जानलेवा हो रही है, बाजारु खाद्य एवं जीवन उपयोगी समाग्री
लेखक: अंबिका, हास्पीटल रोड, विदिशा 464001, मोवा. 9425640778
03 अक्टूबर 2024, भोपाल: जानलेवा हो रही है, बाजारु खाद्य एवं जीवन उपयोगी समाग्री – वर्ष 1991 में देश अंदर नरसिह राव सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियो को खानपान की सामग्री सहित सभी तरह के व्यापार की खुली अनुमति मिलना है। विदेशी व्यापार अनुमति के बाद से देश में अतिप्रसंस्कृत डिब्बावंद एंव पाउच पैक सामग्री का चलन बहुत तेजी से बडा है। गरीब से लेकर अमीर व्यति छोटे से लेकर बडी उम्र तक सभी पैकेज्ड फूड को तुरंत भूख मिटाने की खाद्य सामग्री मान चुके है। अंतर सिर्फ इतना है कि गरीब पॉच रुपए की खाद्य सामग्री का पाउच खरीद रहा है, तो सक्षम उसी गुणवत्ता का अधिक मात्रा वाला पाउच खरीद रहा है। खेतीयर मजदूर,हम्माल अब काम के दौरान घर से बना नास्ता लाने के बजाए, बजारु खाद्य सामग्री पर आश्रित हो चुके है।

पिछले कुछ समय में छोटें बच्चो सहित युवाओ में हद्धयाघात, मधुमेह सहित कैंसर से मौते के मामले बहुत ही तेजी से वृद्धि हुई है। इसके साथ फंगल एंव वायरस होने वाली खतरनाक बीमारियों का प्रकोप बडा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिर्पोट 2022 में मात्र एक बर्ष की अबधि दौरान देश में कैंसर के 14.1 लाख नए मामले सामने आए,जिसमें नौ लाख से अधिक मौते हुई है। रिर्पोट के मुताबिक आगामी 2050 तक विश्व में कैंसर की बीमारी में 77 फीसदी की बडौत्तरी होगी। कैंसर शोघ की अन्र्तराष्ट्रीय संस्था आईएआरएसी के अनुमान 2022 के अनुसार पिछले वर्षो में मुंह,गला एंव महिला स्तन कैंसर में सर्वाधिकता के अतिरिक्त पैतीस प्रकार के कैंसर में अधिक वृद्धि हुई है। पेट,मलाशय,प्रोस्टेट,त्वचा,खून के कैंसर में एकाएक वृद्धि का स्तर अप्रत्याशित है। देश में जहॉ मोटापे वृद्धि हो रही है,वही मोटापा कैंसर में वृद्धि का कारण भी वन रहा है। डब्लूएचओ के संभावित अनुमानो से सन् 2035 तक भारत में कैंसर से मरने वाली की संख्या का आंकडा पैतीस लाख प्रतिवर्ष तक पहुचेगा। कैंसर का कारण मानव शरीर कोशिकाओं में असामान्य वृद्धि एंव उनका विभाजन है। जो कि केमीकल युक्त भोजन सामग्री एंव खराब जीवन शैली के कारण है। सेंटर फार साइंस एंड एन्वार्यमेंट(सीएसई) की रिर्पोट में देश के शहरो में निवासरत 93 फीसदी बच्चे सप्ताह में एक दिन पैक फूड खाते है। जबकि 53 फीसदी बच्चे प्रतिदिन जंक फूड ले रहे है। शहरो से लेकर ग्रामीण गरीब एंव मजदूर बच्चो में दिनचर्या की शुरुआत पाउच के रुप में मिलने वाले जंक फूड से हो रही है। सन् 2011 से सन् 2021 की अबधि में देश में जंक फूड का कारोबार 13.37 फीसदी की दर से लगातार बड रहा है। जिससे देश के ग्यारहा फीसदी बच्चे मोटापे का शिकार हो चुके है। लांसेट पत्रिका समूह की एक शोध रिर्पोट 2022 देश में 1.25 करोड बच्चे तय वजन से अत्याधिक मोटे थे। यह संख्या वर्ष 1990 के आंकडो से तुलना में 25 गुना अधिक की दर से वृद्धि कर रही है। इसके पीछे का कारण वर्ष 1991 में देश अंदर नरसिह राव सरकार ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियो को खानपान की सामग्री सहित सभी तरह के व्यापार की खुली अनुमति मिलना है। विदेशी व्यापार अनुमति के बाद से देश में अतिप्रसंस्कृत डिब्बावंद एंव पाउच पैक सामग्री का चलन बहुत तेजी से बडा है। गरीब से लेकर अमीर व्यति छोटे से लेकर बडी उम्र तक सभी पैकेज्ड फूड को तुरंत भूख मिटाने की खाद्य सामग्री मान चुके है। अंतर सिर्फ इतना है कि गरीब पॉच रुपए की खाद्य सामग्री का पाउच खरीद रहा है, तो सक्षम उसी गुणवत्ता का अधिक मात्रा वाला पाउच खरीद रहा है। खेतीयर मजदूर,हम्माल अब काम के दौरान घर से बना नास्ता लाने के बजाए, बजारु खाद्य सामग्री पर आश्रित हो चुके है। देश में वीस बर्ष से अधिक उम्र के सात करोड से अधिक वयस्क जिनकी दैनिक भोजन सामग्री में अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ शामिल है, स्वयं को तंदुरुस्त नही मानते है। पैकेज्ट फूड एंव साफ्ट ड्रिग्स का अति प्रंसस्करण, कृत्रिम मिठास, नमक की अधिक मात्रा,सट्रिक,फास्फोरिक अम्लता के साथ प्रिजंवेंटिव की अत्याधिक मात्रा लीवर,किडनी,अस्थमा,ब्रेन टयूमर सहित कैंसर की बीमारी के लिए जिम्मेदार है। कृत्रिम पेय पदार्थ,चाकलेट एंव डिब्बा बंद फलो के ज्यूस से यूरिन इंन्फेक्शन की शिकायते देश में तेजी से बडी है। सेंटर फांर सांइंस एंड एनवायरमेंट(सीएसई) के आंकडे वताते है कि देश में 71 फीसदी आबादी स्वस्थ्य आहार नही ले रही है। जिसकी वजह से देश में प्रतिबर्ष 17 लाख लोग मधुमेह,कैंसर,तपेदिक एंव हद्धय संबंधी बीमारियों से मौत के शिकार हो रहे है। अमेरिका के इंस्टीयूड फार हेल्थ मैटिक्स एंड इपैल्यूएशन की रिर्पोट के अनुसार सिगरेट,शराब के बाद विश्व में अधिक मौते तय मात्रा से अधिक नमक खाने से होती है। विश्व स्ववस्थ्य संगठन प्रति वयस्क प्रतिदिन .02 ग्राम से अधिक मात्रा की अनुमति नही देता हैं। टांक्सिक्स लिंक नाम के एनजीओ के शोध में दावा है कि देश में बडते कैंसर एंव दिल के रोग की एक वजह नमक एंव चीनी में मौजूद प्लास्टिक के माइक्रो कण है। संस्था के शोध में साधारण समुद्री नमक में माइक्रोप्लास्टीक की मात्रा 11.85 से 68.25 टुकडे प्रति कि.गा्म जबकि आयोडीन युक्त नमक में यह मात्रा 89.15 प्रति कि.गाम्र पाई गई है। जो शरीर में जम्बे समय तक स्थिर रहकर कैंसर,अस्थमा एंव हद्धय रोग का कारण बनती है। डिब्बा बंद सामग्री में मुख्य घटक नमक या शक्कर ही है।
अमेरिका की एक सौन्दर्य प्रसाधन कम्पनी के विरुद्ध वहॉ की हजारो महिलाओ ने इस आरोप के साथ प्रकरण दायर किया है कि उसके उत्पाद से मेसोथेलियोमा कैंसर फैल रहा है। जबकि भारत में इन उत्पादो को उच्च गुणवत्ता का बताकर धडल्ले से बेचा जा रहा है। शाररिक सौन्दर्य की उक्त सामग्री को शरीर पर अधिक समय तक टिकाउ बनाने एस्बेस्टस का उपयोग होता है। ब्रिटिश मेडीकल टेसबर्ड की रिर्पोट के मुताबिक सौन्दर्य सामग्री में एस्वेस्टस को उपलब्ध तकनीक से पकडना आसान नही है। इसलिए सौदर्य प्रसाधन कंपनियां अपने उत्पादो को विषाक्त मुक्त होने का दावा जरुर करती है, लेकिन सौन्दर्य प्रसाधन में टेल्कम, बेंजीन की घटक मात्रा होती है जो कैंसर कारक है। देश में खाद्य सामग्री,दवाईयों सहित दैनिक उपयोगी सामग्री की निगरानी एंव जॉच हेतु संबंधित विभागो के पास न तो पर्याप्त कर्मचारी है,न ही जांच प्रयोगशालाऐ राज्य सरकारो के पास ऐसे विभाग चलाने वित्तीय बजट की कमी है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड आंथरिटी आफ इंडिया(एफएसएसआई के नियमानुसार एक खाद्य निरिक्षक के पास अधिकतम 02 हजार दुकानो की निगरानी का जिम्मा होना चहिए। लेकिन राज्यो में एक—एक खाद्य निरिक्षक पर पंद्ररहा हजार दुकानो तक की निगरानी का जिम्मा है। वर्ष 2022 तक देश में मात्र 224 खाद्य परिक्षण प्रयोगशालाए थी। जिसमें सरकारी प्रयोगशालाओ की संख्या एक सैकडा भी नही है। प्रयोगशाला की कमी के कारण समय पर जॉच न होने से मिलावट करने वाले दंड की प्रक्रिया से बाहर हो जाते है। बीते समय में हॉगकांग एंव सिंगापुर ने भारतीय मसाला कंपनी के आयात पर रोक के बाद भी भारतीय बजारो में इन उत्पादो का विक्रय नही रोका गया, क्याकि भारतीय प्रयोगशालाओ पर स्पस्ट जॉच रिर्पोट नही थी। जबकि उक्त ब्रॉड पर कैंसर कारक पिंजरवेटिव की अधिक मात्रा का उपयोग विदेशी प्रयोगशालाओ में पाया गया है। भारतीय कानून मे अत्याधिक शिथिलता एंव जॉच की विलंवता मिलावटी अपराध की कारगर रोक में नाकाम होती है। हाल के दिनो में एक बडे धामिैक स्थल की प्रसाद सामग्री में पशु चर्बी की उपस्थिति के आरोप का मामला सर्वोच्च न्ययालय की चौखट तक जा पहुॅचा है। आरोप है कि चर्बीयुक्त घी का उपयोग प्रसाद में होता था। लेकिन वाबजूद इसके सरकारी जॉच व्यवस्थाओ में कसावट लाने, खाद्य सामग्री की गुणवत्ता एंव नागरिक सेहत पर कही कोई चिंता एंव विर्मश होता नही दिखाई देता है। बीते बर्षो में जनता की मांग पर राजस्थान एंव मप्र सहित कुछ राज्य सरकारे ने कानून में संशोधन कर मिलावट में कानूनी सजा में वृद्धि तो कर दी है, लेकिन जांच तंत्र की जंग लगी प्रक्रिया का दुरस्तीकरण नही हो सका है। जॉच एंव सुनवाई की लम्बी प्रक्रिया एंव अफसरशाही का भ्रष्टाचार अपराधी को दोष मुक्त करने में मददगार ही सिद्ध हो रहा है। भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण(एफएसएसएआई) ने गुणवत्ता एंव दोषपूर्ण उत्पादो की ब्रिकी,निर्माण एंव भंडारण पर रोक लगाने के उद्धेश्य से चौहदा अंको के डिजीटल पंजीयन को अनिवार्य किया है। लेकिन आज भी साठ फीसदी खाद्य सामग्री विक्रेताओ के पास लाइसेंस नही है। वजह निगरानी तंत्र की कमी! बिना किसी जान पहचान के रेकडी वाले सडको पर धडल्ले से व्यापार करते है। मिलावटी सामग्री से हादसा होने की दशा में प्रशासन को खोज पाना आसान नही है। लेकिन सरकारी व्यवस्थाऐ हादसो तक सोती ही रहती है।
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