उद्यानिकी (Horticulture)

सर्दियों में आए फूलों की भरपूर बहार, ध्यान रखें उनका आहार

फूलों की भरपूर उपज पाने के लिए संतुलित खाद व उर्वरक का उपयोग अति आवश्यक है। इसके उपयोग से खेत की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है तथा पौधों का विकास स्वस्थ एवं संतुलित होता है। संतुलित खाद का अर्थ है – किसी स्थान विशेष की मिट्टी, फसल और वातावरण के आधार पर मुख्य पोषक तत्वों जैसे नत्रजन, स्फुर व पोटाश की उचित मात्रा का सही अनुपात में सही समय पर दिया जाना, जिससे अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकें।
उर्वरक की उचित मात्रा का सही निर्धारण मिट्टी परीक्षण के आधार पर किया जाता है । इस लेख में फूलों में प्रदाय की जाने वाली खाद – उर्वरक की सामान्य अनुशंसित मात्रा की जानकारी दी जा रही है ।
एस्टर:
मध्यप्रदेश में विशेष कर इंदौर एवं भोपाल के आसपास  इसकी खेती का रूझान बढ़ रहा क्योंकि एस्टर के फूलों का स्थान बाजार मांग की दृष्टि से गुलदावदी एवं गेंदा के बाद प्रमुख है। एस्टर की खेती में कम लागत एवं अधिक उत्पादन क्षमता  के कारण इसकी खेती लाभदायक सिद्ध हो रही है।
खाद एवं उर्वरक-
चाइना एस्टर की खेती के लिए खाद एवं उर्वरकों का संतुलित उपयोग फूलों के अच्छे उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। नाइट्रोजन की कमी की अवस्था में पौधे बौने रह जाते हैं एवं फूलों का आकार भी छोटा रह जाता है जबकि स्फुर (फॉस्फोरस) की कमी होने पर फूल देर से खिलते हैं। अत: खेत की मिट्टी परिक्षण के बाद ही उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण करना चाहिए। सामान्य रूप में एस्टर की फूलों का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में मिलाए गए 10-15 टन गोबर की खाद के अतिरिक्त 200 कि.ग्राम. नाइट्रोजन, 150 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 200 कि.ग्राम. पोटेशियम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है नाईट्रोजन को दो बराबर भागों में बांट कर प्रथम खेत की तैयारी तथा दूसरा भाग रोपाई के 40 दिन बाद उपरी निवेशन (टाप ड्रेसिंग) के रूप में दी जानी चाहिये, अर्थात पौधों के पास उर्वरक को डालकर कर गुड़ाई कर दें अथवा मिट्टी चढ़ा दें।
गेंदा :
गेंदा की व्यवसायिक खेती वर्ष भर की जा सकती है एक वर्षीय फूलों में गेंदा का प्रमुख स्थान है इसके फूलों का उपयोग माला, झालर, पूजा गुलदस्ते, ग्रह सज्जा, शादी विवाह, धार्मिक कार्यो, त्यौहारों एवं स्वागत के लिये किया जाता है ैं। त्यौहारों एवं शादियों के समय इसके फूलों को बेचकर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। इसके फूलों से तेल भी प्राप्त किया जाता है।
खाद एवं उवर्रक –
सामान्य रूप में फूलों का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में मिलाए गए 10-15 टन गोबर की खाद के अतिरिक्त 100 कि.ग्राम. नाइट्रोजन, 80-100 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 80-100 कि.ग्राम. पोटेशियम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है गोबर कि खाद की सम्पूर्ण मात्रा खेत कि प्रथम जुताई के समय, फास्फोरस तथा पोटेशियम कि सम्पूर्ण मात्रा खेत कि अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिला देते हैं जबकि नत्रजन कि आधी मात्रा पौधों को क्यारियों में लगाने के 25.30 से दिन बाद तथा शेष मात्रा 50.60 दिन बाद देना चाहिए।
ग्लेडियोलस –
ग्लोडियोलस नाम लैटिन शब्द गलेडिअस से पड़ा है जिसका अर्थ, तलवार होता है, क्योंकि इसकी पत्तियों का स्वरूप तलवार की तरह होता है। इसका कन्दिय पुष्पों की रानी भी माना जाता है।
खाद और उर्वरक :
ग्लोडियोलस में खाद तथा उर्वरकों का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि मिट्टी में पोषक तत्वों के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने से फूलों की उपज तथा गुणवत्ता में कमी आ जाती है, साथ ही तैयार होने में समय भी अधिक लगता है। इसलिये प्रथम जुताई के समय 50 क्विंटल प्रति हेक्टर की दर से गोबर की पूर्ण रूप से सड़ी जुड़ी खाद डालकर खेत में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। गोबर को भली-भांति सड़ाने के बाद ही खेत में डालना चाहिये। 80 कि.ग्रा. नत्रजन और 60-80 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 70-100 किलो पोटेशियम उवरर्क को बुआई के समय  में डालकर कंदों की बुआई कर देनी चाहिए। बुआई के एक माह बाद 80 कि.ग्रा. नत्रजन की टॉप ड्रेसिंग करने से फूल जल्दी प्राप्त होने लगती है। हल्की सिंचाई के बाद यूरिया की टॉप ड्रेसिंग की जाये तो अधिक उत्तम रहता है। इस प्रकार खाद और उर्वरकों के प्रयोग से न केवल अच्छी गुणवत्ता के फूल मिलते हैं, बल्कि पौधों की जड़ों में बनाने वाले कंदों का आकार व संख्या भी बढ़ जाती है।
गुलदाउदी:
गुलदाउदी को सेवन्ती व चन्द्रमल्लिका के नाम से भी जाना जाता है। गुलदाउदी के फूलों की बनावट, आकार, प्रकार तथा रंग में इतनी अधिक विविधता है कि शायद ही किसी अन्य फूल में हो। इसके पुष्प में सुगंध नहीं होती तथा उसके फूलने का समय भी बहुत कम होता हैं। फिर भी लोकप्रियता में यह गुलाब के बाद दूसरे स्थान पर है। व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती मुख्य रूप से कटे (डंठल सहित) और लूज (बिना डंठल के) फूलों के उत्पादन के लिये की जाती है। कट फूल मेज की सजावट, गुलदस्ता बनाने, भीतरी सजावट के लिये तथा लूज फ्लावर माला, वेणी तथा गजरा बनाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं।
खाद एवं उर्वरक-
एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिये 20-25 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद, 100-150 कि.ग्रा. नत्रजन, 90-100 कि.ग्रा. स्फुर तथा 100-150 कि.ग्रा. पोटेशियम देना चाहिये। गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय भूमि में मिला देना चाहिये। नत्रजन की 2/3 मात्रा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा पौधा लगाते समय भूमि में मिला देते है। नत्रजन की शेष मात्रा पौध लगाने के 40 दिन बाद या जब कली निकलने लगे तब देना चाहियें।
रजनीगंधा :
रजनीगंधा बाजार में कटफ्लावर एवं लूस फ्लावर दोनों रूपों में बिकता है। इत्र उद्योग के लिए रा मटेरियल (कच्चा पदार्थ) के रूप में इस्तेमाल होता है। इसके फूल लम्बे समय तक ताजे बने रहते है तथा लम्बी दूरी तक बिना खराब हुए भेजा जा सकता है।
रजनीगंधा की फसल के लिए कितनी मात्रा में पोषक तत्व चाहिए इसका निर्धारण मृदा परीक्षण करवा कर ही तय करना चाहिए। रजनीगंधा को संतुलित मात्रा में ही पोषक तत्व देना चाहिए। किसी भी स्थिति में नाइट्रोजन अधिक मात्रा में नहीं डालना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक-
फास्फोरस की पूरी मात्रा की अन्तिम तैयारी के समय खेत में डालनी चाहिए। जबकि नाइट्रेाजन एवं पोटेेशियम को तीन भागों में बांट कर देना चाहिए। पहला कन्द रोपण के समय, दूसरा कन्द रोपण के 30 दिन बाद एवं, तीसरा कन्द रोपण के 90 दिन बाद। रेटून फसल ली जाती है तो उर्वरकों की तात्रा दूसरे वर्ष भी उपयोग करनी चाहिए।
गुलाब:
गुलाब की खेती काफी अधिक लाभदायक एवं सुगमता से की जा सकने वाली खेती है। गुलाब को कट-फ्लावर गुलाब-जल, गुलाब तेल, गुलकंद, इत्र माला, गुलदस्ता, मंदिर व अन्य धार्मिक कार्यो में उपयोग के लिए उगाया जाता है।
खाद एवं उर्वरक –
उत्तम कोटि के फूलों  की पैदावार लेने हेतु प्रूनिंग के बाद प्रति पौधा 10 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करनी चाहिए। खाद देने के एक सप्ताह बाद जब नई कोपल फूटने लगे तो 200 ग्राम नीम की खली 100 ग्राम हड्डी का चूरा तथा रसायनिक खाद का मिश्रण 50 ग्राम प्रति पौधा देना चाहिए, मिश्रण का अनुपात एक अनुपात दो अनुपात एक मतलब यूरिया, सुपर फास्फेट, पोटाश का होना चाहिए।

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