संपादकीय (Editorial)

गेंदा की खेती से अधिक लाभ कमायें

अफ्रीकन गेंदा– अफ्रीकन गेंदा का पौधा लगभग 100 सेमी. की ऊंचाई का होता है फूल बड़े होते हैं इसकी पत्तियां चौड़ी तथा फूलों का रंग नारंगी, पीला या सफेद गोलाकार का होता है, फूल बुवाई के 2.5-3 माह पश्चात खिलने लगते हैं, इसकी उन्नत किस्में जैसे अफ्रीकन ऑरेन्ज, पूसा गोल्डनएज, क्राईलेनथीमय चार्म, एलास्का, गोल्डन येलो, ऑरेन्ज जुबली तथा फायर येलो आदि।

फ्रेंच गेंदा– इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 25-65 सेमी. तक होती है इसके फूल अफ्रीकन गेंदा से छोटे होते हैं इसके फूल पीले, नारंगी चित्तीदार या मिश्रित रंग के 3-4 सेमी. आकार के होते हैं तथा बुवाई के 2-2.5 माह पश्चात खिलने लगते हैं इसकी किस्में जैसे-रायल बंगाल, लेमनड्राप, बटर स्काच, रस्टोगेड, वेलेन्सीया, सूसाना पीटीस्प्रे तथा येलोबाय आदि।

भूमि तथा जलवायु– गेंदे की खेती के लिए उत्तम जल निकास वाली भूमि जिस पर प्रकाश दिन भर रहता हो सफलता पूर्वक की जा सकती है। गेंदे की अच्छी पैदावार के लिए दोमट भूमि जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी हो, जिसका पी.एच. मान 7-7.5 के बीच हो की जा सकती है। गेंदे की उचित वृद्धि के लिए 18-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए।
भूमि की तैयारी- गेंदे की खेती के लिए एक बखर चलाकर भूमि में 200-300 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर में फैलाकर दूसरी बार बखर चलाकर अच्छी तरह से मिला देना चाहिए, खेत में अधिक बार बखर नहीं चलाना चाहिए क्योंकि उत्पादन लागत में वृद्धि हो जाएगी तथा बार-बार बखर चलाने से उत्पादन में विशेष वृद्धि नहीं होती है।
बीज बोने का समय- वर्षाकालीन फसल हेतु नर्सरी में बीज मध्य जून शीतकालीन फसल हेतु मध्य सितम्बर तथा ग्रीष्मकालीन फसल हेतु जनवरी-फरवरी में बो देना चाहिए, गेंदे की मांग बाजार में देखते हुए करनी चाहिए।
पौध रोपण- नर्सरी में बीज बोने के लगभग एक माह पश्चात जब पौधे में 3-4 पत्तियां आ जाएं तब पौधे की रोपाई कर देनी चाहिए, पौधे की रोपाई शाम के समय करनी चाहिए, तत्पश्चात पौधे के चारों ओर की मिट्टी को अच्छी तरह दबा देनी चाहिए, पौधे रोपने के पश्चात् सिंचाई कर देनी चाहिए।
पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की दूरी- गेंदे की प्रमुखत: दो प्रजातियों की खेती की जाती है जिसकी रोपाई अलग-अलग दूरी पर की जाती है।
अफ्रीकन गेंदा की रोपाई 45 सेटीमीटर पंक्ति- पंक्ति की दूरी तथा 30 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर की जाती है, इसी प्रकार फ्रेंच गेंदा के पौधे 30 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति की दूरी तथा 30 सेंटीमीटर पौधे-पौधे की दूरी पर रोपे जाते हैं, जबकि हाइब्रिड गेंदे की रोपाई 45 सेंटीमीटर पंक्ति-पंक्ति की दूरी तथा 45 सेंटीमीटर पौधे-पौधे की दूरी पर की जाती है।
खाद एवं उर्वरक- खाद एवं उर्वरक की मात्रा निर्धारिण भूमि की जांच करवाने के पश्चात् करना चाहिए, भूमि का परीक्षण नाममात्र के शुल्क पर विभिन्न कृषि महाविद्यालयों, भारतीय मृदा अनुसंधान केन्द्रों पर की जाती है, विशेष रूप से 200-300 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालना चाहिए। इसके साथ-साथ 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 90-100 किलोग्राम फास्फोरस तथा 85-100 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए, पौधे की उचित वृद्धि के लिए 0.2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण- खरपतवार नियंत्रण हाथ से तथा रसायनिक विधि दोनों तरह से कर सकते है लेकिन पौधे की उचित वृद्धि के लिए खरपतवार खुरपी की सहायता से हाथ से करना चाहिए, ऐसा करने से भूमि में वायु संचार बढऩे से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, इसके लिए जहां तक संभव हो सके खुरपी की सहायता, हेण्ड हो आदि से ही करनी चाहिए।
सिंचाई- गेंदा एक शाकीय पौधा है, जिसे अधिक मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है, पानी की कमी से पौधा मुरझाने लगता है जिससे उत्पादन में कमी आ जाती है इस प्रकार सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए बरसात में यदि समय-समय पर पानी गिरता रहे तो अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। यदि पानी समय पर नहीं बरसे तो आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए। शीतकालीन में 5-8 दिन के अंतराल से सिंचाई करनी चाहिए। इसी प्रकार गर्मीयों में 3-4 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिए।
पिंचिंग- पिंचिंग का अर्थ होता है पौधे के ऊपरी भाग को तोडऩा या काटना पौधे के ऊपरी भाग को तोडऩे या काटने से शाखाएं अधिक निकलती है यह क्रिया रोपाई के 35-40 दिन बाद करनी चाहिए। पिंचिंग करने से शाखाएं अधिक निकलती हंै तथा पैदावार में वृद्धि होती है।
तुड़ाई– जब फूल पूर्ण रूप से विकसित हो जाए तब फूलों को तोडऩा चाहिए यदि बाजार अधिक दूर हो तो फूलों की तुड़ाई शाम के समय करना चाहिए तत्पश्चात फूलों को नम टाट-फट्टी में रखना चाहिए, बाजार निकट होने पर फूलों की तोड़ाई सुबह भी कर सकते है।
उपज- गेंदे की उपज मौसम एवं कृषि क्रियाओं पर निर्भर करती है, यदि वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए तो अफ्रीकन गेंदा से 185-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फूल प्राप्त होते है, इसी प्रकार फ्रेंच गेंदा से 105 से 125 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते है।

नर्सरी तैयार करना– एक हेक्टेयर में खेती करने के लिए 800 ग्राम से 1 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है जबकि हाइब्रिड गेंदे की खेती के लिए 200-250 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
नर्सरी तैयार करने के लिए बीज क्यारियां बना ली जाती है, बीज क्यारियों को ऐसे स्थान पर बनाना चाहिए जहां पर जल निकास अच्छा हो तथा दिन भर सूर्य का प्रकाश आता हो, बीज क्यारियों की लम्बाई 3 मीटर तथा चौड़ाई 1 मीटर रखना चाहिए, जिसमें 8-10 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद मिला देना चाहिए। तत्पश्चात 1-2 सेंटीमीटर की गहराई पर बीज को दबाकर हजारे की सहायता से पानी देना चाहिए। 1 हेक्टेयर में पौधे लगाने के लिए 8-10 बीज क्यारियों की आवश्यकता होती है।
गेंदे की खेती प्राचीनकाल से भारत में होती आई है तथा वर्तमान में भी इसकी खेती की जा रही है, धार्मिक दृष्टि से गेंदे के फूलों का महत्वपूर्ण स्थान है। गेंदे की खेती पूरे वर्ष की जाती है तथा इसकी मांग भी वर्षभर बनी रहती है। गेंदे की जड़ों में थायोफीनेज नामक पदार्थ पाया जाता है जो भूमि में सूत्रकृमि के रोकथाम में सहायक होता है जिस भूमि में सूत्रकृमि की समस्या होती है उसमें अन्तरवर्तीय खेती के रूप में गेंदे की खेती की जा सकती है। गेंदे की खेती यदि वैज्ञानिक एवं आर्थिक तकनीकी से की जाए तो अन्य फसलों की अपेक्षा 3-4 गुना अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। भारतवर्ष में मुख्यत: गेंदा की दो प्रजातियों की खेती की जाती है।
  • डॉ. कमलेश अहिरवार
  • डॉ. वीणापाणि श्रीवास्तव
  • डॉ. अजय कुमार खरे
  • डॉ. मनोज कुमार अहिरवार
  • जितेन्द्र सिंह गुर्जर
  • डॉ. राजीव सिंह
  • डॉ. स्मिता सिंह
  • डॉ. अर्पिता श्रीवास्तव
  • उत्तम कुमार त्रिपाठी
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