,000 टन तुअर दाल लेकर दो जहाज बंदरगाहों पर पहुंच चुके हैं।

भारत अपनी दालों की खपत का लगभग 15 फीसदी आयात करता है। भारत का दालों का आयात वित्त वर्ष 2024 में 90 फ़ीसदी बढ़कर 473000 मीट्रिक टन हो गया, जबकि 2022-23 में यह 269000 मीट्रिक टन था। पिछले साल (2023-24) में दालों का उत्पादन 2022-23के 260000 लाख मीट्रिक टन से 6% घटकर 244000 मीट्रिक टन रह गया। भारत ने 2016 में जब तुअर की खुदरा कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई थीं, तब पांच साल के लिए सालाना 200000 मीट्रिक टन तुअर के आयात के लिए मोजाम्बिक के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौता ज्ञापन को सितंबर, 2021 में अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया था। 2021 में, भारत ने अगले पांच वर्षों के लिए प्रति वर्ष 50,000 टन तुअर के आयात के लिए मलावी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। समझौता ज्ञापन के तहत, भारत 2026 तक म्यांमार से 100000 मीट्रिक टन तुअर और 250000 मीट्रिक टन उड़द आयात करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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