काली हल्दी : प्रकृति का एक दुर्लभ खजाना
- नीरज पाली, असिस्टेंट प्रोफेसर, इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइंस, सेज यूनिवर्सिटी, इंदौर
- दीपा तोमर, असिस्टेंट प्रोफेसर, इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइंस,
सेज यूनिवर्सिटी, इंदौर
28 जून 2021, भोपाल । काली हल्दी : प्रकृति का एक दुर्लभ खजाना – हल्दी (टर्मरिक) भारतीय वनस्पति है. यह अदरक की प्रजाति का 2-3 फुट तक बढऩे वाला पौधा है जिसमें जड़ की गांठों में हल्दी मिलती है. हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीनकाल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है. औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रिया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम आदि नाम दिए गए हैं. आयुर्वेद में हल्दी को एक महत्वपूर्ण औषधि कहा गया है. भारतीय रसोई में इसका महत्वपूर्ण स्थान है और धार्मिक रूप से इसको बहुत शुभ समझा जाता है.
हमने आमतौर पर पीले रंग की हल्दी देखी है और उपयोग में भी लेते हंै. परन्तु क्या आपने काली हल्दी के बारे में देखा है या सुना है? हल्दी के प्रजातियों में काली हल्दी बहुत ही दुर्लभ प्रजाति है. काली हल्दी, आम हल्दी की तुलना में काफी अलग दिखती है. सामान्यत: ‘काली हल्दी’ यह झिंगिबेरासी कुल की ही बारहमासी जड़ी बूटी है, जो काले-नीले प्रकंद के साथ पाई जाती है. यह किस्म धीरे-धीरे अपने बेजोड़ औषधीय गुणों के लिए लोकप्रियता बढ़ा रही है. काली हल्दी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होती है. काली हल्दी का उपयोग कैंसर जैसी दवाइयां बनाने के साथ अन्य दवाइयों में भी इसका प्रयोग होता है इसलिए देश और विदेश में यह बहुत अधिक दामों पर बिकती है. बड़े पैमाने पर इसकी खेती दवाई के लिए तथा सौंदर्य प्रसाधन के सामान बनाने के काम के लिए की जाती है. विदेशी व्यापार में काली हल्दी की मांग बहुत अधिक है. बहुत सी ऑनलाइन रिटेल कम्पनी भी इसे बेचती हैं परन्तु उनकी शुद्धता की जांच नहीं की जा सकती. शुद्ध काली हल्दी के बाजार में दाम बहुत अधिक है. यदि किसान भाई शुद्ध काली हल्दी की खेती करना चाहते है तो उक्त जानकारी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है. काली हल्दी का पौधा दिखने में केली के समान होता है, काली हल्दी या नरकचूर याक औषधीय महत्व का पौधा है. जो कि बंगाल में वृहद् रूप से उगाया जाता है.
वानस्पतिक नाम करकुमा केसिया व अंग्रेजी में ब्लैक जेडोरी भी कहते हैं. इसका पौधा तना रहित 30360 से.मी. ऊँचा होता है. पत्तियां चौड़ी गोलाकार ऊपरी स्थल पर नीला बैंगनी रंग की मध्य शिरा युक्त होती है. पुष्प गुलाबी किनारे की ओर रंग के शपत्र लिए होते हैं. राइजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते हैं. राइजोम का रंग कालिमा युक्त होता है जिस वजह से इससे काली हल्दी के नाम से पहचाना जाता है.
उपयुक्त जलवायु
इसकी खेती के लिए जलवायु उष्ण होना चाहिए. तापमान 15 से 40 डिग्री सेन्टीग्रेड होना चाहिए.
भूमि की तैयारी
दोमट, बलुई, मटियार प्रकार की भूमि में अच्छे से उगाई जा सकती है. वर्षा के पूर्व जून के प्रथम सप्ताह में 2-4 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें तथा जल निकासी की व्यवस्था कर लें. खेत में 20-25 टन प्रति हे. की दर से गोबर की खाद का इस्तेमाल करें.
बोने का समय व विधि
बोने के लिए पुराने राइजोम को जिन्हें ग्रीष्म काल में नमीयुक्त स्थान पर तल में दबा कर संग्रह किया गया है को उपयोग में लाते हैं. इन्हें नये अंकुरण आने पर छोट-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है. जिन्हें तैयार की गई भूमि में 30 से.मी. कतार से कतार 20 से.मी. पौधे से पौधे के अंतराल पर 5 से 10 से.मी. गहराई पर बोया जाता है. एक हेक्टेयर के लिए 15 से 20 क्विंटल काली हल्दी की बीज की जरुरत होती है. खरपतवार नियंत्रण के लिए 2 से 3 बार निंदाई हाथ से ही करनी होती है, जिससे पौधे को मिलने वाली पोषक तत्व की कोई कमी नहीं होती है.
सिंचाई
काली हल्दी को ज्यादा सिंचाई की जरुरत नहीं है. बरसात के मौसम की सिंचाई काफी है, लेकिन हल्दी की खेती लम्बी अवधि की होने के कारण बरसात बाद 2-3 सिंचाई की जरुरत पड़ती है. सिंचाई भूमि और जलवायु पर भी निर्भर होती है.
रोग व कीट
काली हल्दी पर किसी भी तरह का कोई रोग तथा कीट का प्रकोप नहीं होता है.
काली हल्दी की खुदाई कैसे करें
फसल 8 माह में तैयार होती है. प्रकन्दों को सावधानीपूर्वक बिना क्षति पहुंचाए खोद कर निकाल व साफ करके छायादर सूखे स्थान पर सुखायें. अच्छी किस्म के राइजोम को 2-4 सेमी के टुकड़ों में काटकर सुखा कर रखें.
उत्पादन
ताजे कंदों का उत्पादन 250 क्विंटल प्रति हे. तक होता है.जबकि उसे सुखाने के बाद 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होता है.