भारत में पहली बार ग्रीन अमोनिया पर होगा खेती का ट्रायल, ACME ने ICAR से मांगी मंजूरी
23 जुलाई 2025, नई दिल्ली: भारत में पहली बार ग्रीन अमोनिया पर होगा खेती का ट्रायल, ACME ने ICAR से मांगी मंजूरी – भारत में यूरिया की बढ़ती मांग और भारी आयात पर निर्भरता को कम करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया गया है। ACME ग्रुप की कंपनी ने पहली बार ग्रीन अमोनिया पर आधारित खेती का ट्रायल करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से अनुमति मांगी है। कंपनी का दावा है कि ग्रीन अमोनिया आधारित खाद, पारंपरिक यूरिया से ज्यादा असरदार है और इससे खेती की लागत में भी कमी आएगी। हालांकि, इसका उपयोग देश में तभी शुरू होगा जब ICAR वैज्ञानिक जांच और फसल ट्रायल के आधार पर इसे मंजूरी देगा।
ICAR के महानिदेशक एमएल जात ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि ACME का प्रस्ताव मिला है और प्रक्रिया जारी है। सूत्रों के अनुसार, ICAR के नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट (NRM) डिवीजन इस पायलट प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक मंजूरी पहले ही दे चुका है।अब अंतिम स्वीकृति मिलते ही देश के कुछ चुनिंदा खेतों में ग्रीन अमोनिया पर आधारित खाद का फील्ड ट्रायल शुरू किया जाएगा।
रबी सीजन से शुरू होगा ट्रायल
ACME क्लीनटेक सॉल्यूशंस के उपाध्यक्ष शशि शेखर ने बताया है कि कंपनी भारत में ग्रीन अमोनिया का पहला प्लांट लगाने की तैयारी में है। इसकी लागत करीब ₹13,000 से ₹15,000 करोड़ होगी। प्लांट की क्षमता रोजाना 1,200 टन उत्पादन की होगी। मंजूरी के बाद प्लांट बनने में करीब तीन साल लगेंगे। शेखर के मुताबिक, “अगर ICAR जल्द मंजूरी देता है तो हम इस साल के रबी सीजन से ही किसानों के खेतों में ट्रायल शुरू कर देंगे।”
यूरिया आयात पर खर्च घटेगा
फिलहाल भारत में हर साल 38.8 मिलियन टन यूरिया की खपत होती है। इसे बनाने के लिए भारत को हर साल 22 मिलियन टन प्राकृतिक गैस आयात करनी पड़ती है, जिस पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होता है। साथ ही भारत हर साल 4 मिलियन टन अमोनिया भी बाहर से मंगाता है। ACME का दावा है कि ग्रीन अमोनिया से देश का यूरिया आयात काफी हद तक कम हो सकता है।
यूरिया से दोगुनी असरदार होगी ग्रीन अमोनिया खाद
कंपनी के मुताबिक, ग्रीन अमोनिया से बनी एक्वस अमोनिया में नाइट्रोजन उपयोग की क्षमता (NUE) 60-65% है जो यूरिया से लगभग दोगुनी है। वहीं एनहाइड्रस अमोनिया में यह क्षमता 82% तक जाती है। यूरिया में सिर्फ 46% नाइट्रोजन होता है। इससे खाद की खपत घटेगी, पैदावार बढ़ेगी और मिट्टी की उर्वरता भी लंबे समय तक बनी रहेगी। साथ ही मिट्टी में नाइट्रेट लीचिंग भी कम होगी।
अमेरिका और ब्राजील में हो रहा इस्तेमाल
ग्रीन अमोनिया का इस्तेमाल अमेरिका, ब्राजील और चीन जैसे देशों में गेहूं, धान, मक्का, गन्ना और फल-सब्जी की खेती में पहले से हो रहा है। भारत में पहली बार इसका ट्रायल होगा। इसके लिए ICAR फसलों के हिसाब से सही मात्रा और इस्तेमाल का तरीका तय करेगा। साथ ही किसानों को इसका सुरक्षित इस्तेमाल सिखाया जाएगा।
कंपनी ने कहा है कि वह ग्रीन अमोनिया और तकनीकी सहयोग मुफ्त में देगी, जबकि ICAR वैज्ञानिक निगरानी और किसानों के साथ काम करेगा। अगर सबकुछ ठीक रहा तो आने वाले समय में भारत में ग्रीन अमोनिया खेती में बड़ा बदलाव ला सकता है।
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