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लॉकडाउन के कारण डेयरी क्षेत्र के लिए वर्किंग केपिटल पर ब्याज में छूट

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लॉकडाउन के कारण डेयरी क्षेत्र के लिए वर्किंग केपिटल पर ब्याज में छूट

नई दिल्ली। डेयरी क्षेत्र पर कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों की भरपाई करने के लिए मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने एक नई योजना “डेयरी क्षेत्र के लिए वर्किंग केपिटल ऋण पर ब्याज में छूट” की शुरुआत की है। योजना के तहत 2020-21 के दौरान डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एसडीसी और एफपीओ) को सहायता प्रदान की जायेगी।

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान बड़ी मात्रा में दूध की खरीद और बिक्री में कमी होने के कारण, दूध / डेयरी सहकारी समितियों ने बड़े पैमाने पर अधिक समय तक उपयोग के लायक (शेल्फ-लाइफ) उत्पादों जैसे दूध पाउडर, सफेद मक्खन, घी, और यूएचटी दूध आदि के उत्पादन को अपनाया। इन उत्पादों को अपनाने के कारण धन के प्रवाह में कमी आयी और किसानों को भुगतान करने में कठिनाई हुई। आइसक्रीम, फ्लेवर दूध, घी, पनीर आदि जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों की मांग में कमी के कारण दूध की छोटी मात्रा को ही मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे पनीर और दही में परिवर्तित किया जा रहा है। इससे बिक्री कारोबार और भुगतान प्राप्ति प्रभावित हो रही है। इसका परिणाम यह होगा कि सहकारी समितियों की मौजूदा स्तर पर दूध की खरीद करने की क्षमता कम हो जाएगी या वे खरीद मूल्य को कम करने के लिए मजबूर हो जाएंगे, जिसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा।

सहकारी और किसान स्वामित्व वाली दुग्ध उत्पादक कंपनियों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरा करने के लिए, 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 के बीच कमर्शियल बैंकों / आरआरबी / सहकारी बैंकों / वित्तीय संस्थानों से लिए गए कार्यशील पूंजी ऋण पर ब्याज में छूट दी जायेगी। सहकारी समितियों / एफपीओ को संरक्षित वस्तुओं और अन्य दुग्ध उत्पादों में दूध के रूपांतरण के लिए यह सुविधा दी जायेगी।

इस योजना में 2 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज में छूट देने का प्रावधान किया गया है। यदि शीघ्र और समय पर पुनर्भुगतान / ब्याज की अदायगी की जाती है तो ऐसे मामले में ब्याज में 2 प्रतिशत प्रति वर्ष के अतिरिक्त छूट का भी प्रावधान है।। इस योजना को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी), आनंद के माध्यम से इस विभाग द्वारा लागू किया जाएगा।

संशोधित योजना में 2020-21 के दौरान “डेयरी क्षेत्र के लिए कार्यशील पूंजी ऋण पर ब्याज में छूट” घटक के लिए 100 करोड़ रुपये के बजटीय प्रावधान की परिकल्पना की गयी है। इस योजना के निम्नलिखित लाभ हैं:

· इससे दूध उत्पादकों को स्थिर बाजार की सुविधा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
· उत्पादन स्वामित्व वाले संस्थान समय पर दूध उत्पादकों को बिल का भुगतान करने में सक्षम होंगे।
· इससे उचित मूल्य पर उपभोक्ताओं को गुणवत्ता वाले दूध और दूध उत्पादों की आपूर्ति करने में उत्पादक स्वामित्व वाले संस्थानों को मदद मिलेगी। यह संरक्षित डेयरी वस्तुओं और अन्य दूध उत्पादों के घरेलू बाजार के मूल्य को स्थिर करने में भी मदद करेगा।
· दुग्ध उत्पादकों के लिए डेयरी संचालन को लाभकारी बनाने के साथ-साथ फ्लश सीजन के दौरान भी किसानों की आय में निरंतर वृद्धि। इससे आयातित वस्तुओं पर निर्भरता में कमी आयेगी, जिससे दूध और दूध उत्पादों की घरेलू कीमतों को स्थिर करने में मदद मिलेगी।

कोविड-19 के कारण, बड़ी संख्या में छोटे निजी डेयरियों बंद हो गईं, जिसके परिणामस्वरूप सहकारी समितियों को अतिरिक्त दूध मिलने लगा। ये छोटी निजी डेयरियां मुख्य रूप से मिठाई की दुकानों और कस्बों में स्थानीय सप्लाई के लिए काम कर रही थीं। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण, निजी और सहकारी समितियों के होटल और रेस्तरां को की जाने वाली सप्लाई प्रभावित हुई है। हालाँकि सहकारी समितियों ने अपनी पहले से घोषित दरों पर ही खरीद जारी रखी है और कुछ सहकारी समितियों ने तो अपने खरीद मूल्य में वृद्धि भी की है। सहकारी समितियों द्वारा जनवरी 2020 में टोन्ड मिल्क (टीएम) और फुल क्रीम दूध (एफसीएम) की कीमत क्रमशः 42.56 रु./लीटर और 53.80 रु./लीटर थी और 08.04.2020 को यह क्रमशः 43.50 रु./लीटर और 54.93 रु./लीटर थी।

यद्यपि दूध की खरीद पर मौसम और घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय मांग का असर पड़ता है लेकिन घरेलू बाजार में दूध की बिक्री मोटे तौर पर स्थिर रही है। भारत में सहकारी समितियों द्वारा दूध की बिक्री फरवरी 2020 में 360 एलएलपीडी से घटकर 14 अप्रैल 2020 को 340 एलएलपीडी रह गई। इस प्रकार, दूध की खरीद में 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, लेकिन बिक्री में 6 प्रतिशत की कमी आई। खरीद और बिक्री के बीच का कुल अंतर लगभग 200 एलएलपीडी प्रति दिन है।

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