‘विश्व पोषण दिवस’ (28 मई) पर – एसएमएल लिमिटेड व इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा सेमिनार का आयोजन
28 मई 2024, नई दिल्ली: ‘विश्व पोषण दिवस’ (28 मई) पर – एसएमएल लिमिटेड व इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा सेमिनार का आयोजन – आज दुनिया में 2 अरब से अधिक लोग महत्वपूर्ण विटामिन और पोषक तत्वों (विशेषकर विटामिन ए, आयरन और जिंक) की कमी से पीड़ित हैं। वर्तमान में भारत में 80% से अधिक लोग जिंक, आयरन, फोलिक एसिड,विटामिन बी12, विटामिन ए, और विटामिन डी जैसे पोषक तत्वों में से किसी एक की कमी का सामना जरूर कर रहे हैं।पोषक तत्वों की कमी के कारण भारत को खराब स्वास्थ्य और उत्पादकता में कमी के रूप में, प्रति वर्ष 28 हज़ार करोड़ रुपये की जीडीपी का नुकसान हो रहा है। देश के 10 या अधिक राज्यों में पांच साल से कम उम्र के लगभग 50% बच्चे कुपोषण, कम वजन, और कमजोर मस्तिष्क का सामना कर रहे हैं, जो उनके आहार में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी के कारण है। भारतीय आहार विशेषज्ञ संघ का दावा है कि भारतीय आबादी के 84% आहार में पर्याप्त प्रोटीन की कमी है। देश की आधे से अधिक महिलाएं और 3/4 से अधिक बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं, जो उनकी दैनिक कार्यक्षमता और उत्पादकता को प्रभावित करता है।
खाद्य पदार्थों में घटते पोषक तत्वों की समस्या पर चिंतन करने व समाधान निकालने के लिए, एसएमएल लिमिटेड (पहले जिसे सल्फर मिल्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता था) व इंडिया टुडे ग्रुप ने “विश्व पोषण दिवस” (28 मई) पर दिल्ली में एक सेमिनार का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने विभिन्न क्षेत्र से पधारे लगभग 150 किसानों के समक्ष चर्चा की, जिनमें डॉ. सौमित्र दास (एशिया पेसिफिक, इंटरनेशनल जिंक एसोसिएशन), डॉ. रविंद्र गिरी (सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर, बायो फोर्टिफाइड क्रॉप्स, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट) और सुश्री कोमल शाह बुखनवाला (निदेशक, आईपी एवं आर एंड डी, एस एम एल लिमिटेड) शामिलथे। डॉ. रविंद्र गिरि ने बताया कि गहन फसल प्रणालियों के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों का असंतुलन हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता में कमी आई है। इस असंतुलन का सीधा प्रभाव उत्पादित खाद्य की पोषण गुणवत्ता पर पड़ता है और अंततः हमारे स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है। उन्होंने जोर दिया कि बायो फोर्टिफाइड फसलें इन चुनौतियों का प्रमुख समाधान हैं, क्योंकि वे मानव शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने बताया कि मिट्टी में संतुलित पोषक तत्वों का उपयोग, प्राकृतिक बायोफोर्टिफिकेशन प्राप्त करने का एक सरल तरीका है, जो किसानों को फसल का अधिक उत्पादन तथा उत्पाद में पोषक तत्वों की वृद्धि करने में मदद करता है।
डॉ. सौमित्र दास ने वर्षों से खाद्य पदार्थों में घटते पोषक तत्वों की चिंताजनक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला, जिससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ी हैं। डॉ. सौमित्र दास ने आगे बताया कि आईसीएआर की एक रिपोर्ट के अनुसार, हमारी मिट्टी में आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक (Zn), बोरॉन (B), लोहा (Fe), और मैग्नीशियम (Mg) की कमी है। विशेष रूप से, 37-40% मिट्टी में जिंक की कमी पाई जाती है। यह कमी एक वैश्विक समस्या को दर्शाती है, जहां लगभग 2 अरब लोग जिंक की कमी से पीड़ित हैं। डॉ. दास ने बताया कि वर्तमान उर्वरक नीतियां, जो यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरकों को सब्सिडी देती हैं, मृदा में पोषक तत्वों के असंतुलन का प्रमुख कारण हैं,क्योंकि किसान इन उर्वरकों का अधिक उपयोग कर रहे हैं।
एस एम एल लिमिटेड से, सुश्री कोमल शाह ने बताया कि आज हम कृषि क्षेत्र में अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, हमारे भोजन में पोषक तत्वों की कमी तथा मृदा स्वास्थ्य जैसी कई प्रमुख चुनौतियाँ हमारे सामने खड़ी हैं। सब्जियों, फलों व अन्य खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व भूमि से ही आते हैं।भूमि में पोषण तत्वों का असंतुलन, खाद्य पदार्थों में पोषण तत्वों की कमी का प्रमुख कारण है। आपने कहा कि किसी भी फसल की अधिक व गुणवत्तापूर्ण उपज के लिए, मृदा में 17 तत्वों का संतुलित मात्रा में होना अतिआवश्यक है, जिनमें नाइट्रोजन, फोस्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक आदि प्रमुख तत्व हैं। जानकारी के अभाव के कारण, हमारे किसान, वर्षों से रासायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया, डीएपी आदि का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं, जिसके कारण भूमि में पोषण तत्वों असंतुलन व मृदा का पीएच मान बढ़ रहा है। मृदा के अधिक पीएच मान के कारण मृदा का स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा भूमि ऊसर (बंजर) हो जाती है। मृदा के अधिक पीच मान के कारण ही हमारी फसल, आवश्यक पोषण तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाती, जिसके कारण पैदावार व गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि हमारे स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य से है। मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्व ही फल, सब्जी व अन्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचते हैं, और हमें स्वस्थ बनाए रखते हैं। भूमि के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए, मिट्टी की जांच के बाद ही, हमें अनुशंसित पोषक तत्वों की मात्रा के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। प्रमुख पोषक तत्वों नाइट्रोजन, फोस्फोरस व पोटाश को प्रदान करने वाले उर्वरकों (यूरिया व डीएपी व एमओपी आदि) के संतुलित उपयोग के साथ-साथ हमें अन्य पोषक तत्वों जैसे सल्फर, जिंक, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम की उपलब्धता भी सुनिश्चित करनी चाहिए।
एसएमएल लिमिटेड के आकृषि एवं मृदा विशेषज्ञ श्री विवेक रस्तोगी ने किसानों को बताया कि सल्फर को चौथा प्रमुख तत्व माना गया है, जो मिट्टी की क्षारकता को कम कर मिट्टी के पीएच मान को संतुलित रखता है, जिसके कारण मिट्टी में उपस्थित अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण फसल द्वारा आसानी से कर लिया जाता है। मृदा में सल्फर की पूर्ति के लिए, फर्टिस व कोसामिल गोल्ड एक सल्फर युक्त अति उत्तम खाद है। जिनमे 90% सल्फर डब्ल्यूडीजी फार्मूलेशन के रूप में उपस्थित है। फर्टिस या कोसामिल गोल्ड को फसल अनुसार, अनुशंसित मात्रा में प्रयोग कर मिट्टी के स्वास्थ को सुधारा जा सकता है तथा फसल में अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण भी बढ़ाया जा सकता है। श्री रस्तोगी ने आगे बताया कि जिंक भी अति महत्वपूर्ण पोषक तत्व है, जो हमारे शरीर व फसलों में, रोगों से लड़ने के लिये प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है। मिट्टी में जिंक की पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट या जिंक ऑक्साइड की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है। चूंकि जिंक सल्फेट फॉसफेटिक उर्वरक (डीएपी, एस एस पी,एन पी के आदि ) के साथ प्रतिक्रिया कर फोस्फोरस की उपलब्धता को कम कर देता है ,अतः जिंक ऑक्साइड ही जिंक की पूर्ति का उपयुक्त विकल्प माना गया है। टेक्नो-Z व “ज़िंदा”नामक उत्पाद मे 14% जिंक ऑक्साइड व 67% सल्फर डब्ल्यूडीजी फार्मूलेशन के रूप में उपलब्ध होता है, जो ओआरटी तकनीक पर आधारित होने के कारण फसल की विभिन्न महत्वपूर्ण अवस्थाओं पर जरूरत के अनुसार जिंक व सल्फर की पूर्ति करता है।अंत में श्री रस्तोगी ने किसानों से कहा कि “मृदा का संतुलित पोषण ही, पौष्टिक आहार का आधार है।”