ब्रांडेड दालों एवं अनाजों पर जीएसटी को समाप्त करने की मांग
28 जनवरी 2022, नई दिल्ली । ब्रांडेड दालों एवं अनाजों पर जीएसटी को समाप्त करने की मांग – ब्रांडेड दालों एवं अनाजों पर लगे 5 प्रतिशत के वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से उद्योग-व्यापार क्षेत्र के साथ आम उपभोक्ताओं की कठिनाई भी काफी बढ़ गई है और अनेक व्यापारियों-उद्यमियों को ब्रांडेड बाजार से बाहर निकलने के लिए विवश होना पड़ रहा है। ध्यान देने की बात है कि इन जिंसों के गैर ब्रांडेड उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है जिससे ब्रांडेड उत्पादों के निर्माताओं- कारोबारियों को प्रतिस्पर्धा का समान धरातल नहीं मिल रहा है। जीएसटी के नाम पर रिटेलर्स उपभोक्ताओं से अधिक दाम वसूलते हैं जिसे उन्हें लगता है कि दालों का दाम ऊंचा हो गया है। अपने बजट पूर्व ज्ञापन में अनाज-दलहन व्यापारियों ने केन्द्रीय वित्त मंत्री से ब्रांडेड अनाजों एवं दालों पर से जीएसटी को वापस लेने की मांग की है। दालों के अतिरिक्त ब्रांडेड चावल तथा गेहूं आटा सहित अन्य अनाज उत्पादों पर भी 5 प्रतिशत का जीएसटी वसूला जाता है। लेकिन बिना ब्रांड वाले उत्पादों पर कोई जीएसटी नहीं लगता है। उल्लेखनीय है कि ब्रांडेड खाद्य उत्पादों पर जुलाई 2017 से ही जीएसटी लगा हुआ है।
उद्योग-व्यापार संगठन और गल्ला व्यापारी सरकार से लम्बे समय से इसे हटाने की जोरदार मांग कर रहे हैं लेकिन अब तक इसे स्वीकार नहीं किया गया। जीएसटी लागू होने के बाद से ब्रांडेड खाद्य उत्पादों का कारोबार लगातार सिमटता जा रहा है। दिन देने की बात है कि ब्रांड नाम जुड़ते ही उत्पाद की अच्छी क्वालिटी सुनिश्चित होती है और उपभोक्ताओं को उस पर पूरा भरोसा रहता है। बल्क या खुले रूप में कारोबार को सरकार भी हतोत्साहित करना चाहती है क्योंकि उसमें मिलावट की आशंका रहती है। लेकिन ब्रांडेड उत्पादों पर जीएसटी लागू होने तक इसके कारोबार में अपेक्षित बढ़ोत्तरी होना मुश्किल है। उद्योग-व्यापार क्षेत्र का कहना है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहली बार अनाज-दाल पर कोई टैक्स लगाया गया है। दैनिक उपयोग के इन आवश्यक उत्पादों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। जीएसटी लागू होने के बाद देश से ब्रांडेड दालों का निर्यात अवरुद्ध हो गया है। सरकार को तुरंत यह सब्सिडी दोबारा बहाल करनी चाहिए। ज्ञापन में कहा गया है कि दलहनों की आयात नीति पर बार-बार परिवर्तन किए जाने से बाजार में अनिश्चितता का माहौल रहता है। सरकार को कम से कम एक वर्ष के लिए स्थायी नीति बनानी चाहिए, भले ही इस पर न्यूनतम आयात शुल्क ही क्यों न लागू किया जाये।
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