धान में खरपतवार मिटायें उपज बढ़ाएं
नियंत्रण के उपाय
शुद्ध बीजों का प्रयोग- बुआई हेतु प्रमाणित एवं शुद्ध बीजों का प्रयोग किया जाना चाहिए। आजकल बोये जाने वाले अधिकांश बीज अशुद्धताओं से परिपूर्ण होते हैं तथा प्रतिवर्ष खरपतवारों के प्रसारण में योगदान देते हैं। प्राय: यह भी देखा गया है कि एक प्रजाति के बीज में धान की ही 2 या अधिक प्रजातियों के बीज मिश्रित हो जाते हैं जिससे फसल की बढ़वार एवं उपज असमान होती है एवं मूल्य कम प्राप्त होता है.अत: कृषकों को चाहिए कि जहां तक संभव हो प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें। यदि स्वयं का बीज तैयार करना हो तो खेत में खरपतवार, कीट एवं व्याधि नियंत्रण के साथ-साथ अन्य प्रजातियों के पौधों को भी निकाल देना चाहिए एवं उपयुक्त पोषक तत्व प्रयोग कर स्वस्थ दानों का चयन कर उचित भंडारण द्वारा अगले वर्ष बीज के रूप में प्रयोग करना चाहिए। स्वयं के बीज को हर 6-7 साल के बाद बदलकर नया बीज प्रयोग करना चाहिए।
कृषि क्रियाओं द्वारा नींदा नियंत्रण-
(अ) ग्रीष्मकालीन जुताई करना चाहिए जिससे नींदा के कुछ बीज तो निष्क्रिय हो जाते हैं तथा कुछ ऊपरी सतह पर आ जाते हैं। मई या जून माह की वर्षा उपरांत के बीज उग जाते हैं जिन्हें यांत्रिक विधि या शाकनाशी के प्रयोग द्वारा आसानी से नष्ट किया जा सकता है।
(ब) खरपतवारों के बीजों का फैलाव प्राय: सिंचाई की नालियों द्वारा होता है अत: सिंचाई की खुली नालियों के आसपास नींदा पनपने नहीं देना चाहिए एवं इन नालियों की नियमित सफाई करते रहना चाहिए। जहां तक संभव हो खेत से खेत विधि से सिंचाई नहीं करना चाहिए जिससे एक खेत से दूसरे खेत में इनका संक्रमण रोका जा सके।
(स) यदि धान के खेत में गोबर खाद या कम्पोष्ट प्रयोग की जा रही हो तो ध्यान रखना चाहिए कि यह अच्छी प्रकार हुई हो जिसमें खरपतवार के बीज नष्ट हो चुके हैं अन्यथा कम्पोष्ट या गोबर खाद स्वयं ही खरपतवारों के प्रमुख श्रोत हो जायेगे एवं फसल शीघ्र ही इनकी चपेट में आ जायेगी।
(द) फसल चक्र अपनाकर भी नींदा की समस्या को सीमित किया जा सकता है। इसके लिये आवश्यक है कि खरीफ के बाद रबी में पुन: धान न लेकर यदि दाल वाली फसल ली जायेगी तो नींदा की पहचान व नियंत्रण आसानी से हो सकेगा तथा उत्पादन भी अच्छा होगा एवं मिट्टी उपजाऊ भी बनी रहेगी।
(इ) खरपतवारों के नियंत्रण में उर्वरकों के समायोजन का भी अभिन्न योगदान होता है अत: उर्वरकों का प्रयोग करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिएकि इनकी उपलब्धता अधिक से अधिक फसल के पौधों को ही हो अत: नत्रजन की आरंभिक मात्रा बुआई के समय न देकर प्रथम निंदाई-गुड़ाई के पश्चात् दी जानी चाहिए। आजकल प्लेसमेंट विधि से उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है जिससे उक्त उर्वरकों का अन्यत्र उपयोग न किया जा सके एवं फसल के पौधे ही इसे अधिक से अधिक प्राप्त कर सकें।
रसायनिक नियंत्रण- रसायनिक नींदा नियंत्रण अपेक्षाकृत सस्ती एवं धान फसल के लिये एक प्रभावी विधि है बशर्ते रसायनों का इस्तेमाल सही समय, मात्रा एवं परिस्थिति में किया जाये। विभिन्न रसायनों के उपयोग एवं प्रभाव के आधार पर इन्हें दो समूहों में बांटा जा सकता है।
(अ) अंकुरण पूर्व खरपतवारनाशी (प्रिइमरजेंस)-
अंकुरण पश्चात् के खरपतवारनाशी (पोस्ट इमरजेंस)
सामान्यत: धान फसलों में प्रिइमरजेन्स खरपतवारनाशियों का प्रयोग किया जाता है जिससे खरपतवारों का नियंत्रण उनके उगने के पूर्व ही कर लिया जाये एवं फसल प्रारंभिक अवस्था से ही स्वस्थ हो परंतु प्रिइमरजेन्स नींदानाशियों के प्रयोग के पश्चात् भी पर्याप्त संख्या में खरपतवार धान के साथ उग जाते हैं इनमें अधिकांश चौड़ी पत्ती वाले होते हैं। इनके नियंत्रण हेतु 2,4 डी (सोडियम साल्ट) रोपाई के 20-25 दिन पश्चात् 0.75-1 लीटर प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जा सकता है। यदि खेत में घास कुल के खरपतवार अधिक हो तो स्टॉम्प-एफ 34 की लगभग 5 किलो प्रति हेक्टेयर मात्रा का प्रयोग किया जाना चाहिए। यदि दोनों प्रकार के खरपतवार खेत में हों तो 2,4-डी (सोडियम साल्ट) की 0.75 किलो मात्रा को स्टॉम्प-एफ 34 की 5 लीटर मात्रा में मिलाकर एक हेक्टेयर में प्रयोग किया जाना चाहिए। इन नींदा नाशियों के प्रयोग के पूर्व खेत से पानी निकाल देना चाहिए तथा पुन: 3-5 दिन पश्चात् पानी भरा जा सकता है।