गेहूं की फसल को नष्ट कर सकते हैं ये 5 रोग, किसान समय रहते कर लें बचाव वरना होगा भारी नुकसान
14 नवंबर 2025, भोपाल: गेहूं की फसल को नष्ट कर सकते हैं ये 5 रोग, किसान समय रहते कर लें बचाव वरना होगा भारी नुकसान – भारत में गेहूं न केवल किसानों की आजीविका का प्रमुख साधन है, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा में भी इसकी अहम भूमिका है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में यह फसल बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। लेकिन गेहूं की खेती हमेशा आसान नहीं होती। कई रोग और कीट फसल को नुकसान पहुँचाकर किसानों की मेहनत पर पानी फेर सकते हैं। समय रहते इनके नियंत्रण न करने पर पैदावार घट सकती है और भारी आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। इसलिए यह जानना बेहद जरूरी है कि कौन-कौन से रोग और कीट आपकी फसल को खतरे में डाल सकते हैं और उनसे कैसे बचाव किया जा सकता है।
1. भूरा रतुआ रोग
सबसे आम रोगों में भूरा रतुआ रोग है, जिसमें पत्तियों पर छोटे नारंगी और भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह रोग तेजी से फैलता है और खासकर पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में अधिक देखा जाता है। इस रोग से बचाव के लिए एक ही किस्म की फसल बड़े क्षेत्र में न लगाएं और प्रारंभिक लक्षण दिखते ही प्रोपिकोनाजोल 25 EC या टेबुकोनाजोल 25 EC के 0.1% घोल का छिड़काव करें। 10-15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव भी आवश्यक है।
2. काला रतुआ रोग
इसके अलावा, काला रतुआ रोग तनों पर भूरे-काले धब्बों के रूप में प्रकट होता है, जो बाद में पत्तियों तक फैल जाता है। इससे तने कमजोर हो जाते हैं और दाने छोटे या झिल्लीदार बन जाते हैं। यह रोग मध्य भारत और दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। इसका नियंत्रण नियमित फसल निगरानी और प्रोपिकोनाजोल या टेबुकोनाजोल 25 EC के 0.1% घोल से छिड़काव करके किया जा सकता है, और 10-15 दिन बाद इसका दोबारा छिड़काव करें।
3. पीला रतुआ रोग
पीला रतुआ रोग पत्तियों पर पीली धारियों के रूप में दिखाई देता है और छूने पर पीला चूर्ण निकलता है। यह रोग हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ठंडे इलाकों में अधिक होता है। इससे बचाव के लिए पीले रतुआ प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए, खेत की नियमित निगरानी करनी चाहिए और प्रोपिकोनाजोल या टेबुकोनाजोल 25 EC के 0.1% घोल का छिड़काव करना चाहिए।
4. एफिड (माहू)
खेती में नुकसान पहुँचाने वाले कीटों में सबसे आम है एफिड (माहू), जो छोटे हरे कीट होते हैं और पत्तियों व बालियों का रस चूसते हैं। इनके कारण पौधे कमजोर होते हैं और काली फफूंद बढ़ जाती है। इससे बचाव के लिए खेत की गहरी जुताई करें, फेरोमोन ट्रैप लगाएं और क्विनालफॉस 25% ईसी का 400 मिली प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। खेत के चारों ओर मक्का, ज्वार या बाजरा लगाने से भी एफिड नियंत्रित रहते हैं।
5. दीमक
दीमक पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान करती है। प्रभावित पौधे ऊपर से सूखे या कुतरे हुए लगते हैं और यह समस्या विशेषकर सूखी मिट्टी में अधिक होती है। इससे बचाव के लिए खेत में गोबर की खाद डालें, पुरानी फसल के अवशेष नष्ट करें, प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल नीम की खली डालकर बीज बोएं और सिंचाई के समय क्लोरपाइरीफॉस 20% ईसी का 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
किसानों को समय पर निगरानी और सही रोकथाम के उपाय अपनाने होंगे। यदि इन रोगों और कीटों पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो फसल की पैदावार घट सकती है और आर्थिक नुकसान भी होगा। समय रहते सही कदम उठाकर फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
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