दिल्ली प्रदूषण संकट: पंजाब के इस गांव ने दिखाया देश को बिना पराली आग लगाए खेती का रास्ता
27 नवंबर 2025, मोगा (पंजाब): दिल्ली प्रदूषण संकट: पंजाब के इस गांव ने दिखाया देश को बिना पराली आग लगाए खेती का रास्ता – दिल्ली इस समय गंभीर वायु प्रदूषण के दौर से गुजर रही है, जहां हवा की गुणवत्ता लगातार “सीवियर” श्रेणी में दर्ज की जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार उत्तरी भारत में पराली जलाने से उठने वाला धुआं राजधानी की हवा को और ज्यादा जहरीला बनाता है। इसी पृष्ठभूमि में पंजाब के मोगा जिले का रणसिंह कलां गांव एक सकारात्मक उदाहरण बनकर सामने आया है, जिसने छह वर्षों से पराली न जलाकर वैज्ञानिक प्रबंधन के जरिए खेतों की सफाई और अगली फसल की तैयारी का रास्ता दिखाया है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने गांव का दौरा कर किसानों और ग्रामीणों से संवाद किया और इसे पूरे देश के लिए प्रेरक मॉडल बताया।
पंजाब का मॉडल गांव, दिल्ली के प्रदूषण संकट में उम्मीद की किरण
श्री चौहान के अनुसार पराली जलाना सिर्फ एक कृषि समस्या नहीं बल्कि राष्ट्रीय पर्यावरणीय चुनौती बन चुकी है, जिससे न केवल खेतों के मित्र कीट नष्ट होते हैं बल्कि हवा में खतरनाक कण भी बढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि इस वर्ष पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी एक बदलाव का संकेत है, और रणसिंह कलां जैसे गांवों ने यह साबित किया है कि वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर बिना आग लगाए भी खेतों की तैयारी पूरी की जा सकती है। उन्होंने इस मॉडल को देशभर में साझा करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि किसानों को व्यवहारिक विकल्पों की जानकारी मिले और पर्यावरण-संवेदनशील खेती को बढ़ावा मिले।
गांव के किसान पिछले छह वर्षों से हैप्पी सीडर और डायरेक्ट सीडिंग जैसी तकनीकों का उपयोग कर फसल अवशेष को खेत में मिला रहे हैं। इससे मिट्टी का जैविक पदार्थ और कार्बन स्तर सुधर रहा है, नमी सुरक्षित हो रही है और रासायनिक उर्वरकों की खपत कम हो रही है। सरपंच प्रीत इंदरपाल सिंह और गांववासियों के सामूहिक प्रयासों को मंत्री ने विशेष रूप से सराहा और कहा कि यह गांव उन क्षेत्रों के लिए प्रेरक संदेश है जहां अभी भी पराली जलाना आम है।
मंत्री ने किसान गोपाल सिंह के खेत में जाकर सीधे बिजाई वाले गेहूं की फसल का निरीक्षण किया। उन्होंने किसानों को सरल भाषा में समझाया कि फसल की शुरुआती अवस्था में क्राउन रूट बनने तक अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, और यही कारण है कि खेत में एक माह बिना पलेवा के भी फसल स्वस्थ खड़ी है। इससे पानी और डीज़ल की महत्वपूर्ण बचत होती है। उन्होंने यह भी बताया कि पराली की मल्चिंग से खरपतवार दबते हैं, मिट्टी की नमी बनी रहती है और कीटनाशकों व उर्वरकों की जरूरत पहले की तुलना में कम पड़ती है, जबकि उत्पादन पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होता।
वैज्ञानिक तकनीकों से खेती में लागत घटी, मिट्टी की सेहत बेहतर हुई
श्री चौहान ने यह भी स्पष्ट किया कि पराली जलाने की बजाय खेत में मिलाने से प्राकृतिक मल्चिंग होती है, जिससे जमीन का तापमान नियंत्रित रहता है और खेती की लागत कम होती है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पैदावार अधिक स्थिर रहती है। उन्होंने कहा कि पंजाब का यह व्यावहारिक अनुभव बताता है कि पर्यावरण संरक्षण और किसानों की आय दोनों लक्ष्य एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं, यदि वैज्ञानिक पद्धतियों को सही तरीके से अपनाया जाए और पंचायत तथा समुदाय सक्रिय भूमिका निभाएं।
संवाद के दौरान मंत्री ने किसानों से मिले सुझावों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरसों जैसी तिलहन फसलों को अपनाना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत आज भी बड़ी मात्रा में खाद्य तेल आयात करता है। यदि किसान अपनी खेती में तिलहन का हिस्सा बढ़ाएं, तो इससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ेगी बल्कि देश की विदेशी मुद्रा की बचत भी होगी। उन्होंने ग्रामीणों की इस सोच को “देश सेवा” बताते हुए कहा कि पंजाब से शुरू हुई यह पहल तेलहन मिशन को नई गति दे सकती है।
तिलहन–दलहन पर जोर और किसानों के लिए सरकार की नई प्रतिबद्धताएँ
इसी दौरान उन्होंने एक महत्वपूर्ण घोषणा भी की कि तुअर, उड़द, मसूर और चना जैसे दलहन उत्पादों की पूरी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की जाएगी, बशर्ते किसान पंजीकरण करा लें। उन्होंने कहा कि किसान उचित दाम मिलने पर उत्पादन बढ़ाने के लिए हमेशा तैयार रहता है, और सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि बढ़ा हुआ उत्पादन किसानों के हाथों में सुरक्षित दाम पर पहुंचे। इससे देश की प्रोटीन सुरक्षा मजबूत होगी और दालों के बाजार में स्थिरता आएगी।
मंत्री ने रणसिंह कलां की पंचायत, किसानों और ग्रामीणों की सामुदायिक भागीदारी की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह गांव पराली प्रबंधन, फसल विविधिकरण, नशामुक्ति और पर्यावरण-अनुकूल खेती के क्षेत्र में नए मानक स्थापित कर चुका है। उन्होंने गांववासियों के आतिथ्य का उल्लेख करते हुए कहा कि यहां की देसी मक्के की रोटी केवल भोजन नहीं बल्कि पंजाब की आत्मीयता और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है।
अंत में श्री चौहान ने कहा कि वास्तविक विकास केवल फील्ड में जाकर, किसानों की समस्याएं समझकर और उनकी जरूरतों को पहचानकर ही संभव है। उन्होंने दोहराया कि पंजाब के किसानों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर केंद्र सरकार कृषि और ग्रामीण विकास की नीतियों को और अधिक परिणामोन्मुख, स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल और पर्यावरण-संवेदनशील बनाएगी, ताकि खेती लाभकारी हो और गांव मजबूत बनें।
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