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लुई ड्रेफस ने कपास किसानों की आय बढ़ाने में मदद की

  • (प्रेम प्रकाश सुल्लेरे)

18 दिसम्बर 2022, हैदराबाद ।  लुई ड्रेफस ने कपास किसानों की आय बढ़ाने में मदद की – लुई ड्रेफस कंपनी (एलडीसी) ने दुनिया भर में छोटे किसानों के कृषक समुदायों को सशक्त बनाने के  साथ ही स्थानीय कपास किसानों को प्रशिक्षित करने और किसानों का समर्थन करने के लिए पूरे भारत में ‘प्रोजेक्ट जागृति अभियान’ को लांच किया है।

गत दिनों लुई ड्रेफस कंपनी ने हैदराबाद तेलंगाना के ग्राम-धमेरा हनमाकोंडा जिले में प्रगतिशील कपास कृषकों को प्रशिक्षित करने के लिए एक कारगर मीट व फील्ड विजिट का आयोजन किया गया। जिसमें किसानों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इस मीटिंग में उपस्थित एलडीसी कंपनी के कॉटन प्लाटफार्म हेड श्री सुमित मित्तल,  सीनियर मैनेजर रिसर्च श्री गंगाधरा एस मौजूद थे।

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कंपनी द्वारा भारत में कपास की फसल को नुकसान करने वाले पिंक बॉलवर्म और व्हाइट फ्लाई जैसे कीटों को कम करने के लिए कंपनी ने 40 हजार फेरोमेन ट्रैप नि:शुल्क वितरित किये ताकि प्रभावी पिंक बॉलवर्म को कंट्रोल किया जा सके। तेलंगाना में किसान भाई 15 से 20 वर्षों से कपास की खेती कर रहे हैं और प्रति एकड़ 8 से 10 क्विंटल तक उपज ले रहे हैं। फेरोमेन ट्रैप न लगाने से 3 से 5 क्विंटल उपज में कमी देखी गई है वहीं 30-40 प्रतिशत तक किसानों को नुकसान हो रहा है।

परियोजना के बारे में

2022 में, लुई ड्रेफस कंपनी (एलडीसी) ने भारत में और दुनिया भर में- छोटे किसानों के कृषक समुदायों को सशक्त बनाने की उनकी प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में, अधिक टिकाऊ कृषि प्रथाओं को अपनाने में स्थानीय कपास किसानों को प्रशिक्षित करने और समर्थन करने के लिए भारत में ‘प्रोजेक्ट जागृति’ लॉन्च किया। लंबी अवधि के लिए उनकी आजीविका में सुधार। प्रोजेक्ट जागृति को 2021 के अंत में गुलाबी सुंडी ( पिंक बॉलवर्म) के प्रकोप के जवाब में शुरू किया गया था और इस कीट प्रबंधन के सीमित ज्ञान के कारण किसानों  को नुकसान हुआ।

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प्रोजेक्ट के अंतर्गत शैक्षिक कार्यशालाओं की एक श्रृंखला आयोजित की गई। कार्यशालाओं के दौरान, कीट प्रकोप के कारण उपज हानि को कम करने में मदद करने के लिए विशेषज्ञों से तकनीकी सलाह के साथ-साथ विशिष्ट तरीकों का प्रदर्शन किया गया, जिससे उत्पादन और आय में वृद्धि हुई। फेरोमोन ट्रैप जैसे उपायों का फील्ड प्रदर्शन भी आयोजित किया गया। परियोजना के माध्यम से, एलडीसी ने अब तक 2,500 से अधिक किसानों को वैज्ञानिक और तकनीकी कीट नियंत्रण विधियों में प्रशिक्षित किया है और उन्हें 15,000 से अधिक फेरोमोन ट्रैप से लैस किया है। सितंबर 2022 में, एलडीसी ने दक्षिणी और मध्य भारत में कार्यशालाओं की अपनी दूसरी श्रृंखला शुरू की, जिसका लक्ष्य भारत के कपास राज्यों में कुल मिलाकर 7,500 से अधिक किसानों तक पहुंचना और वर्ष के अंत तक 40,000 फेरोमेन ट्रैप वितरित करना है, ताकि प्रभावी पिंक बॉलवर्म प्रबंधन का समर्थन किया जा सके।

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प्रोजेक्ट जागृति अभियान भारत के किन राज्यों में चल  रहा है?

जागृति प्रोजेक्ट अब तक पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक इन राज्यों में सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है।

प्रोजेक्ट जागृति के तहत आप कपास की फसल में कितना क्षेत्र शामिल कर रहे हैं?

जागृति प्रोजेक्ट के तहत अब तक सीधे 7500 हेक्टर के आसपास क्षेत्र शामिल किया गया है। हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से इसका फायदा इससे जादा क्षेत्र में होगा।

आपके बताए तरीकों से खेती में कितना खर्चा आ रहा है और उपज कितनी बढ़ रही है ?

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इस तरीके से ट्रैप लगाने के लिये एक एकड़ में तकरीबन 600/- रूपये खर्चा लगता है। इससे एक से डेढ़ क्विंटल तक उपज बढ़ाई जा सकती है, जिसका बाजार भाव 8000-12000/- रुपये है।

महाराष्ट्र के वर्धा और लातूर जिले में इस संक्रमण के कारण पूर्व में किसान अधिक आत्महत्या कर चुके हैं, क्या इन जिलों में भी आपका प्रोजेक्ट चल रहा है?

इस वर्ष हमने वर्धा जिले से लगकर यवतमाल और नागपुर जिले में जागृति परियोजना शुरू की है। अगले साल हम वर्धा जिले में भी इसका विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। लातूर में कपास का रकबा कम होने के कारण वहां पर इसका विस्तार नहीं किया गया है।

पिंक बॉलवर्म के प्रबंधन के दौरान अपनाई जाने वाली वैज्ञानिक और तकनीकी पद्धति की व्याख्या करें?

गुलाबी सुंडी के प्रबंधन के लिए नीचे बताई हुई वैज्ञानिक और तकनीकी पद्धति अपनाई जानी चाहिये।

  1. बीटी कपास की लकडिय़ों से निकलने वाले गुलाबी सुंडी के पतंगों को रोकने के लिए अप्रैल महीने से भंडारित लकडिय़ों को पॉलीथिन सीट/मच्छरदानी ढकना चाहिए।
  2. गुलाबी सुंडी बीटी कपास के दो बीजों (बिनौले) को जोडक़र या ‘भंडारित लकडिय़ों’ में निवास करती हैं, इसलिए लकड़ी व बिनौलों का भण्डारण सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
  3. फसल की शुरुआती अवस्था में गुलाबी सुंडी से प्रभावित नीचे गिरे रोजेटी फूल, डोंडे व टिंडों आदि को एकत्रित कर नष्ट करना चाहिए।
  4. अंतिम चुगाई के बाद खेत में बचे अधखुले व खराब टिंडों को नष्ट करने के लिए खेत में भेड़, बकरी आदि जानवरों को चराना और बीटी कपास की लकडिय़ों को छाया व खेत में इक_ा ना करके लकडिय़ों को काट कर जमीन में मिला देना चाहिए।
  5. गुलाबी सुंडी से प्रभावित क्षेत्रों से नये क्षेत्र में बीटी कपास की छट्टियों/लकडिय़ों को नहीं ले जाना चाहिए।
  6. कपास की फसल 60 दिन की होने तक नीम का तेल (5 मिली)+ एनएसकेई 5 प्रतिशत (50 मिली)+ कपड़े धोने का पाउडर (1 ग्राम) प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडक़ाव करें या नीम आधारित कीटनाशक 5 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिडक़ाव करें।
  7. कपास की फसल 61-120 दिन की होने पर प्रोफेनोफास 50 ईसी 500-800 मिली या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी 100 ग्राम या क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 500 मिली या क्विनालफॉस 20 एएफ 500-900 मिली या थायोडीकार्ब 75 डब्लयूपी 225-400 ग्राम या इंडोक्साकार्ब 14.5 ईसी 200 मिली को 150-200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिडक़ाव करें।
  8. कपास की फसल 121-150 दिन की होने पर इथियान 20 ईसी 800 मिली या फैनवेलरेट 20 ईसी 100-200 मिली या साइप्रमेथ्रिन 10 ईसी 200-250 मिली या साइप्रमेथ्रिन 25 ईसी 80-100 मिली या लेम्डा सायहेलोथ्रिन 5 ईसी 200 मिली या डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी 100-200 मिली या अल्फामेथ्रिन 10 ईसी 100-125 मिली या  फेनप्रोपेथ्रिन 10 ईसी 300 मिली  को 175-200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़  छिडक़ाव करें।

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