National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

बुआई में कमी की सम्भावना

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प्रदेश में वर्तमान में जो सर्दी पड़ रही है, जनवरी माह में वो भी अपना भीषण रंग दिखाने वाली है। दिसंबर में अगहन/मार्गशीर्ष का माह है व जनवरी में पौष माह हिंदी कैलेंडर के अनुसार होगा जो कंपकंपा देने वाली सर्दी के लिये जाना जाता है।
यद्यपि गेहूं की बोआई जनवरी के पहले सप्ताह तक चलती है परंतु जलस्त्रोत सूखे होने, कम वर्षा के कारण कुएं, नलकूप में पानी कम होने से इसका बोआई रकबा बढऩे की संभावना कम ही है। मध्य अगस्त माह से ही वर्षा गायब होने के कारण नलकूप दम तोड़ रहे हैं। पूरा रबी का परिदृश्य शीतकालीन वर्षा के अभाव में निराशाजनक ही है।
सूखा राहत राशि बांटकर किसानों को दिलासा देने के लिये प्रदेश सरकार प्रयत्नशील है लेकिन केंद्रीय सहायता के अभाव में उसके प्रयत्न भी आधे-अधूरे व किसानों को भ्रमित करने वाले हैं। वर्ष 2015-16 के लिये सिंचाई पम्पों के लिये बिजली बिल की वसूली स्थगित की गई है जिसे अप्रैल 2016 में वसूलने का इंतजाम शासन की ओर से है, पानी के अभाव में जब खरीफ फसल बिगड़ चुकी है, रबी फसलें भी कम ही उतरेंगी। तब किसान लिया हुआ ऋण , बिजली के बिल कहां से चुकाएगा, यह यक्ष प्रश्न मुंह बाये खड़ा है।
मौसम की मार और कर्ज के दलदल में फंसा हताश किसान विवशता में आत्महत्या करने पर उतारू है तो दूरदर्शी नियोजन के अभाव में प्रदेश सरकार से इन विपरीत परिस्थितियों से उबरने की कोई आस बंधती भी नहीं दिखाई दे रही। प्रदेश के राजनेता केवल छाती ठोंककर, शब्दजाल से भ्रमित कर अपने जिंदा होने का अहसास जता कर किसानों को छल रहे हैं वहीं प्रशासनिक अफसर अपनी आधी-अधूरी विशेषज्ञता के साथ प्रदेश के कृषि, राजस्व, पंचायत, विभाग के मैदानी कार्यकर्ताओं को ही निकम्मा कामचोर ठहराने में ही अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की इतिश्री समझने में संलग्न हैं। यदि मैदानी विभागीय कर्मचारी कामचोर हैं तो इसके जिम्मेदार वे कर्मचारी नहीं वरन् प्रशासनिक अधिकारी ही है जिनकी पर्यवेक्षण, नियंत्रण, नियोजन की प्रशासनिक अक्षमता के कारण ही ऐसी अभूतपूर्व स्थिति उत्पन्न हुई है।
व्यर्थ की बयानबाजी करना, उपदेश देना आसान है,ई गवर्नेंस की सहायता से आंकड़ों की बाजीगरी कर बार-बार कृषि कर्मण आवार्ड जुटा लेनाभी आसान है लेकिन खेती का कार्य हवाई बातों से, ई गवर्नेस से नहीं होता, बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता। खेती की कार्यविधि सुधारना है तो प्रत्यक्षत: खेतों तक जाना ही पड़ेगा तभी खेती की दशा और दिशा सुधारने में कामयाब हो सकते हैं। सभी संबंधित विभागों के कर्णधार ऐसे प्रशासनिक अधिकारी हैं जिनका इन तकनीकी विषयों पर सीमित ज्ञान है आवश्यकता है विशेषज्ञ अधिकारियों की।
वर्तमान प्रजातांत्रिक व्यवस्था में मैदानी स्तर पर कार्यरत कर्मचारियों के निकम्मेपन की दुहाई देते रहने पर उनमें असंतोष भड़कना स्वाभाविक है। और उनके द्वारा हड़ताल प्रदर्शन किये जाने पर कुल जमा किसानों को ही व्यवस्था के अभाव में नुकसान सहना होगा हाल ही में हुई पटवारियों की हड़ताल से राहत राशि के भुगतान में देरी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
एक-दूसरे पर दोषारोपण करने अथवा मौसम को जिम्मेदार ठहराने से समस्या का हल नहीं होने वाला है। अभी आने वाली ग्रीष्म ऋतु में प्रदेश में चारे व पेयजल की समस्या का समाधान ढूंढना होगा इसके साथ ही गांव-गांव, खेत-खेत जलग्रहण संरचनायें निर्मित करना होंगी। खेत का पानी खेत में गांव का पानी गांव में रोकने का प्रबंध करना होगा। भूजल के अनियंत्रित दोहन पर प्रतिबंध लगाने के उपाय करने होंगे, राजस्व प्रशासन में कसावट लाकर चरोखर भूमियों को अतिक्रमण से मुक्त कर संरक्षित करना होगा। सिंचाई की नई तकनीक अपनानी होगी। तभी भविष्य में आने वाली सूखे की आपदा से डट कर मुकाबला किया जा सकेगा लेकिनक्षुद्र स्वार्थी में उलझे नेता और प्रशासन क्या इस ओर ध्यान देकर कुछ ठोस उपाय कर पाने में सक्षम होगा?

चारा अभाव के समय पशुओं का आहार

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