मोदी सरकार 3.0 के सौ दिन
खेती में नई पहल की आस
लेखक: शशिकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, मो.: 9893355391
04 अक्टूबर 2024, नई दिल्ली: मोदी सरकार 3.0 के सौ दिन – मोदी सरकार (मोदी 3.0) ने हाल ही में अपने नए कार्यकाल के 100 दिन पूरे कर लिए हैं। इन सौ दिनों में सरकार ने कई फैसले लिए हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख है पीएम-किसान योजना के तहत 20,000 करोड़ रुपये का वितरण। यह योजना 2019 में शुरू की गई थी, जिसमें अधिकांश पात्र किसान परिवारों को हर साल 6,000 रुपये देने का वचन दिया गया था। इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि मोदी 3.0 के तहत पीएम-किसान योजना के तहत सरकार किसानों के बैंक खातों में सीधे नकदी जमा करना जारी रखेगी।
8,000 रुपये प्रति किसान परिवार
हालांकि, उम्मीद की जा रही थी कि पिछले सालों में महँगाई और रूपये के कमज़ोर होने को ध्यान में रखते हुए इस राशि को बढ़ाकर कम से कम 8,000 रुपये प्रति किसान परिवार किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सन् 2024-25 के केंद्रीय बजट में भी जलवायु परिवर्तन के मुद्दों से निपटने के लिए खेती के क्षेत्र में शोध के लिए अधिक धन आवंटित करने की उम्मीद थी, लेकिन वहां भी आवंटन में बहुत अधिक वृद्धि नहीं की गई।
17 फ़ीसदी किसान किराये की खेती करते हैं
खेती में डिजिटल तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने के उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। इस योजना में किसानों की पहचान पहला कदम है। खेत के मालिक और खेत को किराये पर लेने वालों के बीच अंतर करना अगला कदम हो सकता है। भारत में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक लगभग 17 फ़ीसदी काश्तकार किराये की खेती करते हैं। हालांकि यह माइक्रो-सर्वेक्षणों से पता चलने वाले आंकड़ों से काफी कम है जिनके मुताबिक देश में 25-30 फ़ीसदी के आसपास खेती किराये के खेतों पर होती है। मौखिक समझौतों के तहत किराये की खेती में समस्या यह है कि कम ब्याज दरों वाले वित्तीय संस्थान के कर्ज जो कम से कम 4 फ़ीसदी पर मुहैया करवाए जाते हैं उन तक किसानों की बहुत सीमित पहुंच है क्योंकि सरकार खेत के मालिक तक ही ये लाभ मुहैया करवा सकती है।
कृषि को लाभ का धंधा नहीं बना सकते
ऐसे में किराये से खेत लेकर महँगी ब्याज दरों पर आनन-फानन में कर्ज लेकर किसान कभी भी कृषि को लाभ का धंधा नहीं बना सकते। उन्हें पीएम-किसान के तहत मिलने वाले लाभ भी नहीं मिलते। वास्तविक किसान कौन है, इसकी उचित पहचान की समस्या को जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए और उन्हें कम ब्याज दरों पर संस्थागत ऋण उपलब्ध कराना आवश्यक है।
डिजिटल तकनीक
लेकिन खेती में डिजिटल तकनीक के जरिये किसानों की पहचान करने से कहीं आगे जाना होगा। सरकार के पास जब तक किसानों और उनकी खेती से जुड़े सारे आँकड़े नहीं होंगे मसलन कि वे कौन सी फसल उगा रहे हैं, उनका बीमा है या नहीं, वे कितनी खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं, डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। इसके अलावा सरकार को राज्यों के साथ मिलकर सभी डाटा को खेती के लिए नीति और योजनाएं बनाने के लिए इस्तेमाल में लाना पड़ेगा। तरह-तरह के डाटा सेट का इस्तेमाल किसानों के लिए मिट्टी के स्वास्थ्य और फिर उसी अनुसार उर्वरक के उपयोग, उर्वरकों का मुहैया किया जाना, खाद्य सब्सिडी में ज़रूरत के मुताबिक बदलाव करने के लिए हो सकेगा। इससे सरकार को बहुत से गैर ज़रूरी संसाधनों में कटौती करके भारी बचत तो होगी ही किसानों के लिए काम जल्दी और बेहतर दक्षता के साथ हो सकेगा।
दो करोड़ अतिरिक्त घर बनाने की घोषणा
इसी तरह मोदी सरकार ने हाल ही में दो करोड़ अतिरिक्त घर बनाने की घोषणा की है जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि गाँवों में रहने वाले बढ़ई, मिस्त्री वगैरह को रोजगार मिलेगा और गरीब किसानों को नए और अच्छे आवास के साथ-साथ बेहतर साफ़ परिवेश मिलेगा। इसी तरह में नई सरकार ने 75,000 करोड़ रुपये निवेश करने की अपनी मंशा की घोषणा की है। कुछ शोधों से पता चल है कि सरकार यदि गाँवों की सड़कों में धन लगाएगी तो इससे न केवल देश में गरीबी काम होगी बल्कि खेती के जरिये देश के सकल घरेलू उत्पाद में इजाफा होगा।
सात योजनाओं को मंजूरी
पिछले दिनों में सरकार ने खेती के लिए सात योजनाओं को मंजूरी दी है, जिनमें; खेती का डिजिटलीकरण: भूमि रिकॉर्ड, किसानों के पहचान पत्र आदि, जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में खाद्य और पोषण सुरक्षा, बागवानी में पोषण और लाभ देने के लिए, पशुधन स्वास्थ्य और उत्पादन में स्थिरता और लाभ के लिए, बदलती जलवायु और स्वच्छ पर्यावरण के लिए, कृषि शिक्षा में कुशल मानव संसाधनों के लिए और किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र के जरिये बेहतर सेवाएं देना शामिल है।
14,000 करोड़ रुपये आवंटित
इन योजनाओं को अगले दो या तीन वर्षों में लागू करने के लिए लगभग 14,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। ये सभी कदम खेती में बदलते माहौल के मद्देनजऱ सही दिशा में हैं और अगर इन्हें सही तरीके से और जल्दी से लागू किया जाए तो ये आर्थिक और राजनीतिक रूप से बहुत फायदेमंद हो सकते हैं।
इन कोशिशों से खेती में सुधार की उम्मीद की जा सकती है, बशर्ते इन्हें सही तरीके से और समय पर लागू किया जाए।
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