राज्य कृषि समाचार (State News)किसानों की सफलता की कहानी (Farmer Success Story)

ऊंची भूमि पर खेती के लिए ‘काशी मनु’ बनी किसानों की पहली पसंद

22 दिसंबर 2024, भोपाल: ऊंची भूमि पर खेती के लिए ‘काशी मनु’ बनी किसानों की पहली पसंद – खेती में नवाचार और उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किसानों की आय बढ़ाने और खेती के जोखिम कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी दिशा में भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर), वाराणसी ने ऊंची भूमि पर जलीय पालक की खेती के लिए ‘काशी मनु’ किस्म विकसित की है। यह नई प्रौद्योगिकी न केवल खेती के पारंपरिक तरीकों में बदलाव ला रही है, बल्कि किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने में भी मददगार साबित हो रही है।

जलीय पालक के फायदे और विशेषताएं

जलीय पालक को आमतौर पर खाद्य पौधे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियां खनिज और विटामिन से भरपूर होती हैं, साथ ही यह एक महत्वपूर्ण प्रोटीन स्रोत है। फाइबर से भरपूर होने के कारण यह पाचन में सहायक है और आयरन की अधिकता इसे एनीमिया पीड़ितों के लिए फायदेमंद बनाती है।

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हालांकि, पारंपरिक रूप से जलीय पालक जलजमाव वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले प्रदूषक पैदा हो सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, आईआईवीआर ने ऊंची भूमि पर जलीय पालक की वैज्ञानिक खेती के प्रयास किए और ‘काशी मनु’ किस्म को विकसित किया। यह किस्म साल भर खेती योग्य है और बार-बार कटाई की जा सकती है।

काशी मनु’ के फायदे और खेती की तकनीक

  1. इसे ऊंची भूमि पर बिना जलजमाव के उगाया जा सकता है।
  2. ‘काशी मनु’ जल प्रदूषकों से मुक्त होती है।
  3. इसे बीज और वनस्पति दोनों तरीकों से उगाया जा सकता है।
  4. फसल “सुरक्षित बायोमास” का वादा करती है, जिससे पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  5. हरे चारे और जैविक खेती के लिए उपयुक्त फसल है।

तकनीकी प्रभाव और सफलता की कहानियां

‘काशी मनु’ की खेती का प्रदर्शन मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में किया गया। वाराणसी, मिर्ज़ापुर, चंदौली, सोनभद्र, गाज़ीपुर, मऊ, जौनपुर, अयोध्या, बलिया, बांदा और कुशीनगर में कुल मिलाकर कई हेक्टेयर भूमि पर इस प्रौद्योगिकी का सफल प्रयोग किया गया।

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इसके अलावा, 1000 से अधिक परिवारों को किचन गार्डन और छत बागवानी के लिए रोपण सामग्री वितरित की गई। यह पहल पोषण सुरक्षा और घरेलू बागवानी को बढ़ावा देने में भी सहायक रही है।

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किसानों की सफलता की कहानियां

श्री प्रताप नारायण मौर्य (अलाउद्दीनपुर, वाराणसी), श्री अखिलेश सिंह (छितकपुर, मिर्ज़ापुर) और श्री सुभाष के पाल (कुत्तुपुर, जौनपुर) जैसे प्रगतिशील किसानों ने व्यावसायिक खेती के लिए ‘काशी मनु’ उगाई इनकी महीने की औसतन आय ₹1,40,000 से ₹1,50,000 की है। खेती की लागत पर इन्हें प्रति हेक्टेयर 90-100 टन पत्तेदार बायोमास प्राप्त हुआ और इसे ₹15-₹20 प्रति किलो की दर पर यह फसल प्रति वर्ष ₹12,00,000 से ₹15,00,000 की आय देती है।

‘काशी मनु’ की खेती से आस-पास के गांवों के किसानों में जागरूकता बढ़ी और उन्होंने ऊपरी भूमि पर जलीय पालक की खेती को अपनाना शुरू किया। यह पहल युवाओं के बीच उद्यमिता विकास को बढ़ावा देने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम बनी।

इसके अलावा, ‘काशी मनु’ फसल हरे चारे और जैविक/प्राकृतिक खेती के लिए भी आदर्श है। इसने न केवल किसानों की आय बढ़ाई है, बल्कि उन्हें एक स्थायी और सुरक्षित खेती का समाधान भी प्रदान किया है।

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