Editorial (संपादकीय)

बगीचों का रखरखाव गंभीरता से किये जाने की आवश्यकता

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25  मई 2021, भोपाल ।  बगीचों का रखरखाव गंभीरता से किये जाने की आवश्यकता – पूर्वजों के बनाये बगीचों की रखरखाव  के साथ-साथ नये बगीचे बनाने के लिये वर्तमान सबसे उपयुक्त है। सर्वेक्षण बतलाते हैं कि पुराने बगीचों से दोहन तो बराबर होता रहता है परंतु उन पौधों के रखरखाव की चिंता कम ही की जाती है। व्यवसायिक बागवानी के अंतर्गत अधिक उत्पादन एवं गुणवत्ता वाले फलों की प्राप्ति हेतु वृक्षों की देखभाल वैज्ञानिक तरीकों से की जाने से उनकी औसत उम्र बढ़ जाती है. अधिकतर फल वृक्ष मूसलाजड़ वाले होते हैं तथा सक्रिय जड़ पौधे की छांव (दिन के बारह बजे की धूप) के आसपास होती है जहां से पोषक तत्व तथा पानी पौधों द्वारा ग्रहण किया जाता है. आज भी रखरखाव स्वरूप दिया खाद/उर्वरक तनों के पास दिया जाता है जो ठीक उसी प्रकार होता है जैसे किसी व्यक्ति को हाथ बांध कर थाली में भोजन परोसा जाये फिर समझ लिया जाये कि उसका पेट भर गया होगा. बिरले ही उद्यान धारक होंगे जो हर वर्ष पौधों के रखरखाव पर गंभीर होंगे फल वृक्षों को 1 वर्ष से 5-7 वर्ष तक निर्धारित खाद एवं उर्वरक दिया जाये तो उत्पादन पर अच्छा असर होगा. पौधों की कटाई, छंटाई और बाद में बोर्डो मिश्रण घोल का छिड़काव किया जाये ताकि पेड़ों पर अनजाने में हुए घावों को रोग/कीट अपना आश्रय ना बना पाये. तनों पर बोर्डोपेस्ट का लेप विशेषकर नींबूवर्गीय फलों पर करने से ‘गमोसिस’ जैसे खतरनाक रोग का बचाव सरलता से किया जा सकता है.

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एक रिपोर्ट के अनुसार फलों के पुराने से पुराने बगीचों में यदि कोई रोग आया तो पूछने पर पता चला कि बगीचे के मालिक को सिकेटियर शाखा काटने वाली सस्ती मशीन तक उपलब्ध नहीं होती है. उससे लाभ की जानकारी तो दूर की बात है. आज अधिकांश बगीचों में इस तरह के रखरखाव गंभीरता से किये जाने की आवश्यकता है. उद्यानिकी के लिये उपयोग ऐसे टूल्स आज शासकीय उद्यानों पर उपलब्ध हैं जिन्हें रखना जरूरी है. फलों का हमारे भोजन में विशेष महत्व है यही कारण है कि फलों की खेती आज से नहीं बल्कि आदिकाल से हमारे देश में भी की जाती है. आम-अमरूद का क्षेत्र उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक है. कृषि के साथ उद्यानिकी का विस्तार यदि किया जाये तो ही खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है. बगीचों की आय निश्चित और स्थाई होती है. जिसका उपयोग खेती में करके विकास की गति पकड़ी जा सकती है. उल्लेखनीय है कि पुराने बगीचों के रखरखाव के साथ नये बगीचों के लिए ‘ए ‘टू ‘जेड अर्थात् गड्ढ़े खोदने, फेन्सिंग लगाने, सिंचाई सभी के लिये राष्टï्रीय उद्यानिकी बोर्ड, केन्द्र एवं प्रदेश शासन द्वारा खुले हाथों से अनुदान प्राप्त किया जा सकता है. याने पानी उपलब्ध है घोड़े को पानी दिखाना है परंतु पानी उसे ही पीना पड़ेगा कृषक चाहे तो इसका लाभ उठाकर आर्थिक स्थिति में बदलाव ला सकते हैं.

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