संपादकीय (Editorial)

बीज पर जीएसटी दुविधा में बीज उद्योग

(विशेष प्रतिनिधि)

एक राष्ट्र, एक कर, एक बाजार की आदर्श परिस्थिति के विपरीत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने पूरे देश में फौरी तौर पर व्यापार जगत में, सेवा क्षेत्र में भ्रम की स्थिति निर्मित कर दी है। जीएसटी के मूल स्वरूप में एकल दर के प्रस्ताव के खिलाफ 5 स्तर पर आधारित कर प्रणाली से उद्योग- व्यापार क्षेत्र असमंजस में है। 30-31 जून की आधी रात को इतिहास बनाने की दृष्टि से संसद के संयुक्त सत्र में जिस बैचेनी से जीएसटी लागू किया और परिणामत: बाजार, व्यापार एक पखवाड़े तक ठप्प रहे, ‘कर सरलीकरणÓ और ‘अधिक पारदर्शिताÓ का लक्ष्य कुहासे से घिरा दिखता है।
प्याज के छिलकों की तरह ही जीएसटी कई स्तर पर शनै: शनै: समझने की कोशिश हो रही है पर मूल अभी पकड़ से परे है। कृषि क्षेत्र में भी बीज कीटनाशक यंत्र, थ्रेशर, ट्रैक्टर के स्पेयर पार्ट्स आदि पर जीएसटी की अलग-अलग दरें हैं। बुआई के लिए बीज के मामले में भ्रमपूर्ण स्थिति बन गई है। जीएसटी के चेप्टर 12 में तिलहन आदि बीजों को ‘शून्यÓ केटेगरी में रखा गया है, वहीं ‘चेप्टर 10Ó में सीरियल्स में चावल, मक्का, जौ आदि बीज यदि ब्रांड के साथ हैं तो 5 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में रखे गये हैं। इस स्लैब से ब्रांडेड बीज बेचने वाली कंपनियां विक्रेता, व्यापारी और भारत सरकार की बीज बेचने वाली संस्था नेशनल सीड कार्पोरेशन भी असमंजसपूर्ण स्थिति में है।
एनएससी के प्रबंध संचालक श्री विनोद कुमार गौड़ ने कृषि मंत्रालय को पत्र लिखकर चिंता जताई है कि बीज पर कर लगने से खेती की लागत बढ़ेगी और किसानों की आमदनी दुगुनी करने की सरकार की मंशा पर आघात होगा। श्री गौड़ के मुताबिक सीड एक्ट 1966 की वैधानिक अर्हताओं के अनुरूप बीज की पैकिंग, लेबलिंग, बॉडिंग की जाती है। इसलिए जीएसटी के अंतर्गत बीज की सभी श्रेणियों को एक ही चेप्टर में समाहित कर शून्य जीएसटी घोषित हो, जिससे भ्रम दूर हो सके।

Advertisement
Advertisement
रिवर्स चार्ज प्रक्रिया
बीज की स्थिति विभिन्न ‘चेप्टर’ में बंटने से भ्रमपूर्ण होने के अलावा पूरी जीएसटी श्रृंखला में पैकिंग पर कर, रिवर्स चार्ज मैकनिज्म आदि के कारण ‘एक दूबरे, दो आषाढ़’ सी है।
जीएसटी के तहत 20 लाख रु. तक का व्यापार करने वाले छोटे कारोबारियों को रजिस्ट्रेशन में छूट है। लेकिन बड़ी कंपनियां अगर छोटे व्यापारियों से मटीरियल खरीदी या सेवा लेती है तो रिवर्स शुल्क की असुविधा के कारण बड़ी कंपनियों पर जीएसटी का अतिरिक्त भार आएगा जो अंतिम रूप से किसान को ही चुकाना होगा। इसलिए बीज उद्योग ने मांग की है कि बीज से जुड़े समस्त पहलुओं को सूक्ष्मता से परखकर समस्त बीजों को जीरो ग्रुप में रखें ताकि किसानों पर अतिरिक्त भार न आए और खेती की लागत न बढ़े।
Advertisements
Advertisement5
Advertisement