Editorial (संपादकीय)

कीटनाशकों का असंतुलित प्रयोग रोकें

Share

16 अगस्त 2022, भोपाल  कीटनाशकों का असंतुलित प्रयोग रोकें एक अध्ययन के मुताबिक कीट-रोगों के फसलों पर प्रकोप से भारत में प्रतिवर्ष 36 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है। हालांकि कीट-रोग के कारण फसल की उत्पादकता में कमी का सही आकलन मुश्किल होता है। रिपोर्ट के मुताबिक कीटों की 10 हजार प्रजातियां, 30 हजार तरह के खरपतवार, 1 लाख किस्म के रोग जिसमें वायरस बैक्टेरिया और ऐसे ही अनेक फसल के दुश्मन, 1 हजार किस्म के निमेटोड दुनिया में फसलों को घेरे रहते हैं। लेकिन इनमें से केवल 10 प्रतिशत कीट-रोग ही प्रमुख हैं। जिनकी ठीक- ठाक पहचान हो पाई है और ये लगभग 40 प्रतिशत नुकसान फसलों का कर देते हैं। वैसे हरित क्रांति के बाद के दौर में कीट-रोगों से नुकसान का प्रतिशत जरूर घटा है, पर नगण्य है। विश्व में कीटनाशक की कुल खपत 30 लाख टन से ऊपर है। मौद्रिक अर्थ में लगभग 40 अरब डॉलर से अधिक का कृषि रसायन खेतों-बगीचों में खप जाता है। भारत में कीट-रोगों से सबसे ज्यादा नुकसान कपास में होता है। जो कभी-कभी 50 प्रतिशत तक भी हो जाता है, वहीं ये नुकसान धान, मक्का, तिलहनी फसलों में 25 प्रतिशत तक होता है।

इन दिनों भारत में और शेष विश्व में भी कृषि रसायनों के उपयोग पर दुविधा की स्थिति बन रही है। विश्व की बढ़ती आबादी के लिए समुचित खाद्यान्न उत्पादन की आवश्यकता है। वहीं विष रहित, रसायन रहित खेती भी करना है। विश्व की वर्तमान में 7 अरब की आबादी में हर साल 70 करोड़ की नई जनसंख्या जुड़ती जा रही है। 2050 तक ये आंकाड़ा 9 अरब से ऊपर हो जाएगा।

भारत जैसे विशाल विविधता प्रधान देश में विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्र हैं। लगभग 13 करोड़ किसानों में जागरूकता, साक्षरता, कृषि आदानों की शुद्धता, उपलब्धता अनेक ऐसे कारक हंै जो पौध संरक्षण की समस्याओं के मूल में होते हैं। कीट-रोग से भारत में हर साल लगभग 10 से 30 प्रतिशत तक उपज का नुकसान होता है।

सरकारी स्तर पर कृषि विस्तार तंत्र की गुमशुदगी तकनीक रूप से प्रशिक्षित अमले का अभाव, महंगे कृषि रसायनों के कारण किसानों की रूचि न होने से भी फसलें नष्ट हो जाती हैं। असंतुलित और अविवेकपूर्ण तरीके से कीटनाशकों के उपयोग से पर्यावरण-प्रदूषण पारिस्थिक असंतुलन खाद्य पदार्थ, फल-सब्जी, पशुओं के चारे में अवशेष की मौजूदगी और कीटों में प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ जाती है। अंत परिणाम में फसल उत्पादन प्रभावित होता है, कृषि निर्यात पर असर होता है। पर्यावरण और देश की अर्थव्यवस्था भी चौपट होती है। खेती में खरपतवार नियंत्रण, कीट-रोग प्रबंधन, फसल उत्पादन में बढ़ौत्री और अंत परिणाम में आमदनी बढ़ाने के लिए कीटनाशकों का उपयोग लाभकारी होता है। परंतु किसान और कीटनाशक छिडक़ाव करने वाले न मात्रा, न समय, न उपयुक्त यंत्र के बारे में जानकारी रखते हैं।

मैदानी स्तर पर इस प्रकार की जानकारी बड़ी शून्य है। बड़ी मात्रा में महंगे कीटनाशक सही जानकारी के अभाव में व्यर्थ जाते हैं। किसानों और छिडक़ाव करने वाले सुरक्षा साधनों का उपयोग न करने के कारण प्रभावित होते हैं। कीट-रोगों के इंटरनेशनल आवागमन पर रोक तो नहीं हो सकती, वे चाहे टूरिस्ट के रूप में आएं, बिजनेस की संभावना तलाशने आएं या यूं ही पंख लगाकर आ जाएं, भारत को अपने आसपास के देशों से गहन समन्वय इस क्षेत्र में भी रखने की आवश्यकता है।

महत्वपूर्ण खबर:मध्यप्रदेश में जमकर बरसे बदरा, उज्जैन संभाग में भारी से अति भारी वर्षा की चेतावनी

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *