Horticulture (उद्यानिकी)

अब आ गया है समय जायद में मूंग लेने का

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जलवायु
मूंग की खेती खरीफ एवं जायद दोनों मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। खेती हेतु समुचित जल निकास वाली दोमट तथा बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में मूंग की खेती में अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता होती है।
भूमि का चुनाव एवं तैयारी
मूंग की खेती सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जाती है। मध्यम दोमट, मटियार भूमि समुचित जल निकास वाली, जिसका पी.एच. मान 7-8 के बीच हो इसके लिये उत्तम है। भूमि में प्रचुर मात्रा में स्फुर का होना लाभप्रद होता है। दीमक से ग्रसित भूमि को फसल की सुरक्षा हेतु क्लोरोपायरीफास 4 प्रतिशत चूर्ण 8 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से अंतिम जुताई से पहले खेत में बिखेर दें और उसके बाद जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें।
खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले रिजऱ हल से करनी चाहिए. तत्पश्चात दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को अच्छी तरह भुरभरा बना लेना चहिये आखिरी जुताई में लेवेलर लगाना अति आवश्यक है, जिससे की खेत में नमी अधिक समय तक बनी रह सके। ट्रेक्टर, पावर टिलर, रोटावेटर जैसे आधुनिक यंत्रों से खेत की तैयारी शीघ्र की जा सकती है।
बीज की मात्रा एवं बीजोपचार
खरीफ मौसम में मूंग का बीज 6-8 किलोग्राम प्रति एकड़ लगता है। जायद में बीज की मात्रा 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ लेना चाहिये. 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम/2 ग्राम थायरम या 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज एवं भूमि जन्य बीमारियों से फसल की सुरक्षा होती है। इसके बाद बीज को जवाहर रायजोबियम कल्चर से उपचारित करें। 5 ग्राम रायजोबियम कल्चर प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें और छाया में सुखाकर शीघ्र ही बुवाई करना चाहिये। इसके उपचार से रायजोबियम की गाँठें ज्यादा बनती है, जिससे नत्रजन स्थरीकरण से बढ़ोतरी होती है तथा जमीन की उर्वरा शक्ति बनी रहती है.
बोनी का समय एवं विधि
जायद में 10 मार्च से 10 अप्रैल तक बुवाई करनी चाहिए। कुड़ से कुड़ 25 से 30 सेंटी मीटर रखनी चाहिए। बीज की बुवाई कुड़ में 4 से 5 सेंटी मीटर कुड़ में गहराई में करनी चाहिए, जिससे की गर्मी में जमाव अच्छा हो सके। जायद में या गर्मी की फसल में बुवाई के पश्चात लेवेलेर लगाना अति आवश्यक है। जिससे की नमी न उड़ सके।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा देने की विधि
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के बाद मिट्टी की जरुरत के अनुसार ही करना चाहिए। फिर भी 10 से 15 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश की जगह सल्फर प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए। इन सभी की पूर्ण मात्रा बुवाई के समय कूड़ों में बीज से 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए इससे अच्छी पैदावार मिलती है।
मूंग की प्रजातियाँ
मुख्य रूप से दो प्रकार की उन्नतशील प्रजातियाँ पाई जाती है। पहला खरीफ में उत्पादन हेतु टाइप 44, पन्त मूंग 1, पन्त मूंग 2, पन्त मूंग 3, नरेन्द्र मूंग 1, मालवीय ज्योति, मालवीय जनचेतना, मालवीय जनप्रिया, सम्राट, मालवीय जाग्रति, मेहा, आशा, मालवीय जनकल्यानी यह प्रजातियाँ खरीफ उत्पादन हेतु हैं. इसी प्रकार जायद में उत्पादन हेतु पन्त मूंग 2, नरेन्द्र मूंग 1, मालवीय जाग्रति, सम्राट मूंग, जनप्रिया, मेहा, मालवीय ज्योति प्रजातियाँ जायद के लिए उपयुक्त पाई जाती है। कुछ प्रजातियाँ ऐसी है जो खरीफ और जायद दोनों में उत्पादन देती है जैसे की पन्त मूंग 2, नरेन्द्र मूंग 1, मालवीय ज्योति, सम्राट, मेहा, मालवीय जाग्रति यह प्रजातियाँ दोनों मौसम में उगाई जा सकती है। मूंग की प्रजाति का चयन राज्य के हिसाब से किया जाना चाहिए। हम मध्य प्रदेश लिये उन्नत जातियों का चयन वहां की पैदावार के हिसाब से दे रहे हैं।
सिंचाई
प्राय: खरीफ में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। परंतु फूल  की स्थिति में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है। फलियाँ बनते समय भी सिचाई करने की आवश्यकता पड़ती है।  जायद की फसल में पहली सिचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिचाई करते रहना चाहिए जिससे अच्छी पैदावार मिल सके।
निंदाई व गुड़ाई
पहली सिचाई के 30 से 35 दिन के बाद ओट आने पर निंदाई-गुड़ाई करना चाहिए, निंदाई-गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ साथ वायु का संचार होता है जो की मूल ग्रंथियों में क्रियाशील जीवाणु द्वारा वायुमंडलीय नत्रजन एकत्रित करने में सहायक होती है। खरपतवार का रसायनिक नियंत्रण जैसे की पेंडामिथालिन 30 ई सी की 3.3 लीटर अथवा एलाकोलोर 50 ई सी 3 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोलकर बुवाई 2 से 3 दिन के अन्दर जमाव से पहले प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए। इससे की खरपतवार का जमाव नहीं होता है।

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