Farming Solution (समस्या – समाधान)

रबी की फसलों का प्रबंधन

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मौसम परिवर्तन से

18 जनवरी 2021, भोपाल। रबी की फसलों का प्रबंधन- इन प्रबंधन को किसान अपनी परिस्थिति, जरुरत एवं आवश्यकता अनुरूप अपनाकर रबी की फसल को बचा सकते हंै।

खेत समतलीकरण
खेत के असमतल होने के कारण खेत में कहीं पानी अधिक भर जाता है एवं कहीं पानी की कमी हो जाती है इन दोनों ही परिस्थितियों में फसल को नुकसान पहुँचता है। खेत के असमतल होने के कारण सिंचाई करते समय पूरे खेत में जल की मात्रा समान रूप से नहीं पहुंचती है वहीं सिंचाई करने के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता भी होती है। अत्यधिक वर्षा होने के कारण असमतल खेत से जल का निकास अच्छे से नहीं हो पता है जिसके परिणामस्वरूप जहाँ निचला भाग रहता है वहां पानी भर जाता है तथा फसल को नुकसान पहुँचता है, इस नुकसान से बचने के लिए खेत का समतल होना अतिआवश्यक है।
खेत समतल करने के लिए बहुत से कृषि यंत्र उपयोग में लाये जाते हैं जैसे ट्रैक्टर चलित लेवलर, लकड़ी का पाटा, लेजर लैंड लेवलर इन सभी यंत्रों में से लेजर लेंड लेवलर भूमि समतल करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक वाला यंत्र है जिसे किसानों को अपनाना चाहिये। इस मशीन से समतलीकरण करवाने से किसानों को अत्यधिक वर्षा के कारण जलमग्न की स्थिति एवं सिंचाई में जल की कमी दोनों ही परिस्थितियों में लाभ प्राप्त होता है। खेत का समतलीकरण करते समय 1 से 1.5 प्रतिशत का ढाल रखने से जल की निकासी आसानी से हो जाती है।

भूजल पुर्नभरण संरचनाओं का निर्माण
खेत में वर्षा जल एवं सिंचाई के जल को संग्रहित कर भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने के लिए भूजल पुर्नभरण संरचना किसानों के लिए बहुत ही कारगर तकनीक है जिसे हर कृषक को अपनाना चाहिए। इस संरचना को बनाने के लिए खेत के निचले हिस्से में जहाँ खेत का ढाल हो वहां 1 से 1.5 प्रतिशत का ढाल देकर वर्षा का अतिरिक्त जल जो खेत से बह कर बाहर जाता है उसे एकत्रित किया जा सकता है खेत के निचले भाग में अतिरिक्त जल की मात्रा के अनुसार/आवश्यकता के अनुसार कुआँ/भूजल पुर्नभरण संरचना का निर्माण करें। अत्यधिक वर्षा की स्थिति में अतिरिक्त बहने वाले जल को इस भूजल पुर्नभरण संरचना में एकत्रित कर फसलों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है साथ ही साथ भूमिगत जल को भी बढ़ाया जा सकता है।

जैविक खाद का उपयोग
जैविक खाद जैसे की पशुओं का सड़ा हुआ गोबर, हरी खाद (सनई, ढेंचा), केचुआ खाद, फसल अवशेष इत्यादि खेतों में डालने से मृदा की गुणवत्ता में सुधर आता है, मृदा के कणो में एकीकरण, पारगम्यता, अन्त: स्पंदन दर, जल निकासी क्षमता में सुधार आता है। यह सभी कारक खेत में जलमग्नता की समस्या में कमी करने में अत्यंत सहायक साबित होते हंै, इसके अतिरिक्त जैविक खाद फसलों को पोषक तत्व भी प्रदान करती है जिससे उत्पादकता में वृद्धि होती है।

जल की निकासी नालियां
सिंचित खेत में जल निकास नालियां होना अति आवश्यक है जिसे किसान प्राय: टाल देता है। अत्यधिक एवं लगातार वर्षा की होने पर इन नालियों के द्वारा खेत का अतिरिक्त पानी खेत से बह कर बाहर निकाला जा सकता है तथा फसलों को बचाया जा सकता है। इन जल निकासी नालियों का निर्माण इस प्रकार करें की इनके द्वारा निकला अतिरिक्त जल भूजल पुर्नभरण संरचना या किसी बड़े नाले या जलाशय में जाकर एकत्रित हो सके ताकि दूसरे किसानों के खेत इस प्रक्रिया से प्रभावित ना हों। इस कार्य को सामूहिक स्तर पर करने की आवश्यकता है इस कार्य से एकत्रित जल को वर्षभर उपयोग किया जा सकता है।

फसल बुवाई की विधि
ज्यादातर किसान बुवाई की छिटकवां विधि को अपनाते हैं जिसमें बीज की गहराई अपेक्षाकृत कम रहती है जिससे ज्यादा का विकास ठीक से नहीं हो पाता है जड़ केवल ऊपरी सतह तक ही सीमित रह जाती है, इसके अतिरिक्त फसल की ज्यामिति एवं प्रति इकाई पौध संख्या उपयुक्त नहीं रहती है जिसके परिणाम स्वरूप फसल की उत्पादकता कम प्राप्त होती है। सीड ड्रिल से बुवाई करने पर बीज निश्चित गहराई पर जाता है साथ ही लाइन से लाइन की दूरी भी बनी रहती है जिससे फसल की उपयुक्त ज्यामिति बनी रहती है जिससे असमय वर्षा होने पर भी फसल भूमि पर नहीं गिरती है तथा उत्पादन भी अच्छा प्राप्त होता है।

संरक्षित खेती
खेती करने की अत्याधुनिक तकनीकों में से एक तकनीक संरक्षित खेती है जिसमे भूमि की कम से कम जुताई की जाती है तथा फसल अवशेषों को भूमि के ऊपर परत की तरह रखा जाता है। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि रबी के मौसम में भारी वर्षा होने के कारण रबी की फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है परन्तु संरक्षित तकनीक से खेती करने पर फसलों को खराब मौसम में भी न्यूनतम विपरीत प्रभाव पड़ता है।

फसल अवशेषों का उपयोग
खेत में फसलों के अवशेषों का उपयोग पलवार के रूप में करने से मृदा की जल धारण क्षमता एवं जल अवशोषण क्षमता दोनों में ही वृद्धि होती है तथा जैविक पलवार मृदा की संरचना एवं जैविक गतिविधियों में भी सुधार करती है। फसल अवशेष के पलवार से अधिक वर्षा के कारण होने वाली जलमग्नता की स्थिति अपेक्षाकृत कम समय के लिए रहती है जिससे फसलों को कम नुकसान होता है या बिल्कुल नुकसान नहीं होता है। भूमि पर फसल अवशेष छोडऩे से यह भी पाया गया है की अत्यधिक वर्षा होने पर एवं तेज हवा चलने पर भी फसल जमीं पर नहीं गिरती है या बहुत कम गिरती है।

मौसम पूर्वानुमान तकनीक
किसानों को उनके क्षेत्र के अनुसार मौसम की जानकारी विभिन्न टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्रों द्वारा नियमित रूप दी जाती है इसके आलावा किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र की ग्रामीण कृषि मौसम सेवा द्वारा भी मोबाईल फोन पर एसएमएस, व्हाट्सअप के माध्यम से भी मौसम की जानकारी दी जाती है। भारत मौसम विज्ञान तकनीक के माध्यम से लघुकालीन (3 दिन के लिए), मध्यकालीन (5-7 दिन के लिए) पूर्वानुमान प्रदान करता है, इन पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए कृषि कार्य करें जैसे पूर्वानुमान में वर्षा होने पर किसानों को फसलों में सिंचाई नहीं करें तथा किसी प्रकार की दवाई (कीटनाशी, खरपतवारनाशी) का छिड़काव नहीं करें। इससे समय, श्रम एवं धन की बचत तो होती है साथ ही फसल को खेत में जल भराव की समस्या से भी बचाया जा सकता है।

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