राज्य सरकार कमर कसे
फसल उपार्जन
केन्द्र को कोसना छोड़ें
अगर मप्र राज्य पर मौसम की अनुकम्पा ऐसी ही बनी रही तो, निश्चित ही प्रदेश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होने वाला है। राज्य में अभी तक गेहूं की बोवनी 78.07 लाख हेक्टेयर में हुई है। जो कि गत वर्ष के 58.8 लाख हेक्टेयर के मुकाबले लगभग 19 लाख हेक्टेयर अधिक है।
चना का सर्वाधिक उत्पादन देने वाले मप्र राज्य में इस वर्ष 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चने की कम बुआई हुई है। जिसके बदले गेहूं को बोया गया है। सम्पूर्ण देश में इस वर्ष गेहूं के रकबे में लगभग 33 लाख हेक्टेयर का विस्तार हुआ है। आंकड़े इंगित करते है कि सरकारी समर्थन मूल्य खरीदी केन्द्रों पर इस वर्ष बेतहाशा भीड़ होने वाली है। खरीदी केन्द्रों पर होने वाली अव्यवस्थाओं को यदि उपार्जन के पूर्व दुरस्त नहीं किया गया तो, निश्चित ही तुलाई के दौरान कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होगी। इसलिये प्रदेश सरकार को अभी से सतर्क एवं पूर्णता तैयार होना होगा। प्रशासन को उपार्जन तैयारियों के लिये अभी से पाबंद करना होगा। प्रदेश में नई फसल आने के लिये अब मात्र देढ़ से दो माह की अवधि शेष है। लेकिन प्रशासन ने अभी तक उपार्जन हेतु किसानों के पंजीयन की शुरुआत नहीं की है। प्रदेश में प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी उपार्जन के लिये अलग-अलग पंजीयन कराये जाते हैं। जिसमें किसानों से खेत की बही, आधार कार्ड, समग्र आईडी सहित बैंक की किताबों के कागजात मांगे जाते हैं। किसान लम्बी—लम्बी लाइनों में लगकर इस प्रक्रिया को पूर्ण कराता है। जबकि इस प्रक्रिया में किसानों के आवश्यक डेटा का संग्रह करके इसे स्थायित्व दिया जा सकता है। जो कि किसान की स्थाई उपार्जन संख्या होगी।
सेन्ट्रल पूल में रुके 6 लाख टन गेहूं का मुद्दा बनाकर राज्य सरकार आखिर कब तक किसानों का बोनस देने के लिये केन्द्र सरकार का रोना रोती रहेगी। समर्थन मूल्य से खुले बाजार में गेहूं के भावों में अब तक लगभग 500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। लेकिन इस अनायास आई तेजी का फायदा लेने के बजाय, राज्य सरकार छ: लाख टन विवादित रखे गेहूं के लिये केन्द्र सरकार के आगे गिड़गिड़ा रही है। जबकि राज्य सरकार की समझदारी यह होनी चाहिए कि वह भावों के तेजी में इस गेहूं को खुले बाजार में बेचकर न केवल कर्ज—ब्याज—भाड़े से मुक्त होती, बल्कि किसानों का एक वर्ष पुराना बोनस का रुका पैसा देकर अन्नदाता के कोप से मुक्त होती। |
यदि शासन ऐसा कर पाया तो, इस कार्य में लगने वाली शासकीय मशीनरी के साथ किसानों को बार-बार की परेशानियों से बचाया जा सकेगा। उपार्जन हेतु आवश्यक किसान डेटा में सिर्फ फसल का प्रकार एवं उसकी मात्रा ही बदली जाने वाली अस्थाई संख्या में शामिल होती है। जिसकी पूर्ति पटवारी की रिपोर्ट से ही हुआ करती है। इसलिये राज्य सरकार को अब उपार्जन हेतु किसानों की स्थाई प्रोफाइल तैयार कर एक स्थाई किसान कोड उपलब्ध कराना चहिए। राज्य सरकार को उपार्जन व्यवस्था को सरल एवं सुरक्षित बनाने के लिये भंडारण की पुख्ता व्यवस्था करनी होगी। ताकि मौसम के बिगडऩे पर उपार्जित अनाज के साथ किसानों द्वारा केन्द्रों पर लायी गई फसल को पूर्ण सुरक्षा उपलब्ध कराई जा सके। लेकिन इसके पूर्व प्रदेश सरकार को समर्थन मूल्य पर गत वर्ष खरीदे गये 6 लाख मैट्रिक टन गेहूं जो केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय पूल में न लेने के कारण भंडारगृह में रखा खराब होने की स्थिति में है।
बाजार की तेजी के रुख को देख, खुले बाजार में विक्रय कर मुनाफा कमाने के साथ आने वाले भंडारण के लिये स्थान रिक्त करना चहिए। इस विक्रय से राज्य सरकार लगभग 1400 करोड़ की कर्ज से मुक्ति के साथ किसानों का 1200 करोड़ का रोका गया बोनस देने की स्थिति में होगी। गेहूं के बाजार में तेजी के चलते समय रहते राज्य सरकार को 6 लाख टन के पूल स्टाक साथ लगभग 50 लाख टन के स्थाई गेहूं एवं चावल के स्टॉक की बिकवाली कर आने वाली फसल के भंडारण के लिये स्थान सुरक्षित करना चाहिए। गत वर्ष प्रशासन द्वारा अनेक शासकीय खरीदी केन्द्रों को काली सूची में डालकर समाप्त किया गया था। जिसके कारण किसानों को अपनी फसल के विक्रय के लिये दूर दूर केन्द्रों पर भटकने को मजबूर होना पड़ा था। इसलिये सरकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि किसानों को विक्रय के लिये तीक्ष्ण गर्मी में भटकने एंव विक्रय केन्द्रों पर तुलाई के लिये कई रातों का इंतजार न करना पड़े। इसके अतिरिक्त शासकीय खरीदी केन्द्रों पर उपार्जन के तय मानक के परीक्षण के लिये मानव आधारित परीक्षण के बजाय हाइटेक तकनीक से जोडऩे की आवश्यकता है। मोबाइल एप्स के माध्यम से ऐसी तकनीक अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें किसान स्वयं ही विक्रय केन्द्र पर लाने से पूर्व अपनी फसल के मानक का परीक्षण कर सके।
मानक के अनुरुप न होने पर किसान स्वयं ही ऐसी फसल को विक्रय केन्द्र पर लाने से बचेगा। जिससे खरीदी केन्द्रों पर अनाश्यक भीड़ का दबाव कम होगा। किसानों को खरीदी केन्द्रों पर तय तारीख में पहुंचने का संदेश देने की प्रक्रिया में गत वर्ष अनेकों त्रृटियां रही हैं, जिसे भी दुरस्त करने की आवश्यकता है।