फसल की खेती (Crop Cultivation)

बिना मिट्टी के खेती लगाएं स्ट्राबेरी

मिट्टी में फल-सब्जियों को उगते सभी ने देखा होगा। लेकिन बिना मिट्टी के भी फल-सब्जियां पैदा हो सकती हैं। तो सुन कर थोड़ा अटपटा लगेगा। लेकिन ऐसा संभव है-
अब वो समय आ गया है… जब वर्टिकल फार्मिंग दुनिया में छाने वाली है। आंधी तूफान आए… ओले पड़े… भारी बारिश हो जाए या फिर भीषण गर्मी हो… आप अपनी मनचाही सब्जी या फिर फलों की खेती कर सकेंगे अब मौसम कोई भी हो… आप हर तरह की फसल उगा पाएंगे। ये मुमकिन हुआ है… खेती की नई तकनीक के चलते जिसका नाम है हाइड्रोपोनिक कल्टीवेशन। इजराइल, जापान, चीन और अमेरिका आदि देशों के बाद अब भारत में भी यह तकनीक दस्तक दे चुकी है। इसकी सफलता को देखते हुए इंडोनेशिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, कोरिया जैसे देशों से इस तकनीक की मांग तेजी से बढ़ रही है। किसान  इस तकनीक से स्ट्राबेरी, खीरा, टमाटर, पालक, गोभी, शिमला मिर्च जैसी सब्जियां उगा सकते हैं।
इस तकनीक को स्वाईल लेस कल्टीवेशन याने बिना माटी के खेती कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे हाइड्रोपोनिक्स यानी जलकृषि नाम दिया है। इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है।  पौधों को  ंपाईप के माध्यम से उगाया जाता है पौधो की साईज एवं प्रजाति के अनुसार पाईप का चयन किया जाता है तथा एक निश्चित दुरी पर इनमें गोल छेंद बनाकर जाली नुमा कप में पौधो को रखा जाता है तथा सभी पाईप को एक दूसरे से नलियों के माध्यम से जोड़ा जाता है तथा इनमें पानी को बहाया जाता है।  परंतु सिर्फ पानी बहाने से पौधे नहीं उगते, बल्कि अन्य इंतजाम करने होते हैं। इसमें पौधों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों का घोल पानी में मिला दिया जाता है।
पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व की मात्रा अलग-अलग पौधों एवं उनके अवस्था के अनुसार निर्धारित की जाती है। इस विधि में पोषक तत्वों के घोल को लगातार बहाव द्वारा जड़ों तक पहुंचाया जाता है। आमतौर पर एक हफ्ते में घोल को बदल दिया जाता है अथवा जब घोल निर्धारित स्तर से कम हो जाता है तो पानी या पोषक तत्वों को मिलाया जाता है।
सब्जियों के लिए श्रेष्ठ
हाइड्रोपोनिक तकनीक की विशेषता यह है कि इसमें मिट्टी के बिना और पानी के कम इस्तेमाल से सब्जियां पैदा की जाती हैं। चूंकि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता, इसलिए पौधों के साथ न तो अनावश्यक खरपतवार उगते हैं और न इन पौधों पर कीड़े- मकोड़े लगने का डर रहता है। इसके लिए आपको खेत की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि अगर आप शहर में रह रहे हैं तो अपने मकान की छत पर भी सब्जियां उगा सकते हैं। इस तकनीक में क्यारी बनाने और पौधों में पानी देने की जरूरत नहीं होती, इसलिए परिश्रम और लागत कम है। हाइड्रोपोनिक तकनीक से लगातार पैदावार ली जा सकती है और किसी भी मौसम में सब्जियां पैदा की जा सकती हैं, साथ ही जल और एग्री इनपुट्स की बर्बादी भी कम होती है। यह तकनीक पत्ते वाली सब्जियों के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इस विधि में खेती के लिए आधुनिक उपकरणों की जरूरत ज्यादा नहीं होती, सभी काम प्रबंधकीय होते हैं जैसे पानी देना और खाद देना आदि। इस तकनीक से द्वीप, पहाड़ी क्षेत्रों और जहां मिट्टी नहीं है यानी अंतरिक्ष में भी कारगर है। अमेरिका में नासा भी हाइड्रोपोनिक्स पर शोध कर रहा है, उसकी योजना मंगल पर खेती की है। इस पर सूखा, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
इस तकनीक में पौधो को बोने के लिये ग्रोबेग का उपयोग किया जाता हैै। इसकी लम्बाई 3.50 फिट तथा चौडाई आधा फिट रखी जाती है। इन बैगों को जमीन से 2 से 2.50 फिट उंचाई पर एक के ऊपर एक रखा जाता है। इस तरह एक ग्रोबैग में 10 से 12 पौधे लगाये जाते हैं। जमीन से पौधे की उंचाई होने पर फलों को तोडऩे में सुविधा होती है। वर्तमान में हमारे यहां किसानों द्वारा खेतों में प्रति बीघा 10 से 12 हजार स्ट्राबेरी के पौधे लगाये जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग कर प्रति बीघा 30 से 70 हजार पौधे लगाये जा सकते हैं, तथा उत्पादन को कई गुना बढ़ाया जा सकता है।
कृषि की इस आधुनिक तकनीक को अपना कर खेतों के अलावा आप अपनी घर की छत पर, अपने रूम में या खाली पड़ी जगह का उपयोग कर वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से स्ट्राबेरी एवं सब्जियों की खेती कर सकते हैं। इस नई तकनीक का उपयोग श्री अरविन्द धाकड़ द्वारा ‘धाकड़ हाईटेक नर्सरी,   रियावन’ में किया जा रहा है। यहा पर हाईड्रोपोनिक स्ट्राबेरी, अंजीर, पाईनएपल, अंगूर , ड्रेग्रन फ्रूट आदि बागवानी फसलों की जानकारी के लिये प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेश से भी कई नये युवा एवं प्रोग्रेसिव किसान भ्रमण करने आते हैं।

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