कम वर्षा का गन्ने पर असर
वर्तमान वर्षा के अभाव का असर
अगस्त माह में अन्त तक प्रदेश के प्रमुख गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा का अभाव है। वर्षा जल अभी तक खेतों के बाहर बहकर नहीं निकला है। सावन माह की झड़ी का तो बस इन्तजार ही रहा। कुल मिलाकर सुखद एवं पर्याप्त वर्षा की भविष्यवाणी पर कृषकों को अब भरोसा नहीं रहा है।
इस समय खेतों में पानी की कमी से धरती सूख गई है व भूमि में गहरी दरारें नजर आने लगी हैं। गन्ने की क्या करें दलहनी एवं तिलहनी फसलों पर खतरा मंडरा रहा है। गन्ना, जो एक जोखिम रहित फसल है, इस समय ओजपूर्ण वृद्धि अवस्था (ग्रॉड ग्रोथ पीरिएड) से गुजर रहा है।
अक्टूबर-नवम्बर या पहले बोई गई फसल में कल्ले गन्नों से परिवर्तित हो गये हैं एवं अच्छी फसल में औसत 10-12 गांठों के ऊपर बन चुकी हैं एवं उत्तरोत्तर बढ़ते जाने की अवस्था है। बसंत या ग्रीष्म में लगाई फसल बुआई तिथि अनुसार काफी बड़ी हो गई है।
मध्य प्रदेश में गन्ना एवं शक्कर उत्पादन | |||||
वर्ष गन्ना क्षेत्र (हे.) आरक्षित पिराई निर्मित शक्कर रिकवरी (सीएलआर) क्षेत्र (हे.) (लाख टन) (क्विंटल में) (प्रतिशत में) | |||||
2008-09 | 53900 | 13954 | 17.6 | 726249 | 9.07 |
2009-10 | 45700 | 31859 | 8.5 | 804834 | 8.1 |
2010-11 | 48700 | 45143 | 17.2 | 1504036 | 9.4 |
2011-12 | 69250 | 42555 | 17.1 | 1669450 | 9.5 |
2012-13 | 64900 | 62256 | 21.3 | 2064565 | 9.6 |
2013-14 | 104400 | 72379 | 34.98 | 3443242 | 9.48 |
2014-15 | 10044 | 97163.8 | 42.7 | 4150837 | 9.62 |
2015-16 | 11000 | 109607.7 | 33.1 | 3256689 | 9.53 |
2016-17 | 92000 | – | 38.6 | 3747000 | 9.58 |
चार से छ: माह तक गन्ने की प्रारंभिक बढ़वार अवस्था में पत्तियां जो पहले कोमल हल्की हरे रंग की थी अब गहरे रंग की होकर प्रकाश संश्लेषण क्रिया की तीव्रता के कारण भोजन बनाने की प्रक्रिया में भरपूर वृद्धि करती हैं। गन्ने के सिरे पर ‘युवा पर्ण वलय’ जो गन्ने का मुख्य वृद्धिकारक भाग होता है के पूर्ण होते-होते पोरियों में वृद्धि होती है। 6 से 9 माह तक ओजपूर्ण वृद्धि होती है। इसी समयवाधि में कार्बन ग्रहण करने की क्रिया भी तेज हो जाने से पौधों में पत्तियों की बढऩ व पोरियों की संख्या में वृद्धि तेज होने से गन्ना दिन-रात बढ़ता दिखता है। गन्ने की मोटाई भी इसी बढऩ प्रक्रिया का भाग है।
गन्ने की लम्बाई, मोटाई, वजन आदि गुण वैसे तो प्रजातियों के अनुवांशिक गुणों पर निर्भर करते हैं, लेकिन दिये गये पोषक तत्वों की मात्रा, कृषि कार्य, जल प्रबंधन एवं भूमि का प्रकार गन्ने के उत्पादन पर प्रभावकारी होती है। उपरोक्त प्रक्रियाएं इस समय जुलाई अगस्त माह में चल रही हैं। इसमें गन्ने की जड़ों की भी भूमिका को देखें तो अधिक अच्छा होगा। प्रारंभिक जड़ें तो महीन से तन्तुमय बनती है। इन्हीं जड़ों के झुरमुट पोषक तत्वों एवं पानी के अवशोषण की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस समय की ओजपूर्ण वृद्धि अवस्था में जमीन में पर्याप्त नमी एवं वातावरण में आद्र्रता भरपूर बढऩ में सहायक होती है।
वर्षा के अभाव में गन्ना उत्पादक क्षेत्र की अधिकतर गहरी काली मिट्टी में कहीं छोटी एवं ज्यादातर गहरी दरारें डाल दी हैं। जमीन की तड़कन से क्रियाशील जुड़ें टूटती हैं एवं जल एवं तत्व अवशोषण की मात्रा, इस क्रांतिक अवस्था में, कम हो जाती हैं। गन्ने का तना व पोरियों की वृद्धि इन जड़ों के स्वस्थ रहने एवं उनकी बढऩ पर ही निर्भर है। आपने देखा होगा कि गन्ने में कुछ पोरियां सिकुड़ी हुई छोटी व कुछ सामान्य नजर आती हैं यह उस पोरी के बनते समय जल उपलब्धता, सामान्य मौसम आदि का परिचायक है। इस लगातार 15-20 दिन का वर्षा अभाव व कड़क धूप गन्ने पर अवश्य विपरीत प्रभाव डालेगा एवं औसत उपज को कम करेगा। बड़े गन्ने में जड़ों की पकड़ दरार पडऩे के कारण कमजोर हो जाने से गिरने की स्थिति बन सकती है इस हेतु सावधान रहें। काली गहरी मिट्टी तड़क जाने के बाद वर्षा होने से ढीली पड़ जाती है एवं गन्ना गिरता है इसलिए बंधाई जरूरी है।
अवर्षा में फसल प्रबंधन
- तुरन्त सिंचाई शुरू करें। जिन कृषकों की फसल छोटी है वे फव्वारा पद्धति से सिंचाई करें।
- बड़ी फसल में धारावाही सिंचाई करें।
- पलवार बिछाएं– ऐसी परिस्थितियों के लिए ही यह सिफारिश की गई है कि पलवार अवश्य बिछायें यह जड़ी एवं बीजू गन्ने पर समान रूप से लागू है।
गन्ने में पलवार एवं कतार छोड़ पद्धति के लाभ | ||||
क्र. उपचार गन्ना उपज पानी की मात्रा भूमि में कार्बनिक टन/हे. (से.मी.) पदार्थ (प्रतिशत) | ||||
1 | पलवार 7.5 टन/हे. + | 80.4 | 76.5 | 0.98 |
कतार छोड़ सिंचाई | ||||
2 | बिना पलवार | 81.4 | 120 | 0.83 |
- कतार छोड़ पद्धति अपनाएं- गन्ने में कतार छोड़ पद्धति अपनाकर धारावाही सिंचाई करें। पूरे खेत में पलवार बिछायें। इस प्रकार की खेती के परिणाम निम्नलिखित हैं-
मध्य प्रदेश शनै:-शनै: गन्ने एवं शक्कर उत्पादन में प्रमुख स्थान बनता जा रहा है। सबसे निचले स्तर पर रहने वाला यह प्रदेश अब पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड आदि को, अगर थोड़ा तकनीकी एवं प्रशासनिक समर्थन मिले तो पीछे छोडऩे की कगार पर है। प्रदेश में इस समय 1 लाख हेक्टेयर के ऊपर गन्ना लगाया जा रहा है। यह पिछले एक दशक में दो गुना हो गया है। कारखानों की संख्या 16 से ऊपर होने जा रही है। इसलिये आरक्षित क्षेत्र में 8 गुना वृद्धि हुई है। शक्कर के उत्पादन में 3 गुना बढ़त दर्ज हुई है। इसके अलावा नरसिंहपुर, बैतूल, डबरा क्षेत्र में गुड़ एवं खांडसरी इकाईयां बेतहाशा बढ़ रही हैं। संलग्न तालिका का अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि शक्कर रिकवरी में कारखानों की दशा में कोई सुधार नहीं है। विगत वर्षों में बाहर प्रदेशों से नई जातियां भी लाकर रोपित की गई हैं पर तकनीक प्रसारण एवं बीजोत्पादन का अभाव, कीट एवं बीमारियों की बढ़ती समस्या जल एवं तत्व प्रबंधन की कमी कुछ ऐसी समस्याएं हैं कि आदर्श भूमि एवं जलवायु के होते हुए भी हम उत्पादकता एवं गुणवत्ता में पीछे हैं। |
सामान्य सिंचाई
उपरोक्त अनुसंधान परिणाम से सिद्ध है कि पलवार व कतार छोड़ सिंचाई से पानी की बचत एवं भूमि में जीवांश पदार्थ की वृद्धि होती है।
ड्रिप सिंचाई को प्रोत्साहित किया जाये
कम पानी एवं घटते जल स्तर का एकमात्र उपाय टपक सिंचाई है। कर्नाटक शासन ने तो गन्ना उत्पादकों को ड्रिप सुविधा मुक्तहस्त से दे ही। उनका नारा है ‘कृषक गन्ना लगायें हम ड्रिप लगवा देंगेÓ। यही नीति मध्यप्रदेश में भी लागू होना चाहिए। ड्रिप से पानी की मात्रा एक तिहाई रह जायेगी एवं उपज डेढ़ गुना बढ़ जाएगी। पोषक तत्वों का सर्वोत्तम उपयोग होगा।
पोटाश का उपयोग जल मांग घटायेगा
गन्ने में अब दी जाने वाली सिंचाई के साथ 150 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश/हे. डालें। यह पानी की खेंच की दशा में पौधों को जल व तत्व अवशोषण में सहायक होगा।
गन्ना फसल पर 2.5 प्रतिशत पोटाश (25 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति लीटर पानी के मान से) 1000 लीटर पानी का छिड़काव करें। इसमें यूरिया 2 प्रतिशत मिलाकर छिड़कना भी अच्छा रहेगा। इसमें 50 से 75 ग्राम इथरेल भी मिला दें यह बढ़वार को दुरुस्त रखेगा।
कारखाने जल्दी चलाने की तैयारी रखें
ईश्वर करे की सितम्बर माह में वर्षा की कमी पूरी हो वरना उपज के साथ कुल शक्कर/हेक्टेयर भी कम निकलेगी। गन्ने में रिकवरी जल्दी आना शुरू होगी अधिकतर स्वस्थ गन्ना मिले इसलिये हो सकता है। कारखानों को जल्दी चलाना पड़ सकता है, इसकी तैयारी अभी से रखें। इस दशा में गुड़ बनाना भी जल्दी शुरू होगा। अपवर्जन रोकने हेतु कारखाने की व्यूह रचना करें।
गन्ने की अगेती बोनी करें
गन्ने की बुआई जितनी हो सके अभी से शुरू करें ताकि कम पानी की दशा में भी गन्ने को अधिक हानि न हो। बुआई पट्टों में कर पलवार बिछायें तो लाभ मिलेगा। जिन खेतों में अभी कोई फसल खड़ी है उनमें बुआई करने हेतु पॉलीबेग या पॉली ट्रे विधि अपनाएं। इससे बीज बचेगा, बुआई को अगेती बोनी का लाभ मिलेगा।
अन्तरवर्तीय फसल अवश्य लगायें
गन्ने की बुआई के साथ अन्तरवर्तीय फसल अवश्य लगायें यह आपके लिये आम के आम गुठली के दाम की तरह सिद्ध होगा। बिना अतिरिक्त जल मांग के सफल फसल उत्पादन हो सकेगा। यह प्रति हेक्टर लाभ को भी बढ़ायेगा।
अच्छी अदरक की फसल कैसे प्राप्त करें
पौध संरक्षण के प्रति सजग रहें
वर्षा ऋतु में तो वैसे भी कीट व्याधियों का प्रकोप गन्ना फसल पर अधिक होता है पर वर्षा की कमी की दशा में अनेकों कीट जैसे सफेद मक्खी, पपड़ी कीड़ा, मिली बग आदि के प्रकोप बढऩे हेतु संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं। अभी बसंत दादा शुगर संस्थान के कीट वैज्ञानिक डॉ. एच.वी. पवार ने नरसिंहपुर क्षेत्र में कण्डवा रोग से 25-30 प्रतिशत तक संक्रमण की रिपोर्ट प्रस्तुत की है। पुरानी जातियों में लाल सडऩ व उकटा रोग भी पाया गया है। इसलिए इनके प्रबंधन के साथ बीज चयन में विशेष सावधानी आवश्यक है। जिन कारखानों के पास गर्म नम हवा एवं संयंत्र उपलब्ध है, उनको सक्रिय कर अधिक से अधिक नि:शुल्क उपचारण एवं बीज की खेत पहुंच सेवा प्रदान करें। इससे बीज नर्सरियां पूरे क्षेत्र में रोग रहित बीज उपलब्ध करा सकेंगी।
गन्ना विशेषज्ञ एवं पूर्व गन्ना आयुक्त (म.प्र.). मो. : 9630042412 |