Editorial (संपादकीय)

नदी लिंक परियोजना में जल की शुद्धता पहली प्राथमिकता बने

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  • विनोद के. शाह,
    मो.: 9425640778

19 अप्रैल 2023, भोपाल नदी लिंक परियोजना में जल की शुद्धता पहली प्राथमिकता बने – नदियां सभ्यता एवं संस्कृति के रुप में जीवनदायनी है। अत्याधिक बारिश के बाद भी शीत ऋतु के दौरान नदियों का सूख जाना आगामी समय में नदियों के समाप्त हो जाने के पूर्व संकेत है। नदियों के किनारे भले ही धार्मिक स्मारक खड़े किए गये हैं, जनता जल का आचमन भी करती है। लेकिन समाज एवं सरकार ने नदियों को गंदगी समेटने, रेत उत्खनन एवं कृषि  सिंचाई जल श्रोत से अधिक की मान्यता नहीं दी है। सयुक्त राष्ट्रसंघ की हालिया रिपोर्ट कहती है कि विश्व की 26 फीसदी आबादी के पास सुरक्षित पेयजल ही नहीं है। पूरे विश्व के सम्मुख जलवायु परिवर्तन से पर्यावरण को बचाना एवं मानवाधिकार के रुप में आबादी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ी चुनौती है।

इस रिपोर्ट पर भारत सरकार का गंभीर चिंतन एवं मनन देश की नदियों की जल शुद्धता के मापन में आवश्यक हो जाता है। देश में जल श्रोतों की हो रही कमी एवं घटते भूजल स्तर को देखकर देश के अंदर नदियों को जोडऩे की परिकल्पनाएं की गई हंै। लेकिन परियोजना क्रियान्वन में बहुत अधिक पर्यावरण के नुकसान एवं पेयजल सुरक्षित न हो पाना परियोजना के औचित्य पर सावालिया निशान अंकित करता है। नदियों के आपस में जोडऩे की परियोजना में देश में लगभग 30 योजनाओं पर काम चल रहा है। इनमें बड़ी परियोजना बेतवा- केन लिंक परियोजना को जून 2021 में देश के प्रधानमंत्री ने आधारशिला रख निर्माण की शुरुआत की थी। लेकिन दो साल बाद पर्यावरणविदों की निरन्तर चेतावनियों के बाद मप्र सरकार स्वयं संशय की स्थति में है कि परियोजना से निकले परिकल्पना के आंकड़े क्या वास्तविकता में परिवर्तित होने में सक्षम है या मिथक ही साबित होने वाले है?

44,605 करोड़ की अनुमानित लागत

मध्यप्रदेश से निकल कर उप्र के हमीरपुर में यमुना नदी में विलय होने वाली बेतवा एवं केन नदी को जोडक़र दोनों राज्यों की 12 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करने के साथ प्यास से तड़पते बुंदेलखंड को पानीदार बनाने की बात कही गई है। रु 44,605 करोड़ की अनुमानित लागत का 39,317 करोड़ केन्द्र सरकार द्वारा खर्च किया जाना है। इसलिए राज्यों ने इसके अच्छे एवं बुरे प्रभावों पर बहुत अधिक अध्ययन भी नहीं किया है। देश की 38 नदियां जिन्हे अत्याधिक प्रदूषित माना गया है। इन नदियों का वायो केमिकल ऑक्सीजन डिमॉड  बीओडी का स्तर बहुत अधिक है। जो कि 250 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। बेतवा नदी उनमें शामिल है। मप्र की राजधानी भोपाल के नजदीक रायसेन जिले के छोटे से गांव झिरी की विंध्य पहाडिय़ों से निकली बेतवा अपने उद्गम स्थल से चंद किमी की दूरी पर ही गंदे नाले में तब्दील हो रही है। इतिहास में पॉच हजार साल का अस्तित्व रखने वाली बेतवा नदी के उद्गम स्थल को राम एवं रावण के आगमन से लेकर बौद्ध धर्म के प्रचार का केन्द्र मानते हैं। लेकिन नदी के इसी उद्गम के पास अब स्थापित मंडीदीप ओद्यौगिक परिसर से इतना अधिक केमिकल बेतवा नदी में समाहित किया जा रहा है कि अपने पहले ही पड़ाव विदिशा पर यह नदी एक गंदे नाले का रुप धारण कर लेती है। केमिकल के सफेद एवं हरे रंग से आच्छादित इस नदी पर विदिशा नगरपालिक छ: अलग-अलग नालों से बगैर सीवेज टीट्रमेंट किए गंदगी को मिलाती है। जिससे नदी में घुलनशील कार्बन डाईऑक्साइड की मात्र अपने खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है। उद्गम से कुछ ही किमी की दूरी पर बेतवा जल का पीएच मान 6.5 के मानक सीमा से बहुत अधिक 9.03 से अधिक हो चुका है। नदी में मिलने वाला चोर घाट नाला जो विदिशा सहित राजधानी भोपाल का निस्तार लेकर आता है। नदी से बरोक-टोक मिलन  करता है।

बड़े-बड़े राजनैतिक आन्दोलन

नाले को रोकने पिछले तीस सालों में बड़े-बड़े राजनैतिक आन्दोलन हुए लेकिन नाले की धार बदलने के सारे प्रयास विफल भी रहे हंै। पिछले बीस सालों से विदिशा शहर का घरेलू पेयजल उपभोक्ता संगठन बेतवा उत्थान समिति के सदस्य प्रतिदिन नदी के घाटों से कचरा निकालने अपने निजी प्रयासों जुटे रहते हैं। लेकिन सरकारी उपेक्षा एवं प्रतिदिन के टनों मात्रा के मलबे के सामने यह संगठन बौना ही साबित होता है। कारखानों के खतरनाक रसायनों एवं त्यौहारों के दौरान नदी में मूर्ति विर्सजन से पानी में प्लास्टर ऑफ पेरिस सहित मूर्तियों के लेपित रंगों के कुप्रभाव से नदी में जलचरों का जीवन ही समाप्त हो चुका है।

नदी के प्रवाह क्षेत्र में प्रत्येक दस बीस किमी की दूरी पर निस्तार की गंदगी को समेटते यह नदी शनै:-.शनै: आगे बड़ती जहरीली बनती जाती है। पारीछा थर्मल स्टेशन की चपेट में आकर नदी में मशीनों का ग्रीस, आइल एवं राख इसे इतना जहरीला बनाती है कि नदी पर स्थित गॉवों के पशुपालक नदी के पानी को जानवरों के पीने के योग्य भी नहीं मानते हैं। नदी के अस्तित्व के संकट को विदिशा के पास हालाली नदी का बांध अपने छोड़े पानी से नदी की तूटती सांसों को समय- समय पर जीवनदान देता रहता है। इस नदी को अत्याधिक जहरीला वनने के बाद केन-बेतबा लिंक परियोजना के माध्यम से केन्द्र सरकार सूखे से बेहाल बुंदेलखंड की जनता में प्यास बुझाने की आस जगा रही है।

कारखानों की रसायनिक गंदगी अत्यधिक

सन् 2005 में केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना की राज्य शासन द्वारा प्रेषित डीपीआर रिपोर्ट में बेतवा नदी के उद्गम के पास मकौडिया गांव में नदी पर डेम निर्माण के द्वारा बेतवा में जल के प्रवाह को निरन्तर रखने की योजना सम्मिलित थी। इस डेम के माध्यम से विदिशा एवं रायसेन जिलों के 140 गांवों में पेयजल के साथ 62 हजार 230 हेक्टेयर भूमि भी सिंचित करने का प्रस्ताव था। लेकिन परियोजना के भूमिपूजन से पूर्व मप्र सरकार ने डूब क्षेत्र अधिक बताकर मकौडिया डेम निर्माण को योजना से अलग कर दिया है। इस संशोधन के बाद योजना में पेयजल के शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह अंकित हो गया है। अपने उद्गम से लगातार प्रदूषित नदी में शुद्ध जल के बजाए निस्तार एवं कल-कारखानों की रसायनिक गंदगी अत्यधिक है।

23 लाख वृक्ष के काटे जाने की आवश्यकता

नदी के अंतिम सिरे हमीरपुर तक अवैध रेत के उत्खनन, नदी किनारों के जंगल को काटकर किनारों की भूमि पर अतिक्रमण, कांक्रीट के अवैध जंगलों का बेहताशा निर्माण नदी के बचे शेष अस्तित्व को नष्ट करने पटकथा लिख चुका है। केन-बेतवा लिंक परियोजना से पूरे परियोजना क्षेत्र में पचास लाख वृक्ष काटे जाना है। जबकि अकेले पन्ना टाईगर रिर्जव क्षेत्र के 23 लाख वृक्ष के काटे जाने की आवश्यकता को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में वर्णित किया गया है।

9000 हेक्टेयर भूमि को डूबना है

वन क्षेत्र की 6017 हेक्टेयर भूमि भी बांध के डूब क्ष़ेत्र में है। जबकि परियोजना अंतर्गत दौधन बांध से 9000 हेक्टेयर भूमि को डूबना है। दौधन बांध से 220.2 किमी लम्बी नहर से केन नदी का पानी बरुआ सागर में बेतवा में छोडऩा परियोजना का हिस्सा है। इस लिंक के माध्यम से 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति का सपना इस परियोजना में संजोया हुआ है। 220.2 किमी लम्बी खुली नहर जिसका स्थान-स्थान पर कृषि सिंचाई में उपयोग होना है। कृषि उपयोगी रसायनों एवं कीटनाशकों से पूर्णता प्रदूषित नहर जल को उस बेतवा नदी में डाला जाना है, जिसे पहले ही सीवेज के नालों ने जहरीला बना दिया है। यह प्रदूषित नदी जल  पेयजल के रुप में बुंदेलखंड की कैसे प्यास बुझायेगा? यह योजना पर सवालिया निशान है। केन एवं बेतवा नदियों में मौजूद प्रदूषण एवं आने वाले प्रदूषण पर परियोजना में कहीं भी चर्चा नहीं है। नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से जहां देशभर की नदियों को शुद्ध करने की योजनाएं लागू की जा रही है। लेकिन केन एवं बेतवा नदी के उद्गम में मौजूद प्रदूषण को कम करने के लिए, अब तक योजना में शामिल करने के प्रयास तक नही किये गये है। अपने उद्गम से चंद किमी की दूरी पर पूर्णता जहरीली बन चुकी नदी को शुद्ध करने की चर्चा अभी राज्य एंव केन्द्र सरकार पास बिल्कुल भी नहीं है। गर्मी के मौसम में बेतवा नदी अपने उद्गम से लेकर मप्र राज्य की सीमा में सिर्फ निस्तार एवं ओद्यौगिक इकाईयों से छोड़े गये पानी का संवाहक बनी रहती है। इस अवधि में उद्गम के पास इस गंदगी में हलाली बांध के पानी को छोडक़र इसे बहने योग्य बनाया जाता है। लेकिन किनारों पर स्थित नगरीय प्रशासन इसे पेयजल के रुप में भी  सप्लाई करता है।

हमीरपुर का वह स्थान जहां पर बेतवा एवं केन युमना नदी से मिलती है, जल परीक्षण में बेतवा जल का टीडीएस  घुलित लवण मात्रा का स्तर 900 मिली ग्राम प्रति लीटर, केन नदी का पानी 600 टीडीएस के स्तर का परिणाम देता है। जबकि पेयजल के रुप में 200 से 500 टीडीएस की मात्रा को पेय योग्य की माना जाता है। युमना की प्रदूषण रिपोर्ट में बेतवा एवं केन के संगम से युमना के प्रदूषण को रेखांकित किया गया है। इन हालातों में सरकार प्रस्तावित परियोजना अंतर्गत जल के किस सुरक्षित स्तर को बुंदेलखंड की जनता को प्यास बुझाने वाला मानती है? बेतवा के उद्गम को निरन्तर प्रवाह योग्य बनाये बिना इसे मानव उपयोगी कह पाना भी सत्यता से परे ही है। केन-बेतवा लिंक परियोजना की 2005 की डीपीआर में बेतवा नदी के उद्गम के पास मकौडिया बांध बनाने का प्रस्ताव विश्लेषकों ने इसलिए ही रखा था। ताकि नदी का प्रवाह निरन्तर गतिमान बना रहे।

जलवायु परिवर्तन से जहॉ गंगा एवं सिन्धु जैसी विशाल नदियों के प्रवाह में कमी की चेतावनी जारी की जा रही है। लेकिन बेतवा नदी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चिंतन से केन्द्र एवं राज्य सरकार अभी मौन ही है। जबकि केन-बेतवा लिंक का लाभ एवं जल शुद्धता बेतबा नदी के निरन्तर प्रवाह पर ही निर्भर है।

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