Editorial (संपादकीय)

खेत की तैयारी और जायद का संगम

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रबी की मुख्य फसल गेहूं की कटाई के साथ-साथ एक लम्बा – चौड़ा रकबा खाली हो जायेगा। कुछ दशक पहले कटाई उपरांत खेत खाली पड़े रहते थे। ग्रीष्मकाल में जुताई करके खरीफ बुआई की अवधि में जमीन को मानो आराम दिया जाता था परंतु हमारी बढ़ती जनसंख्या, घटता रकबा और भोजन की मांग की पूर्ति हेतु हमें कुछ सीमित रकबा जायद के लिये तैयार करना होगा। एक तरह से कृषक जो जायद लगाना चाहते हंै के लिये अतिरिक्त कार्य, एक तरफ खलिहानों में रखे अनाज की गहाई, उड़ावनी, भंडारण का कार्य तो दूसरे तरफ खेतों में जुताई का कार्य, तो तीसरा कार्य इस जायद की मूंग/उड़द की बुआई का कार्य परंतु इन सभी कार्यों को सफलता से निपटाना किसी संगम नहाने से कम महत्व का कार्य नहीं मानना चाहिये क्योंकि सभी कार्य वर्तमान की बदलती परिस्थितियों की चुनौतियों को सफलता से सामना करने के लिये शक्ति, ज्ञान और संसाधन उपलब्ध कराते हैं। काम की अधिकता से कभी भी घबराना नहीं चाहिये क्योंकि विश्व में केवल कृषि उत्पादन ही एक ऐसा कार्य है जिसमें रुकने के लिये कोई स्थान नहीं थम सकते हैं, रुक नहीं सकते फिर हमेशा से उक्त सभी कार्यक्रम करते भी आये हंै जरूरत तो केवल इतनी ही है कि विभिन्न कार्यों की प्राथमिकता को पहचाना जाये। खेत काटने के बाद खलिहान में फसल फैलाकर सुखाने के बीच के समय का उपयोग जायद के लिये बोने वाले रकबे में पलेवा देकर छोड़ा जा सकता है। गरमी है तापमान के कारण दो-तीन दिन में बतर आ जायेगी गहाई का कार्य करते-करते जायद के रकबे की बुआई निपटाई जा सकती है क्योंकि विलम्ब करने से जायद की फसल के पकने में देरी होगी और जून के द्वितीय सप्ताह तक उसकी कटाई, गहाई, विपणन, भंडारण के कार्य भी निपटाने होंगे। जायद की फसलों की बुआई के बाद उसके रखरखाव में केवल सिंचाई आवश्यक होती है इस बीच अनाज को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण भी किया जा सकता है। किसी भी कीमत पर जायद की बुआई उपरांत बचे रकबे में गेहूं की नरवाई जलाने का प्रयास नहीं किया जाये बल्कि खेत की गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ दिया जाये। गहरी जुताई से अनेकों लाभ हंै भूमि में छुपी व्याधियों के अवशेष भीषण गर्मी में तपकर नष्ट हो जाते हैं भूमि के अंदर छुपे विभिन्न जीवाणुओं को प्रकाश, हवा सुलभ हो जाती है जिससे उनके पलने-पुसने के लिये उपयुक्त वातावरण बन सके और वर्षा काल में गिरते जल का संग्रहण कम से कम 9-10 इंच तक भूमि में गहराई तक हो सके कहना ना होगा परंतु यह यर्थात है कि भूमि के भीतर जितनी अधिक से अधिक गहराई तक नमी का संरक्षण हो सकेगा उतना ही अधिक लाभ आने वाली फसल के विकास के लिये हो सकेगा। नरवाई जलाने की बात तो हो-हल्ले में अंजाम को बिना सोचे-समझे करने वाली बात होती है, सस्ता, सुन्दर परंतु कोई नहीं जानता कि कितना खतरनाक होता है खेत में माचिस की काड़ी लगाना, अनियंत्रित लपटों की चपेट में गांव तक आ सकते हैं और जान-माल की हानि की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा भूमिगत मित्र जीवाणुओं का खात्मा तो ध्यान रहे नरवाई में पानी देकर नरम करंे फिर गहरी जुताई करके उसे खेतों में मोड़ दें ताकि कालान्तर में अच्छी खाद बनकर खेतों की उर्वराशक्ति में इजाफा किया जा सके। नरवाई की समस्या कम्बाईन से फसल काटने के उपरांत ही आती है। कटाई के तुरंत बाद रोटावेटर का उपयोग करके खेत बनाने से भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है। रोटावेटर से खेत की तैयारी की लागत में 20-25 प्रतिशत तक की बचत होती है। कटाई उपरांत प्रबंध का अपना अलग महत्व होता है जिसे गंभीरता से, वरीयता से, प्राथमिकता निर्धारित करके ही किया जा सकता है इसे एक संगम में नहाने जैसा पवित्र कार्य ही मान कर किया जाये तो अच्छे परिणाम मिल सकेंगे।

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