अनार की खेती फायदे का सौदा
अनार की खेती फायदे का सौदा
अनार की खेती फायदे का सौदा – देश के हर किसान का सपना है कि वह कम समय औऱ कम पैसे में अधिक लाभ कमाए। इसके लिए उन्हें अपने क्षेत्र के अनुसार खेती करना चाहिए। अनार की खेती से लाखों तक की कमाई हो सकती है। खास बात यह है कि इसके लिए ज्यादा लागत लगाने की जरूरत नहीं है। बता दें कि अनार की खेती गर्म प्रदेशों में होती है। भारत में अनार की खेती अधिकतर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात में होती है। इसका पौधा 3 से 4 साल में पेड़ के रूप में विकसित हो जाता है और फल देना शुरू कर देता है। अनार के एक पेड़ से लगभग 25 सालों तक फल मिल सकता है।
राजस्थान में वर्तमान में अनार की खेती व्यापारिक तौर पर की जाने लगी है अनार की खेती मुख्यत: मारवाड़ में की जा रही है आज मारवाड़ का किसान अनार से लाखों की कमाई कर रहा है और नवाचार कर अपना जीवन स्तर में सुधार रहा है पहले पश्चिमी राजस्थान में अनार की खेती की बात ही मजाक लगती थी नहीं आज यह किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है ।
जलवायु और मृदा : अनार की खेती के लिए शुष्क और अद्र्ध शुष्क जलवायु अति उत्तम होती हैं फलों में विकास के लिए शुष्क जलवायु उत्तम रहती हैं। अनार के लिए गहरी बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है लवणीय और क्षारीय मृदा में भी अनार की खेती की जा सकती है।
किस्में : किसी भी खेती के लिए किस्म का चयन करना अति आवश्यक होता है जैसे कि हम बोयेंगे उसी के अनुरूप फल मिलेगा अर्थात् आमदनी होगी। शुष्क क्षेत्रों में मुख्यता भगवा या सिंदूरी किस्मों का प्रयोग किया जाता है और इनसे उत्पादन भी बहुत अच्छा होता है मृदुला भगवा या सिंदूरी किस्मों के फलों का रंग गहरा चमकीला लाल होने के कारण का बाजार भाव अच्छा मिलता है। इनके अलावा जालौर सीडलेस के दाने मीठे और मुलायम होते हैं और जी-137, पी-23 के फल बड़े और आकर्षक होते हैं ।
पौधे लगाने का समय और तरीका : अनार का बगीचा लगाने के लिए सर्वोत्तम समय जुलाई और अगस्त है। और अगर सिंचाई के पास पर्याप्त व्यवस्था हेतु फरवरी-मार्च में भी बगीचा लगाया जा सकता है । अनार का बगीचा लगाने से लगभग 1 महीने पूर्व में गड्ढे खोद लें। बगीचा लगाने के लिए 636 दूरी पर गड्डा खोदने चाहिए और अगर हम सघन बगीचा लगाना चाहते हैं तो यह दूरी 533 मीटर की होनी चाहिए जिसमें लगभग है 666 पौधे प्रति हेक्टेयर तक लग सकते हैं इन गड्ढो में 20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट और 50 ग्राम क्लोरोपायरीफास मिलाकर गड्डे को भर दें। फिर उसमें पानी भरें जिससे कि वह एकदम सेट हो जाए और उसके बाद उन गड्ढो में पौधे लगायें।
सिंचाई : वैसे अनार शुष्क जलवायु का पौधा है सिंचाई की कम ही आवश्यकता होती है गर्मियों में 5 से 7 दिन पर पौधों में पानी दें और सर्दियों में 10 से 12 दिन के अंतराल पर अनार के बगीचे में पानी दें। और बगीचे की सिंचाई बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से करें और क्योंकि इसमें 20 से 50 प्रतिशत पानी की बचत होती है और काफी हद तक फल फटने की समस्या से भी निजात मिलता है और उत्पादन में भी लगभग 30 से 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है क्योंकि बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से पानी एक निश्चित मात्रा में पौधों को मिलता रहता है और पौधों में दवाई देने के लिए भी वह सर्वोत्तम विधि है।
अनार में बहार नियंत्रण : अनार में 1 साल में 3 बहार आती है या ऐसे बोले कि एक साल में तीन बार फल आते हैं लेकिन किसानों को उच्च गुणवत्ता और अच्छी उपज के लिए एक ही बहार का चयन करें जो बाजार मांग के अनुसार हो जिससे भाव भी ठीक मिले। मृग बहार (जून-जुलाई), हस्त बहार (सितंबर अक्टूबर) और अंबे बहार (जनवरी-फरवरी) में फूल आते हैं। अवांछित बहार नियंत्रण के लिए फूल आने से पहले सिंचाई बंद कर देें। साथ ही रसायनों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
उपज : अनार के विकसित बगीचे से 1 हेक्टेयर से लगभग 90 से 120 क्विंटल बाजार भेजने योग्य फल प्राप्त होते हैं इस हिसाब से लगभग 1 हेक्टेयर से पांच से छह लाख की आमदनी होती है और अनार का पौधा 25 से 30 साल तक फल उत्पादन देता है ।
अनार उत्पादन को लेकर किसानों की समस्या : किसानों द्वारा अच्छा उत्पादन करने के बाद भी उनके चिंता की लकीरें रहती हंै क्योंकि किसानों को बाजार भाव ठीक नहीं मिल पाता इसका मुख्य कारण है कि स्थानीय स्तर पर इसकी बिक्री के लिए बाज़ार नहीं होना और जो व्यापारी किसानों से अनार खरीदते हैं उन्हें अच्छा भाव नहीं देते हैं जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है इस पर सरकार को ध्यान दें कि स्थानीय स्तर पर जहाँ अनार का अच्छा उत्पादन हो रहा है वहां पर अनार मंडी की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे सरकार को राजस्व मिलेगा और किसानों का अच्छा भाव।
अनार में प्रवर्धन
कलम द्वारा : एक पुरानी शाखा से एक कलम काटकर पौधशाला में आईबीए से उपचारित कर लगाते हैं जिससे की जड़े अधिक और शीघ्र निकलती है
गुटी द्वारा : यह एक व्यवसायिक प्रवर्धन विधि है इसमें 1 वर्ष पुरानी स्वस्थ शाखा को 45 से 60 सेंटीमीटर की लंबाई की शाखा का चयन करते हैं चुनी शाखा से कलिका के नीचे 3 सेंटीमीटर गोलाई में छाल पूर्ण रूप से अलग कर देते हैं वहां आईबीए लगाकर पॉलीथिन शीट सेट कर सुतली से बांध देते हैं जब जड़े दिखाई देने लगे उस शाखा को काटकर लगा दें।